Skip to main content

खेलों इंडिया युनिवर्सिटी गेम में मल्लखंब प्रतियोगिता का समापन एवं पुरूस्कार वितरण संपन्न

विक्रम विश्वविद्यालय की टीम को पहली बार खेलों इंडिया में 6 स्वर्ण पदक

उज्जैन। लखनऊ में 24 मई से 3 जून तक चल रहे खेलों इंडिया यूनिवर्सिटी प्रतियोगिता में मल्लखंब प्रतियोगिता का समापन एवं पुरुस्कार वितरण 27 मई को स्पोर्ट्स अथॉरिटी के वरिष्ठ अधिकारीयों व मल्लखंब फैडरेशन ऑफ इंडिया के पदाधिकारियों की गरिमामयी उपस्थिति में संपन्न हुआ। इस अवसर पर विक्रम विश्वविद्यालय के पुरूष खिलाडियों को स्वर्ण पदक एवं ट्रॉफी से सम्मानित किया गया।

यह जानकारी शारीरिक शिक्षा एवं खेल विभाग के निदेशक व विभागाध्यक्ष डॉ. वीरेंद्र चावरे ने देते हुए बताया कि विक्रम विश्वविद्यालय के पुरुष खिलाडियों ने प्रतियोगिता में भारी उलटफेर करते हुए पहली बार विक्रम विश्वविद्यालय की झोली में 6 स्वर्ण पदक अर्जित किए। टीम के राजवीर पंवार, विश्नेश सुगंधी, दीपक गवली, कुंदन कछावा,सचिन गवली एवं हेमंत डोडिया ने शानदार प्रदर्शन करते हुए 6 गोल्ड मेडल जीते। टीम के साथ प्रशिक्षक विक्रम एवं विश्वामित्र अवार्ड से अलंकृत डॉ. आशीष मेहता व विश्वामित्र अवार्ड के लिए नामित मोहनलाल बंबोरिया तथा प्रबंधक के रूप में प्रवेश यादव सम्मिलित हुए है।

विश्वविद्यालय की स्वर्णिम उपलब्धि पर कुलपति प्रोफेसर अखिलेश कुमार पांडेय, कुलसचिव डॉ प्रशांत पुराणिक, कुलानुशासक डॉ शैलेंद्र कुमार शर्मा, अधिष्ठाता छात्र कल्याण संकाय डॉ. एस के मिश्रा ने टीम का हौंसला बढ़ाते हुए उज्जवल भविष्य के लिए शुभकामनाएं दी।

Comments

मध्यप्रदेश समाचार

देश समाचार

Popular posts from this blog

आधे अधूरे - मोहन राकेश : पाठ और समीक्षाएँ | मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे : मध्यवर्गीय जीवन के बीच स्त्री पुरुष सम्बन्धों का रूपायन

  आधे अधूरे - मोहन राकेश : पीडीएफ और समीक्षाएँ |  Adhe Adhure - Mohan Rakesh : pdf & Reviews मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा हिन्दी के बहुमुखी प्रतिभा संपन्न नाट्य लेखक और कथाकार मोहन राकेश का जन्म  8 जनवरी 1925 को अमृतसर, पंजाब में  हुआ। उन्होंने  पंजाब विश्वविद्यालय से हिन्दी और अंग्रेज़ी में एम ए उपाधि अर्जित की थी। उनकी नाट्य त्रयी -  आषाढ़ का एक दिन, लहरों के राजहंस और आधे-अधूरे भारतीय नाट्य साहित्य की उपलब्धि के रूप में मान्य हैं।   उनके उपन्यास और  कहानियों में एक निरंतर विकास मिलता है, जिससे वे आधुनिक मनुष्य की नियति के निकट से निकटतर आते गए हैं।  उनकी खूबी यह थी कि वे कथा-शिल्प के महारथी थे और उनकी भाषा में गज़ब का सधाव ही नहीं, एक शास्त्रीय अनुशासन भी है। कहानी से लेकर उपन्यास तक उनकी कथा-भूमि शहरी मध्य वर्ग है। कुछ कहानियों में भारत-विभाजन की पीड़ा बहुत सशक्त रूप में अभिव्यक्त हुई है।  मोहन राकेश की कहानियां नई कहानी को एक अपूर्व देन के रूप में स्वीकार की जाती ...

खाटू नरेश श्री श्याम बाबा की पूरी कहानी | Khatu Shyam ji | Jai Shree Shyam | Veer Barbarik Katha |

संक्षेप में श्री मोरवीनंदन श्री श्याम देव कथा ( स्कंद्पुराणोक्त - श्री वेद व्यास जी द्वारा विरचित) !! !! जय जय मोरवीनंदन, जय श्री श्याम !! !! !! खाटू वाले बाबा, जय श्री श्याम !! 'श्री मोरवीनंदन खाटू श्याम चरित्र'' एवं हम सभी श्याम प्रेमियों ' का कर्तव्य है कि श्री श्याम प्रभु खाटूवाले की सुकीर्ति एवं यश का गायन भावों के माध्यम से सभी श्री श्याम प्रेमियों के लिए करते रहे, एवं श्री मोरवीनंदन बाबा श्याम की वह शास्त्र सम्मत दिव्यकथा एवं चरित्र सभी श्री श्याम प्रेमियों तक पहुंचे, जिसे स्वयं श्री वेद व्यास जी ने स्कन्द पुराण के "माहेश्वर खंड के अंतर्गत द्वितीय उपखंड 'कौमारिक खंड'" में सुविस्तार पूर्वक बहुत ही आलौकिक ढंग से वर्णन किया है... वैसे तो, आज के इस युग में श्री मोरवीनन्दन श्यामधणी श्री खाटूवाले श्याम बाबा का नाम कौन नहीं जानता होगा... आज केवल भारत में ही नहीं अपितु समूचे विश्व के भारतीय परिवार ने श्री श्याम जी के चमत्कारों को अपने जीवन में प्रत्यक्ष रूप से देख लिया हैं.... आज पुरे भारत के सभी शहरों एवं गावों में श्री श्याम जी से सम्बंधित संस्थाओं...

दुर्गादास राठौड़ : जिण पल दुर्गो जलमियो धन बा मांझल रात - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

अमरवीर दुर्गादास राठौड़ : जिण पल दुर्गो जलमियो धन बा मांझल रात। - प्रो शैलेन्द्रकुमार शर्मा माई ऐड़ा पूत जण, जेहड़ा दुरगादास। मार मंडासो थामियो, बिण थम्बा आकास।। आठ पहर चौसठ घड़ी घुड़ले ऊपर वास। सैल अणी हूँ सेंकतो बाटी दुर्गादास।। भारत भूमि के पुण्य प्रतापी वीरों में दुर्गादास राठौड़ (13 अगस्त 1638 – 22 नवम्बर 1718)  के नाम-रूप का स्मरण आते ही अपूर्व रोमांच भर आता है। भारतीय इतिहास का एक ऐसा अमर वीर, जो स्वदेशाभिमान और स्वाधीनता का पर्याय है, जो प्रलोभन और पलायन से परे प्रतिकार और उत्सर्ग को अपने जीवन की सार्थकता मानता है। दुर्गादास राठौड़ सही अर्थों में राष्ट्र परायणता के पूरे इतिहास में अनन्य, अनोखे हैं। इसीलिए लोक कण्ठ पर यह बार बार दोहराया जाता है कि हे माताओ! तुम्हारी कोख से दुर्गादास जैसा पुत्र जन्मे, जिसने अकेले बिना खम्भों के मात्र अपनी पगड़ी की गेंडुरी (बोझ उठाने के लिए सिर पर रखी जाने वाली गोल गद्देदार वस्तु) पर आकाश को अपने सिर पर थाम लिया था। या फिर लोक उस दुर्गादास को याद करता है, जो राजमहलों में नहीं,  वरन् आठों पहर और चौंसठ घड़ी घोड़े पर वास करता है और उस पर ही बैठकर बाट...