Skip to main content

पूर्व कुलपति प्रो रामराजेश मिश्र के पिताश्री एवं खेल और शिक्षा जगत के वरिष्ठ व्यक्तित्व श्री मुरलीमनोहर दुबे को नम आंखों से दी अंतिम विदाई

13 मई को चक्रतीर्थ पर हुई शोकसभा में वक्ताओं ने श्री दुबे के निधन को बताया शिक्षा और खेल जगत की अपूरणीय क्षति    

उज्जैन। विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन एवं रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय, जबलपुर के पूर्व कुलपति प्रो रामराजेश मिश्र के पिताश्री, खेल एवं शिक्षा जगत के वरिष्ठ व्यक्तित्व श्री मुरलीमनोहर दुबे का अंतिम संस्कार शिप्रा तट स्थित चक्रतीर्थ पर किया गया। इसके पहले उनकी अंतिम यात्रा दिनांक 13 मई को प्रातः काल 9: 30 बजे स्वनिवास जी – 96, एलआईजी, ऋषिनगर, उज्जैन से चक्रतीर्थ के लिए रवाना हुई, जहाँ मध्यप्रदेश के माननीय उच्च शिक्षा मंत्री डॉ मोहन यादव, मध्यप्रदेश जन अभियान परिषद के पूर्व उपाध्यक्ष श्री प्रदीप पांडेय, उज्जैन विकास प्राधिकरण के पूर्व अध्यक्ष श्री किशोर खंडेलवाल सहित बड़ी संख्या में उपस्थित शिक्षाविदों, समाजसेवियों और गणमान्य नागरिकों ने श्रद्धासुमन अर्पित किए। चक्रतीर्थ पर आयोजित शोक सभा की अध्यक्षता विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कुलपति प्रो अखिलेश कुमार पांडेय ने की, जिसमें वक्ताओं ने श्री दुबे के निधन को शिक्षा और खेल जगत की अपूरणीय क्षति बताया। शोक सभा में मध्यप्रदेश हिंदी ग्रंथ अकादमी, भोपाल के निदेशक श्री अशोक कड़ेल, पूर्व विधायक महंत श्री राजेन्द्र भारती, पूर्व आईजी डॉक्टर रमणसिंह सिकरवार, पूर्व सभापति, नगर निगम श्री सोनू गेहलोत, विक्रम विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो बालकृष्ण शर्मा, कुलसचिव डॉ प्रशांत पुराणिक, कार्यपरिषद सदस्य श्री राजेशसिंह कुशवाह, कुलानुशासक प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा, वरिष्ठ समाजसेवी पं योगेश शर्मा, श्री प्रणव पचौरी, श्री सोनू शर्मा, श्री धर्मेंद्र सिंह परिहार, श्री भानु भदौरिया, श्री महेश ज्ञानी, समाजशास्त्री प्रो शैलेंद्र पाराशर, वरिष्ठ अभिभाषक श्री किशोर सिंह भदौरिया, अखिल भारतीय ब्राह्मण महासभा के अध्यक्ष पं सुरेंद्र चतुर्वेदी, देवी अहिल्या विश्वविद्यालय, इंदौर के उपकुलसचिव डॉ प्रज्जवल खरे, कालिदास संस्कृत अकादमी के निदेशक डॉ सन्तोष पंड्या, श्री हरिहर शर्मा, डॉ राकेश ढंड, डॉ हरिमोहन बुधौलिया, पं केदारनाथ शुक्ल, डॉ नागेश शिन्दे, श्री भूपेन्द्र दलाल, डॉ पिलकेंद्र अरोरा, श्री शरद शर्मा, श्री गिरीश भालेराव, वरिष्ठ पत्रकार श्री निरुक्त भार्गव, डॉ सुशील शर्मा, इंजीनियर श्री राजेश चौऋषि,  गुजराती समाज के अध्यक्ष श्री संजय आचार्य आदि ने श्री दुबे के व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित किए। इस दौरान कबड्डी एसोसिएशन के सचिव गोपाल व्यास, समाजसेवी श्री जगदीश पांचाल, इंदौर के वरिष्ठ पत्रकार श्री रोहित तिवारी, इस्कॉन के श्री राघव पंडित, प्रो जगदीश चंद्र शर्मा, प्रो धर्मेंद्र मेहता, प्रो बी के आँजना, डॉ कनिया मेड़ा, डॉ गणपत अहिरवार आदि सहित नगर की विभिन्न शैक्षणिक, सामाजिक, क्रीड़ा, साहित्यिक और सांस्कृतिक संस्थाओं के पदाधिकारी और सदस्य बड़ी संख्या में उपस्थित थे।

श्री मुरलीमनोहर दुबे वरिष्ठ शिक्षाविद् और अखिल भारतीय स्तर के बैडमिंटन कोच थे। वे बैडमिंटन के उच्च कोटि के खिलाड़ी थे।  उन्होंने बैडमिंटन के राष्ट्रीय प्रशिक्षक के रूप में प्रदेश और देश के अनेक बैडमिंटन खेल दलों को प्रशिक्षण दिया था। श्री दुबे अपने पीछे दो पुत्र प्रो रामराजेश मिश्र, श्री मनीष दुबे, दो पुत्रियों डॉ स्वाति पाठक, डॉ तृप्ति दीक्षित, सुपौत्रों और सुपौत्रियों  का भरापूरा परिवार छोड़ कर गए हैं। दिनांक 12 मई को स्थानीय अस्पताल में इलाज के दौरान उनके असामयिक दुखद निधन से क्षेत्र के शिक्षा और खेल जगत में शोक की लहर व्याप्त हो गई थी।

शोक बैठक प्रतिदिन प्रातः 9 से 11 एवं संध्या 6 से 8 बजे तक होगी 

श्री मुरलीमनोहर दुबे के निधन पर शोक बैठक निवास जी – 96, एलआईजी, ऋषिनगर, उज्जैन पर प्रतिदिन प्रातः 9 से 11 एवं संध्या 6 से 8 बजे तक होगी। 

Comments

मध्यप्रदेश समाचार

देश समाचार

Popular posts from this blog

आधे अधूरे - मोहन राकेश : पाठ और समीक्षाएँ | मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे : मध्यवर्गीय जीवन के बीच स्त्री पुरुष सम्बन्धों का रूपायन

  आधे अधूरे - मोहन राकेश : पीडीएफ और समीक्षाएँ |  Adhe Adhure - Mohan Rakesh : pdf & Reviews मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा हिन्दी के बहुमुखी प्रतिभा संपन्न नाट्य लेखक और कथाकार मोहन राकेश का जन्म  8 जनवरी 1925 को अमृतसर, पंजाब में  हुआ। उन्होंने  पंजाब विश्वविद्यालय से हिन्दी और अंग्रेज़ी में एम ए उपाधि अर्जित की थी। उनकी नाट्य त्रयी -  आषाढ़ का एक दिन, लहरों के राजहंस और आधे-अधूरे भारतीय नाट्य साहित्य की उपलब्धि के रूप में मान्य हैं।   उनके उपन्यास और  कहानियों में एक निरंतर विकास मिलता है, जिससे वे आधुनिक मनुष्य की नियति के निकट से निकटतर आते गए हैं।  उनकी खूबी यह थी कि वे कथा-शिल्प के महारथी थे और उनकी भाषा में गज़ब का सधाव ही नहीं, एक शास्त्रीय अनुशासन भी है। कहानी से लेकर उपन्यास तक उनकी कथा-भूमि शहरी मध्य वर्ग है। कुछ कहानियों में भारत-विभाजन की पीड़ा बहुत सशक्त रूप में अभिव्यक्त हुई है।  मोहन राकेश की कहानियां नई कहानी को एक अपूर्व देन के रूप में स्वीकार की जाती ...

खाटू नरेश श्री श्याम बाबा की पूरी कहानी | Khatu Shyam ji | Jai Shree Shyam | Veer Barbarik Katha |

संक्षेप में श्री मोरवीनंदन श्री श्याम देव कथा ( स्कंद्पुराणोक्त - श्री वेद व्यास जी द्वारा विरचित) !! !! जय जय मोरवीनंदन, जय श्री श्याम !! !! !! खाटू वाले बाबा, जय श्री श्याम !! 'श्री मोरवीनंदन खाटू श्याम चरित्र'' एवं हम सभी श्याम प्रेमियों ' का कर्तव्य है कि श्री श्याम प्रभु खाटूवाले की सुकीर्ति एवं यश का गायन भावों के माध्यम से सभी श्री श्याम प्रेमियों के लिए करते रहे, एवं श्री मोरवीनंदन बाबा श्याम की वह शास्त्र सम्मत दिव्यकथा एवं चरित्र सभी श्री श्याम प्रेमियों तक पहुंचे, जिसे स्वयं श्री वेद व्यास जी ने स्कन्द पुराण के "माहेश्वर खंड के अंतर्गत द्वितीय उपखंड 'कौमारिक खंड'" में सुविस्तार पूर्वक बहुत ही आलौकिक ढंग से वर्णन किया है... वैसे तो, आज के इस युग में श्री मोरवीनन्दन श्यामधणी श्री खाटूवाले श्याम बाबा का नाम कौन नहीं जानता होगा... आज केवल भारत में ही नहीं अपितु समूचे विश्व के भारतीय परिवार ने श्री श्याम जी के चमत्कारों को अपने जीवन में प्रत्यक्ष रूप से देख लिया हैं.... आज पुरे भारत के सभी शहरों एवं गावों में श्री श्याम जी से सम्बंधित संस्थाओं...

दुर्गादास राठौड़ : जिण पल दुर्गो जलमियो धन बा मांझल रात - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

अमरवीर दुर्गादास राठौड़ : जिण पल दुर्गो जलमियो धन बा मांझल रात। - प्रो शैलेन्द्रकुमार शर्मा माई ऐड़ा पूत जण, जेहड़ा दुरगादास। मार मंडासो थामियो, बिण थम्बा आकास।। आठ पहर चौसठ घड़ी घुड़ले ऊपर वास। सैल अणी हूँ सेंकतो बाटी दुर्गादास।। भारत भूमि के पुण्य प्रतापी वीरों में दुर्गादास राठौड़ (13 अगस्त 1638 – 22 नवम्बर 1718)  के नाम-रूप का स्मरण आते ही अपूर्व रोमांच भर आता है। भारतीय इतिहास का एक ऐसा अमर वीर, जो स्वदेशाभिमान और स्वाधीनता का पर्याय है, जो प्रलोभन और पलायन से परे प्रतिकार और उत्सर्ग को अपने जीवन की सार्थकता मानता है। दुर्गादास राठौड़ सही अर्थों में राष्ट्र परायणता के पूरे इतिहास में अनन्य, अनोखे हैं। इसीलिए लोक कण्ठ पर यह बार बार दोहराया जाता है कि हे माताओ! तुम्हारी कोख से दुर्गादास जैसा पुत्र जन्मे, जिसने अकेले बिना खम्भों के मात्र अपनी पगड़ी की गेंडुरी (बोझ उठाने के लिए सिर पर रखी जाने वाली गोल गद्देदार वस्तु) पर आकाश को अपने सिर पर थाम लिया था। या फिर लोक उस दुर्गादास को याद करता है, जो राजमहलों में नहीं,  वरन् आठों पहर और चौंसठ घड़ी घोड़े पर वास करता है और उस पर ही बैठकर बाट...