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मालवा की समृद्ध सांस्कृतिक परंपराओं के प्रसार में सभी अपना योगदान दें - कुलपति प्रो पांडेय

मालवी दिवस के पखवाड़े के समापन पर हुई राष्ट्रीय संगोष्ठी, पुस्तक लोकार्पण एवं सम्मान समारोह 

22 मार्च से प्रारम्भ हुए मालवी पखवाड़े का समापन उज्जैन में हुआ  7 अप्रैल को


उज्जैन। झलक निगम सांस्कृतिक न्यास द्वारा विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के सहयोग से मालवी दिवस के अवसर पर मालवी पखवाड़े के समापन का आयोजन उज्जैन में हुआ।  कार्यक्रम में मालवी संस्कृति के विविध आयामों पर केंद्रित राष्ट्रीय संगोष्ठी, लोक संस्कृति सम्मान एवं पुस्तक अमृतोद्भव का लोकार्पण हुआ।  7 अप्रैल को प्रेस क्लब, कालिदास संस्कृत अकादेमी के सामने, उज्जैन में संध्या को आयोजित इस समारोह के मुख्य अतिथि विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कुलपति प्रो अखिलेश कुमार पांडेय,  विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ इतिहासकार डॉ जगदीश चंद्र उपाध्याय, इंदौर थे। अध्यक्षता संस्थाध्यक्ष एवं विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कुलानुशासक प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा ने की। 


कुलपति प्रो अखिलेश कुमार पांडेय ने अपने उद्बोधन में कहा कि मालवा की लोक संस्कृति अत्यंत समृद्ध है।  साहित्य के साथ ज्ञान - विज्ञान और कला परम्पराओं के विकास में मालवा की देन अविस्मरणीय है। मालवा के पुरातन ज्ञान - विज्ञान और संस्कृति पर केन्द्रित राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन आने वाले दौर में विक्रम विश्वविद्यालय द्वारा किया जाएगा। भारत में सदियों से संस्कृति और विज्ञान के बीच सामंजस्य बना कर रखा है। इस दिशा में मालवा का महत्वपूर्ण योगदान है। मालवा की समृद्ध सांस्कृतिक परंपराओं के प्रसार में सभी लोग अपना योगदान दें। विक्रम विश्वविद्यालय में सांस्कृतिक वन निर्मित किया जा रहा है, जिसमें मालवा की वानस्पतिक संपदा का समावेश किया जाएगा।


विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ इतिहासकार डॉ जगदीश चंद्र उपाध्याय, इंदौर ने कहा कि मालवी एक भाषा ही नहीं संपूर्ण संस्कृति है। मालवा के इतिहास में योगदान देने वाले अनेक शासक और मनीषी हुए हैं। सदियों से अवंतिका, दशपुर – मंदसौर, विदिशा और धार मालवा के प्रमुख केंद्र रहे हैं, जिन्होंने ज्ञान, विज्ञान और संस्कृति के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। 


अध्यक्षता करते हुए संस्थाध्यक्ष एवं कुलानुशासक प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि मालवी लोक संस्कृति एक अर्थ में लघु भारत की संस्कृति है, जिसमें कई अंचलों की सांस्कृतिक परम्पराओं का सुमेल दिखाई देता है। यहाँ की संस्कृति की जड़ें लगभग ग्यारह हजार वर्ष पुरातन हैं। विश्व सभ्यता को मालवा क्षेत्र की देन अविस्मरणीय है। मालवी साहित्य ने युग परिवर्तन के अनुरूप करवट बदली है। मालवी भाषा के रचनाकारों ने लगभग तेरह सौ वर्षों से परस्पर प्रेम, पर्यावरण संरक्षण, समरसता, जीवन मूल्यों और समाज के नव निर्माण का सन्देश दिया है। वर्तमान में मालवी सहित विविध लोक और जनजातीय भाषाओं के संरक्षण एवं प्रसार की जरूरत है। 
 

प्रारम्भ में झलक निगम सांस्कृतिक न्यास की सचिव ज़ेड श्वेतिमा निगम ने आयोजन की संकल्पना प्रस्तुत की। इस अवसर पर प्रसिद्ध पुरातिहासकार डॉ श्यामसुंदर निगम के योगदान पर केन्दित प्रकाशन अमृतोद्भव का लोकार्पण किया गया। पुस्तक लोकार्पण अवसर पर डॉ निगम की धर्मपत्नी श्रीमती निगम उपस्थित थीं। वरिष्ठ मालवी साहित्यकार श्री बंसीधर बन्धु, शुजालपुर को मालवी सेवी शिखर सम्मान से सम्मानित किया गया। शिखर सम्मान से सम्मानित विद्वान डॉ भगवतीलाल राजपुरोहित, नृत्यगुरु पं श्रीधर व्यास एवं मालवी न्यूज चैनल के संचालक पत्रकार श्री हेमंत सेन का सम्मान मालवी संस्कृति के प्रसार में विशिष्ट योगदान के लिए किया गया। कुलपति प्रो अखिलेश कुमार पांडेय एवं डॉ जगदीश चंद्र उपाध्याय को संस्था की ओर सम्मानित किया गया। 


कार्यक्रम में प्रो प्रेमलता चुटैल, नारायणी माया बधेका, डॉ शशि निगम आदि ने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम में वरिष्ठ कवि श्री बंशीधर बंधु, शुजालपुर एवं श्यामलाल चौधरी ने मालवी कविता सुनाई। सम्मानित साहित्यकारों के प्रशस्ति पत्र का वाचन डॉ पिलकेन्द्र अरोरा, श्री सुनील गाइड, तराना, विक्रम विवेक, तराना एवं डॉ प्रवीण जोशी ने किया।


अतिथि स्वागत श्वेतिमा निगम, रुचिर प्रकाश निगम, लक्षिता निगम, मीनाक्षी निगम आदि ने किया। कार्यक्रम में लक्ष्मीनारायण सत्यार्थी, नागदा, रामप्रसाद सहज, शुजालपुर, डॉ भेरूलाल मालवीय, शाजापुर, डॉ मोहन बैरागी आदि सहित अनेक साहित्यकार और संस्कृति कर्मी उपस्थित थे।  प्रतिवर्ष गुड़ी पड़वा - वर्ष प्रतिपदा को मालवी दिवस मनाया जाता है। इस वर्ष दिनांक 22 मार्च से प्रारम्भ हुए मालवी पखवाड़े का समापन 7 मार्च को आयोजित समारोह में हुआ।  


कार्यक्रम का संयोजन श्री अनिल पांचाल, कायथा ने किया। आभार प्रदर्शन श्रीमती श्वेतिमा निगम ने किया।

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