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भारत सन्तों ने दिया है विश्व बंधुत्व, प्रेम और शांति का शाश्वत सन्देश - प्रो शर्मा

विश्व फलक पर भारतीय सन्तों के योगदान पर राष्ट्रीय संगोष्ठी सम्पन्न 

राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना के  बाइसवें स्थापना दिवस पर विश्व फलक पर भारतीय संतों का योगदान विषय पर केंद्रित राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित की गई।  भगवान परशुराम जन्मोत्सव पर आयोजित इस कार्यक्रम में भारत की सन्त परंपरा पर विमर्श किया गया। 

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कुलानुशासक प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा ने कहा कि भारतीय भक्ति आंदोलन हमारी संस्कृति और इतिहास में व्यापक उत्क्रांति लाने वाला सिद्ध हुआ है। सन्तों ने अपने युग परिवेश में लोकतंत्र की प्रतिष्ठा करते हुए समाज को अंदर - बाहर से जाग्रत करने का कार्य किया। भगवान परशुराम ने अपने वर्षों तक कठिन तपस्या की। उन्होंने शास्त्र का अपार ज्ञान प्राप्त किया तथा अन्याय के खिलाफ शस्त्र का भी उपयोग किया। संत रामानंद ने अनेक शिष्यों को भक्ति के प्रसार के लिए तत्पर किया। संत रविदास, कबीर, पीपाजी, सेन जी ने सम्पूर्ण विश्व को परस्पर प्रेम और सदाचार का मार्ग सुझाया है। उन्होंने सुदूर अतीत से वर्तमान तक के संतों के साथ सप्तऋषि एवं मनीषियों का स्मरण किया। 

विशेष अतिथि डॉ. दीपिका सुतोदिया ने भी सम्बोधित किया।समारोह का शुभारम्भ प्रवक्ता डॉ. कृष्णा जोशी ने सरस्वती वंदना एवं स्वागत भाषण डॉ शहेनाज शेख ने तथा संगोष्ठी प्रस्तावना राष्ट्रीय महासचिव डॉ. प्रभु चौधरी ने  दिया। उद्बोधन में राष्ट्रीय संयुक्त सचिव शैली भागवत ने कहां कि जनकल्याण एवं विश्व में वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना से भारत के सन्तों ने कार्य किया। साधु संतो ने समाज को प्रेरणा दी। अपने महान ग्रंथो से श्रेष्ठ ज्ञान प्राप्त करते हैं। योग, तप, साधना अपनाने से हम आगे बढ़ सकते हैं।।

संगोष्ठी के मुख्य वक्ता श्री ब्रजकिशोर शर्मा राष्ट्रीय अध्यक्ष, राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना ने बताया कि शिक्षक संचेतना अपनी ज्ञानवर्द्धक संगोष्ठी, परिसंवाद आदि के माध्यम से विविध क्षेत्रो में वरेण्य कार्य कर रही है। गायत्री परिवार के संस्थापक पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य ने लेखन के माध्यम से अनेक पुस्तकें प्रकाशित कीं। उन्होंने कहा कि स्वामी विवेकानंद, शिरडी के साईं बाबा, दादाजी धुनीवाले,  रमण महर्षि, आचार्य श्री तरुणसागर, सत्यमित्रानंदजी आदि ने विश्व में धर्म अध्यात्म का प्रचार किया। 

विशेष वक्ता डॉ. भावना सावलिया राजकोट ने  हिन्दी साहित्य के सभी युगों के साहित्यकारो के बारे में बताया। 

विशिष्ट अतिथि मेजर श्री संजय कुमार मिश्र ने बताया कि सन्तों की लम्बी शृंखला रही है। सम्राट चन्द्रगुप्त एवं चाणक्य का वर्णन सिख परम्परा एवं मातृशक्ति का ज्ञान शिक्षा में अग्रणी रहा है।

संगोष्ठी की अध्यक्षता सुवर्णा जाधव राष्ट्रीय मुख्य कार्यकारी अध्यक्ष पुणे ने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि सन्तों के ज्ञान एवं मार्गदर्शन से सम्पूर्ण विश्व को ज्ञानार्जन करवाया। 

संगोष्ठी का संचालन श्वेता मिश्र राष्ट्रीय सचिव ने किया एवं आभार डॉ. शहेनाज शेख राष्ट्रीय उप महासचिव ने किया। समारोह में उपस्थित डॉ अरुणा सराफ इन्दौर, किरण विजय पोरवाल, उज्जैन, संगीता केसवानी इन्दौर डॉ संगीता मंडल, कोलकाता राकेश छोकर सहरानपुर, डॉ शिवा लोहारिया जयपुर आदि उपस्थित रहे। आगामी समारोह 7 मई 2023 को नारद जयंती पर संगोष्ठी एवं संत कबीर दास जयंती समारोह पुणे महाराष्ट्र के आयोजन के सम्बंध में बैठक होगी।

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