संगोष्ठी में शिप्रा की महिमा पर हुआ गहन मंथन
उज्जैन । शिप्रा लोक संस्कृति समिति, उज्जैन द्वारा विक्रम विश्वविद्यालय और महर्षि पाणिनि संस्कृत एवं वैदिक विश्वविद्यालय उज्जैन के सहयोग से शिप्रा तीर्थ परिक्रमा पर आयोजित दो दिवसीय विद्वत संगोष्ठी एवं व्याख्यान के अवसर पर 25 मई 2023 को विक्रम कीर्ति मंदिर में एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम हुआ। पहले दिवस पर प्रमुख अतिथियों में थे, डॉ बालकृष्ण शर्मा, पूर्व कुलपति विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन, डॉक्टर आर सी ठाकुर निदेशक अश्विनी शोध संस्थान महिदपुर, प्रोफेसर सी जी विजयकुमार मेनन, कुलपति महर्षि पाणिनी संस्कृत एवं वैदिक विश्वविद्यालय उज्जैन, विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन, प्रभारी कुलपति प्रोफेसर शैलेंद्रकुमार शर्मा, कुलसचिव प्रोफेसर प्रशांत पुराणिक, विक्रम विश्वविद्यालय, श्री नरेश शर्मा सचिव शिप्रा लोक संस्कृति समिति उपस्थिति थे। मां सरस्वती के पूजन अर्चन उपरांत समस्त अतिथियों का स्वागत शिप्रा लोक संस्कृति समिति के सचिव श्री नरेश शर्मा, डॉ रमण सोलंकी एवं डॉ अजय शर्मा ने किया।
सर्वप्रथम पूर्व कुलपति डॉ बालकृष्ण शर्मा ने अपना उद्बोधन दिया जिसमें उन्होंने शिप्रा के विभिन्न नामों के विषय में बताया और साथ ही उनके वैदिक और पौराणिक साक्ष्यों को भी उपस्थित किया। उन्होंने कहा कि क्षिप्रा, शिप्रा एवं सिप्रा तीन नामों से उज्जयिनी की शिप्रा नदी को जाना जाता है और तीनों के अलग-अलग अर्थ और कारण हैं। स्कंद पुराण के अनुसार भगवान शिव ने कहा कि जिस नगरी में महाकाल, शिप्रा नदी एवं मुक्ति है वहां कौन निवास करना पसंद नहीं करेगा। कालिदास भी मेघदूत में शिप्रा नदी का विवरण देते हैं और बताते हैं कि शिप्रा के तट पर बैठे हुए सारस वृंद जब कलरव करते हैं वे दूर दूर तक सुनाई देता है। प्रो शर्मा ने कहा कि बाणभट्ट की कादंबरी में भी शिप्रा नदी का उल्लेख मिलता है। जब शिप्रा नदी को गंगा नदी से ईर्ष्या हो जाती है कि वह शिव के शीश पर स्थित हैं ऐसे में वह अपनी ऊंची ऊंची तरंगों के द्वारा आकाश में स्थित शिव को छूना चाहती हैं।
अतिथि वक्ता के रूप विक्रम विश्वविद्यालय के प्रभारी कुलपति प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा ने शिप्रा के पौराणिक, ऐतिहासिक, पुरातात्विक, साहित्यिक एवं लोक संदर्भों का उल्लेख किया। इस संदर्भ में आपने साहित्य एवं संस्कृति में शिप्रा के उल्लेख को स्पष्ट किया । उन्होंने शिप्रा नदी के तट पर स्थित शिपावरा नामक स्थान के पुरातात्विक और ऐतिहासिक महत्व को स्पष्ट करते हुए कहा कि शिप्रा नदी के तट पर प्रागैतिहासिक काल की सभ्यता के प्रमाण मौजूद हैं।
अश्विनी शोध संस्थान के निदेशक डॉक्टर आर सी ठाकुर ने यह स्पष्ट किया कि मालवा क्षेत्र की कई प्राचीन मुद्राओं में शिप्रा नदी को मेखला के रूप में दिखाया गया है प्राचीन सिक्कों में सर्वप्रथम महाकाल के अंकन को भी उन्होंने स्पष्ट किया। कई आभूषण और आयुध भी शिप्रा नदी में पाए गए हैं। शिप्रा नदी न जाने ऐसे कितने युद्धों की साक्षी है।
महर्षि पाणिनि विश्वविद्यालय के कुलपति ने अध्यक्षीय उद्बोधन में यह स्पष्ट किया कि यदि किसी नदी की मृत्यु होती है तो संपूर्ण संस्कृति की मृत्यु हो जाती है। ऐसे में समस्त युवाओं का यह कर्तव्य है कि वे अपनी नदियों के संरक्षण में योगदान दें।
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