उज्जैन। मल्लखंब के जाने-माने खिलाड़ी एवं प्रशिक्षक डॉ. आशीष मेहता विश्व के सर्वश्रेष्ठ मल्लखंब अंपायरो की सूची में शामिल हो गए हैं। डॉ मेहता ने हाल ही में विश्व मल्लखंब फेडरेशन द्वारा मुंबई में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय मल्लखंब अंपायर परीक्षा प्रावीण्य सूची में उत्तीर्ण करते हुए "ए" ग्रेड प्राप्त की है। इस अवसर पर विश्व मल्लखंब फेडरेशन के महासचिव श्री उदय देशपांडे, तकनीकी समिति अध्यक्ष श्रीमती नीता टाटके, तकनीकी विशेषज्ञ श्रेयस महस्कर, डायरेक्टर यतीन केलकर की उपस्थिति में प्रतिभागियों को सम्मानित किया गया।
मध्यप्रदेश शासन द्वारा राज्य के सर्वोच्च खेल अलंकरण विक्रम अवार्ड एवं शिखर अलंकरण विश्वामित्र अवार्ड से अलंकृत डॉ. आशीष मेहता मल्लखंब एवं योग के राष्ट्रीय चैंपियन रहने के साथ ही राष्ट्र के शीर्षस्थ मल्लखंब प्रशिक्षकों में से एक हैं। डॉ. मेहता विगत 25 वर्षों से मल्लखंब फेडरेशन ऑफ इंडिया से संबद्ध वरिष्ठ अंपायर है एवं अब तक 150 से अधिक अंतरराष्ट्रीय, राष्ट्रीय एवं राज्य स्तर की स्पर्धाओं में अंपायर की भूमिका का निर्वहन कर चुके हैं। डॉ. मेहता प्रदेश के एकमात्र अंपायर है जिन्हे प्रथम विश्व चैम्पियनशिप में अंपायर की भूमिका निभाने का अवसर प्राप्त हुआ। डॉ. मेहता के नेतृत्व में शहर के खिलाड़ियों ने कलर्स टीवी पर इंडियाज गॉट टैलेंट,सोनी टीवी पर एंटरटेनमेंट के लिए कुछ भी करेगा सहित विभिन्न चैनलों पर मल्लखंब की नवीन विधाओं का आकर्षक प्रदर्शन कर इस खेल को भारत के प्रत्येक गांव एवं घरों सहित 170 से अधिक देशों तक भारत की इस विधा को पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई है।आधे अधूरे - मोहन राकेश : पाठ और समीक्षाएँ | मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे : मध्यवर्गीय जीवन के बीच स्त्री पुरुष सम्बन्धों का रूपायन
आधे अधूरे - मोहन राकेश : पीडीएफ और समीक्षाएँ | Adhe Adhure - Mohan Rakesh : pdf & Reviews मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा हिन्दी के बहुमुखी प्रतिभा संपन्न नाट्य लेखक और कथाकार मोहन राकेश का जन्म 8 जनवरी 1925 को अमृतसर, पंजाब में हुआ। उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय से हिन्दी और अंग्रेज़ी में एम ए उपाधि अर्जित की थी। उनकी नाट्य त्रयी - आषाढ़ का एक दिन, लहरों के राजहंस और आधे-अधूरे भारतीय नाट्य साहित्य की उपलब्धि के रूप में मान्य हैं। उनके उपन्यास और कहानियों में एक निरंतर विकास मिलता है, जिससे वे आधुनिक मनुष्य की नियति के निकट से निकटतर आते गए हैं। उनकी खूबी यह थी कि वे कथा-शिल्प के महारथी थे और उनकी भाषा में गज़ब का सधाव ही नहीं, एक शास्त्रीय अनुशासन भी है। कहानी से लेकर उपन्यास तक उनकी कथा-भूमि शहरी मध्य वर्ग है। कुछ कहानियों में भारत-विभाजन की पीड़ा बहुत सशक्त रूप में अभिव्यक्त हुई है। मोहन राकेश की कहानियां नई कहानी को एक अपूर्व देन के रूप में स्वीकार की जाती ...
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