कार्यक्रम में अतिथि के रूप में डॉ. सचिन राय, निदेशक, भारत अध्ययन केंद्र, विक्रम विश्वविद्यालय और डॉ. जितेन्द्र शर्मा, राजनीति विज्ञान विभाग, विक्रम विश्वविद्यालय शामिल थे। स्कूल ऑफ स्टडीज इन लॉ की एचओडी तृप्ति जायसवाल, सहायक प्राध्यापक डॉ. तरुण कुमार, सहायक प्राध्यापक आनंद प्रताप सिंह, सहायक प्राध्यापक प्रगति सिंह और सहायक प्राध्यापक दिग्विजय सिंह उपस्थित थे। संचालन रिसर्च स्कॉलर हितांश शर्मा ने किया।
नाटक की कहानी कुछ ऐसे थी कि एक कोयला फैक्ट्री का मालिक, जिसका ये रोल विद्यार्थी अवधेश बड़गोटिया ने निभाया, अपनी फैक्ट्री में बाल मजदूर (ये रोल विद्यार्थी तनुश्री शर्मा, समर्थ विपत और अमित पटेल ने निभाया) रखता है और उन पर बहुत अत्याचार करता है। एक दिन कुछ फैक्ट्री इंस्पेक्टर (ये रोल भी विद्यार्थी तनुश्री शर्मा, समर्थ विपत और अमित पटेल ने निभाया) फैक्ट्री में इंस्पेक्शन करने आते हैं और देखते हैं कि बड़ी संख्या में बाल मजदूरों से काम करवाया जा रहा हैं। इस पर एक एक कर तीनों इंस्पेक्टर फैक्ट्री मालिक को संविधान में बच्चों एवं बाल मजदूरी पर प्रावधान, बालक और किशोर श्रम (प्रतिषेध और विनियमन) अधिनियम, १९८६ के प्रावधान एवं सर्वोच्च न्यायालय के बच्चो के अधिकारों पर दो प्रमुख फैसलों (एमसी मेहता बनाम तमिलनाडु राज्य और बचपन बचाओ आंदोलन बनाम यूनियन ऑफ इंडिया) के बारे में विस्तार से जानकारी देते हैं। ये सब समझने और जानने के बाद फैक्ट्री मालिक को पछतावा होता हैं और वो अपनी फैक्ट्री में बाल मजदूरों को कभी नहीं रखने का निर्णय लेता है। वो अपनी फैक्ट्री के बाहर एक बोर्ड भी चिपकाता हैं जिसमें लिखा होता हैं, बाल श्रमिक प्रतिबन्धित हैं।
नाटक ख़तम होते ही विद्यार्थी समर्थ विपत ने रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा कही गयी एक पंक्ति बताई जिसका अर्थ था कि हर बच्चे को एक स्वतंत्र वातावरण में जीने का हक़ मिलना चाहिए। विद्यार्थियों ने एक पोस्टर भी अपने हाथो से बना कर तैयार किया था जिस पर एक स्लोगन लिखा था कि "बाल मजदूरी जड़ से मिटाएँ, देश के बच्चो को शिक्षित बनाएँ”। फीडबैक डॉ. सचिन राय और डॉ. जीतेन्द्र शर्मा ने दिया। आभार विभाग की एचओडी तृप्ति जायसवाल ने दिया। सहयोग विभाग के उमेश करारे एवं संजय पाल ने दिया।
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