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पर्यटन से क्षेत्र की संस्कृति-संस्कारो, पहनावा, रहन सहन का ज्ञान होता है - श्रीमती सुवर्णा जाधव


कश्मीर धरती पर का स्वर्ग है। बर्फीले पहाड,झील, सुहाना मौसम,चिनार के वृक्ष। नज़ारों से नजर हटती नहीं।

रोजमर्रा जीवन में वही एक जैसा काम करके उकता जाते हैं और हमें बदलाव की जरूरत महसूस होती है तब हमें पर्यटन स्थल पर जाना चाहिए। पर्यटन से वहां की संस्कृति, पहनावा, खान-पान आदि की जानकारी मिलती है।हमे तरोताजा होने के लिए, उर्जा प्राप्त करने के लिए पर्यटन बहुत जरूरी है यह बात श्रीमती सुवर्णा जाधव ने कही।
श्रीमती किरण पोरवाल ने पर्यावरण पर्यटन की महत्ता पर कविता के माध्यम से अपनी बात रखी- पर्यावरण और पर्यटन जैसे सुई और धागे का संबंध, पर्यावरण रहेगा तो पर्यटन को भी बढ़ावा मिलेगा , पर्यावरण को सुरक्षित रखना, नहीं उसको प्रदूषित करना, यदि पर्यावरण स्वच्छ रहा तो, हम अनेक बीमारियों से, ऑक्सीजन से, फल फूल और जड़ी बूटियों से संपन्न रहेंगे , यह सब कार्य स्थानीय लोगों के द्वारा संपन्न हो सकता हैं ,स्वच्छता वृक्ष ना काटना, कूड़ा ,यत्र तत्र ना डालना इससे पर्यावरण नदिया झीले सरोवर स्वच्छ और सुरक्षित रह सकते हैं , इससे पर्यटन पर भी प्रभाव पड़ता है स्वच्छता और हरियाली , पर्यटकों का मन मोह लेती है इससे पर्यटन को बढ़ावा मिलता है जिससे स्थानीय व्यापार बढ़ता है और रोजगार मिलता है और व्यापार को बढ़ावा मिलता है।
श्रीमती श्वेता मिश्र ने कविता के माध्यम से अपनी बात कही- पर्यावरण उन सभी भौतिक रसायनिक एवं जैविक कारको की समष्टिगत एक इकाई है। पर्यावरण वह है जो कि प्रत्येक जीव के साथ जुड़ा हुआ है। प्राकृतिक पर्यावरण और मानवीय पर्यावरण मनुष्य के स्वस्थ जीवन में पर्यावरण की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। पर्यावरण और उसके घटक- हमारा वातावरण हमें रोजमर्रा के जीवन के लिये आवश्यक वस्तुं और सेवाओं की एक किस्म प्रदान करता है। इन प्राकृतिक संसाधनो में हवा पानी मिट्टी खनिज के साथ-साथ जलवायु और सौर उर्जा शामिल है। पृथ्वी चार प्रमुख घटको से बनती है। वायुमंडल, जीवमंडल, स्थल मंडल और जल मंडल। चार पंक्तिया- नये समाज के लिये नयी जिम्मेदारी आनी वाली पीढी है प्यारी। तो पृथ्वी को बचाना है हमारी जिम्मेदारी। क्यों यही तो है हमारी सांसो की आधार, मत करो धरती पर तुम अत्याचार।
मुख्य वक्ता पूर्णिमा शर्मा कात्यायनी ने कहा कि-
आओ मिलकर पेड़ लगाएँ,
जीवन में खुशहाली लाएँ,
निज अस्तित्व बचाने को हम
इन वृक्षों का मान बढ़ाएँ,

सुबह सवेरे सूरज आकर
आँख मिचौली इनसे करता,
कभी डाल पर, कभी पुष्प पर,
कभी फलों पर डेरा करता,

हरे भरे पेड़ों पर ही तो
पंछी गाते गान सुरीला,
और पेड़ की छाया में ही
हर पँछी का रैन बसेरा,

पुष्प हवा फल खुशबू से है
महका जाता हर घर आँगन
और भँवरे का मस्त गान सुन
नाच दिखाता मस्त मयूरा

बौरा जाते आम तो कोयल
पञ्चम का तब राग सुनाती
मस्त वसन्त धनुष पर अपने
कामदेव का बाण चढ़ाता

शीतलहर का हल्का झोंका
मन में अनगिन भाव जगाता
कभी ताप से व्याकुल पंथी
छाया में विश्राम है पाता

इनसे ही हैं साँसें अपनी,
इनसे ही है जीवन अपना
आओ मिलकर पेड़ लगाएँ,
जीवन में खुशहाली लाएँ

संचालक रजनी प्रभा ने अपने उद्बोधन में कहा कि - आज के आभासी संगोष्ठी का विषय बहुत ही सारगर्भित और प्रासंगिक रहा।’पर्यावरण और टूरिज्म।’आधुनिकता के इस दौर में शहरीकरण के बढ़ते चलन ने जहां एक तरफ टूरिज्म को बढ़ावा दिया है तो दूसरी तरफ इसके दुष्प्रभाव के कारण ग्लोवल वार्मिंग जैसी जटिल समस्या वैश्विक स्तर पर अपने पांव पसार चुकी है।ये हम सब का दायित्व बनता है की हम जहां भी जाएं वहां के लोगों को पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक करें।केवल लाइक,शेयर,सब्सक्राइब के लिए विक्षारोपण,झीलों की सफाई,कचरों की डंपिंग,सरक पे झाड़ू लगाना,प्लास्टिक वहिस्कार आदि कृत्य न करें।इन पर सरकार के साथ कदम से कदम मिला कर जन जन को जागरूक करने की पुरजोर कोशिश करें।परंतु परिवर्तन स्वयं से ही शुरू करें।
समारोह का शुभारंभ सरस्वती वंदना से राष्ट्रीय सचिव श्वेता मिश्र ने किया एवं स्वागत भाषण राष्ट्रीय महासचिव डॉ. प्रभु चौधरी ने दिया। प्रस्तावना में श्रीमती शैली भागवत ने बताया कि-पर्यटन आज दुनिया का सबसे बड़ा उद्योग है और किसी भी विकासशील देश और स्थानीय समुदायों को आर्थिक विकास और प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण की आवश्यकता के बीच सन्तुलन कायम करने के लिये संघर्ष करना पड़ रहा है। पर्यावरण-पर्यटन भी इस महत्त्वपूर्ण सन्तुलन का एक पक्ष है। सुनियोजित पर्यावरण-पर्यटन से संरक्षित क्षेत्रों और उनके आस-पास रहने वाले समुदायों को लाभ पहुँचाया जा सकता है। सामान्य शब्दों में पर्यावरण-पर्यटन या इको टूरिज्म का अर्थ है पर्यटन और प्रकृति संरक्षण का प्रबंध इस ढंग से करना कि एक तरफ पर्यटन और पारिस्थितिकी की आवश्यकताएँ पूरी हों और स्थानीय लोगों को रोज़गार भी मिलता रहे और प्रकृति भी सुरक्षित रहे। भारत एक ऐसा देश है जो पूरी तरह से  प्राकृतिक संपदा से संपन्न है। यहां नदीं पहाड़, झरने, रेगिस्तान, एवं जगंल इत्यादि सभी कुछ है। जो इसे विविधताओं में एकता वाला राष्ट्र बनाते हैं। भारत में प्रकृति से जुड़े कई पर्यटन स्थल है जो ना केवल आपको प्रकृति के करीब ले जाने में मदद करते हैं बल्कि प्रकृति की विविधता और उसके सृजन को भी परिभाषित करते हैं। पर्यावरण पर्यटन प्रकृति से जुड़ा पर्यटन   है जिसमें आप देश की संस्कृति, सभ्यता के साथ विभिन्न जीव-जंतुओं के बारे में भी जान पाते हैं।  पर्यावरण पर्यटन के लिए भारत में कुछ महत्वपूर्ण राष्ट्रीय उद्यानों में कॉर्बेट नेशनल पार्क (उत्तराखंड), बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान (मध्य प्रदेश), कान्हा राष्ट्रीय उद्यान (मध्य प्रदेश), गिर नेशनल पार्क, इको-टूरिज्म की अवधारणा भारत में अपेक्षाकृत नई है। हालांकि, हाल के वर्षों में यह तेजी से बढ़ रहा है और अधिक से अधिक लोग अब इस धारणा से अवगत हों रहे हैं। जागरूकता फैलाने के लिए, भारत सरकार ने देश में पर्यटन और संस्कृति मंत्रालय में पारिस्थितिक पर्यटन को लेकर विभाग भी स्थापित किया है। भारत में पर्यावरण लुप्त होने की कगार पर आ गया है जिसके लिए आज भारत वन्यजीव अभयारण्यों और संरक्षण कानून कई गया है। जानवरों और पौधों के अधिकारों के लिए लड़ने के लिए जो कई पशु और पादप अधिकार संगठन कर रहे हैं।  नाजुक हिमालयी पारिस्थितिक तंत्र और लोगों की संस्कृति और विरासत को संरक्षित करने के लिए कई जागरूक प्रयास किए गए हैं। इसके अलावा, छुट्टियों के शिविर (होटल आवास के बजाय) यात्रियों के बीच बहुत अधिक प्रचलित हो रहे है। महाराष्ट्र में स्थित अंजता और एलोरा की गुफाएं सबसे प्राचीन पर्यावरणीय पर्यटन का स्थल है। यह सबसे लोकप्रिय पर्यटक आकर्षणों में से एक, के रुप में जानी जाती हैं। अंडमान और निकोबार द्वीप समूह 572 छोटे द्वीपों का एक समूह है जो अपने निर्वासित जंगलों, स्पष्ट जल और सदाबहार पेड़ों के लिए जाने जाते हैं।लक्ष्य द्वीप, नंदा देवी, राजस्थान में भरतपुर कर्नाटक के जंगल आदि। पर्यावरण -पर्यटन में स्थानीय लोगों की सक्रिय भागीदारी, जो प्रकृति, संस्कृति अपनी जातीय परम्पराओं के बारे में पर्यटकों को प्रामाणिक जानकारी उपलब्ध कराने में सक्षम है।तथा पर्यटक और स्थानीय समुदाय-दोनों के लिये शैक्षिक घटक शामिल कर सकें। पर्यावरण-अनुकूल गतिविधि होने के कारण पर्यावरण-पर्यटन का लक्ष्य पर्यावरण मूल्यों और शिष्टाचार को प्रोत्साहित करना तथा निर्बाध रूप में प्रकृति का संरक्षण करना है।
पर्यावरण की सुरक्षा हम सबकी है जिम्मेदारी
धरा सदा रहे हरी भरी इसमें ही है समझदारी।

निर्मल बहता जल नदियों का देता जीवनदान
जलस्त्रोतों से ही मिला हमें ये जीवन महान।
पहाड़ों के अंदर छुपे बहुमूल्य खनिज की खान
जैव विविधता जिनकी सदा बनी रही वरदान।

घने वनों से पोषित होते पशु पक्षी सूक्ष्म जीव
आसरे में पनपी कई प्राचीन सभ्यताएं सजीव।

स्वच्छ प्राणवायु इस भू के लिए बनी वरदान
मानव जाति के विकास में जिसका अभिदान।

अमूल्य उपहार प्रकृति प्रदत्त रखलो तुम संभाल
प्रदूषित न हो माटी,नीर,वायु रखो बस ख्याल।

हरियाली से अच्छादित रहे गर भू का कोना कोना
भविष्य में प्राणियों को कभी भी नहीं पड़ेगा रोना।

प्रकृति का संरक्षण कर इसे सहेज लो आज
पृथ्वी पर जीवों का सदा क़ायम रहेगा राज।

अध्यक्षता डॉ. शहाबुद्दीन शेख राष्ट्रीय मुख्य संयोजक ने की। संगोष्ठी का सफल संचालन प्राध्यापिका रजनी प्रभा ने एवं आभार प्रदेश उपाध्यक्ष डॉ. कृष्णा जोशी ने माना।

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