महात्मा गांधी का हिंदी भाषा और नागरी लिपि के प्रसार में योगदान पर राष्ट्रीय संगोष्ठी में विद्वानों ने विचार व्यक्त किए
कार्यक्रम के मुख्य वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के कुलानुशासक डॉ शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। मुख्य अतिथि हिंदी परिवार इंदौर के अध्यक्ष हरेराम बाजपेई थे। अध्यक्षता श्री यशवंत भंडारी, झाबुआ ने की। विशेष अतिथि डॉ अशोक कुमार भार्गव आईएएस भोपाल, अलका भार्गव, इंदौर, श्रीमती पदमा राजेंद्र, ब्रजकिशोर शर्मा, डॉ प्रभु चौधरी, श्री त्रिपुरारी लाल शर्मा थे।
संगोष्ठी को सम्बोधित करते हुए मुख्य वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के कुलानुशासक डॉ शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि नागरी लिपि का सीधा संबंध ब्राह्मी लिपि से है जो सांस्कृतिक रूप से विश्व को जोड़ती है यह भाषा राष्ट्रभाषा हिंदी के अलावा कई भाषाओं को स्वरूप देती है। नागरी लिपि में सभी भाषाओं को आकार देने की क्षमता है। यह दुनिया की सार्वदेशीय विश्व की प्रथम लिपि है ।
श्री हरेराम वाजपेयी ने समिति में गांधीजी की दोनों यात्राओं क्रमश 1918 एवं 1935 का स्मरण दिलाते हुए कहा कि यही गांधी जी ने हिंदी को भारत की भावी राष्ट्रभाषा बनाने का और देवनागरी लिपि अपनाने पर जोर दिया था।
अध्यक्षता कर रहे झाबुआ के मध्य प्रदेश अध्यक्ष श्री यशवंत भंडारी जी ने कहा कहा नागरी लिपि परिषद से भारत की भाषा और साहित्य को समझने में मार्गदर्शन मिलता है । इस अवसर पर डॉ अशोक कुमार भार्गव आईएएस भोपाल अलका भार्गव श्रीमती पदमा राजेंद्र एवं श्री त्रिपुरारी लाल शर्मा ने भी अपने विचार व्यक्त किए । विषय की प्रस्तावना संस्था के राष्ट्रीय महासचिव डॉ प्रभु चौधरी ने प्रस्तुत की। स्वागत उद्बोधन राष्ट्रीय अध्यक्ष ब्रजकिशोर शर्मा ने दिया ।
कार्यक्रम के प्रथम चरण में राष्ट्रीय शिक्षक सं चेतना ने अपने नवीन पदाधिकारियों को पद व कर्तव्यनिष्ठा की शपथ राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री ब्रजकिशोर शर्मा ने दिलाई।
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