Skip to main content

क्लब फनकार कला दीर्घा में विक्रम तीर्थ सरोवर रूपांकन प्रदर्शनी का शुभारंभ हुआ 4 अप्रैल की संध्या को

 46 चित्रकृतियों की विक्रम सरोवर रूपांकन कला प्रदर्शनी 6 अप्रैल तक उज्जैन में

उज्जैन। विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन स्थित विक्रम तीर्थ सरोवर के रूपांकन की कला प्रदर्शनी का संयोजन दिनांक 4 से 6 अप्रैल 2023 तक राजस्व कॉलोनी स्थित क्लब फनकार कला दीर्घा में किया जा रहा है। इस प्रदर्शनी का उद्घाटन 4 अप्रैल को संध्या 5 : 30 बजे क्लब फनकार आर्ट गैलरी में दीप प्रज्वलन द्वारा वरिष्ठ मूर्तिकार श्री राधाकिशन वाडिया, डॉ लक्ष्यजीत मिश्र, वराहमिहिर शोध संस्थान के निदेशक प्रो एस एन गुप्ता, पूर्व कुलपति प्रो रामराजेश मिश्र, प्रो बी एल सिंहरोड़िया, वरिष्ठ चित्रकार डॉ श्रीकृष्ण जोशी, विक्रम विश्वविद्यालय के कुलानुशासक प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा, श्री अक्षय आमेरिया एवं संयोजक श्री बृज खरे ने दीपदीपन कर किया।  प्रदर्शनी में विविध शैलियों में विक्रम तीर्थ सरोवर के परिवेश को रूपांकित करते 46 कलाकृतियों की प्रदर्शनी लगाई गई है। प्रदर्शनी के उद्घाटन अवसर पर कलाकारों को सम्मान पत्र अर्पित कर उन्हें सम्मानित किया गया। 

पूर्व कुलपति प्रो रामराजेश मिश्र ने विक्रम तीर्थ सरोवर निर्माण एवं सरोवर रूपांकन प्रदर्शनी की संकल्पना पर विचार व्यक्त करते हुए कहा कि सरोवर निर्माण और संरक्षण का कार्य अत्यंत महत्वपूर्ण है। नभचर, जलचर और भूमिचर सभी का जल पर समान अधिकार है। जलाधिकार और पर्यावरण संरक्षण से ही भावी पीढ़ी का अस्तित्व बचा रहेगा। जल स्रोतों के महत्त्व को दृष्टिगत रखते हुए इस दिशा में नई पीढ़ी में सजगता लाने की आवश्यकता है।

 प्रदर्शनी के संयोजक एवं वरिष्ठ चित्रकार श्री बृज खरे ने बताया कि यह प्रदर्शनी दिनांक 5 से 6 अप्रैल तक प्रतिदिन प्रातः 9 से 11 एवं संध्या 6 से 8 बजे तक कला रसिकों के अवलोकन के लिए खुली रहेगी। उद्घाटन के पश्चात बड़ी संख्या में उपस्थित कलाकारों और कला रसिकों ने प्रदर्शनी में संयोजित चित्रों का अवलोकन किया और उनकी प्रशंसा की। 

मित्र भारत संस्था, उज्जैन द्वारा विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के सहयोग से रामनवमी पर 30 मार्च को आयोजित कला शिविर में परिसर स्थित विक्रम तीर्थ सरोवर का चित्रांकन तीन पीढ़ियों के तूलिका कलाकारों द्वारा किया गया था। इस दौरान मालवा के चालीस से अधिक कलाकारों ने विविध शैलियों में लैण्डस्केप के माध्यम से विक्रम सरोवर का सुंदर चित्रांकन किया था, जिनकी प्रदर्शनी 6 अप्रैल तक आयोजित की जा रही है। 

नगर के कला रसिकों और सुधीजनों से इस प्रदर्शनी के अवलोकन का अनुरोध संयोजक श्री बृज खरे ने किया है।

Comments

Popular posts from this blog

आधे अधूरे - मोहन राकेश : पाठ और समीक्षाएँ | मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे : मध्यवर्गीय जीवन के बीच स्त्री पुरुष सम्बन्धों का रूपायन

  आधे अधूरे - मोहन राकेश : पीडीएफ और समीक्षाएँ |  Adhe Adhure - Mohan Rakesh : pdf & Reviews मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा हिन्दी के बहुमुखी प्रतिभा संपन्न नाट्य लेखक और कथाकार मोहन राकेश का जन्म  8 जनवरी 1925 को अमृतसर, पंजाब में  हुआ। उन्होंने  पंजाब विश्वविद्यालय से हिन्दी और अंग्रेज़ी में एम ए उपाधि अर्जित की थी। उनकी नाट्य त्रयी -  आषाढ़ का एक दिन, लहरों के राजहंस और आधे-अधूरे भारतीय नाट्य साहित्य की उपलब्धि के रूप में मान्य हैं।   उनके उपन्यास और  कहानियों में एक निरंतर विकास मिलता है, जिससे वे आधुनिक मनुष्य की नियति के निकट से निकटतर आते गए हैं।  उनकी खूबी यह थी कि वे कथा-शिल्प के महारथी थे और उनकी भाषा में गज़ब का सधाव ही नहीं, एक शास्त्रीय अनुशासन भी है। कहानी से लेकर उपन्यास तक उनकी कथा-भूमि शहरी मध्य वर्ग है। कुछ कहानियों में भारत-विभाजन की पीड़ा बहुत सशक्त रूप में अभिव्यक्त हुई है।  मोहन राकेश की कहानियां नई कहानी को एक अपूर्व देन के रूप में स्वीकार की जाती हैं। उनकी कहानियों में आधुनिक जीवन का कोई-न-कोई विशिष्ट पहलू उजागर

मालवी भाषा और साहित्य : प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

MALVI BHASHA AUR SAHITYA: PROF. SHAILENDRAKUMAR SHARMA पुस्तक समीक्षा: डॉ श्वेता पंड्या Book Review : Dr. Shweta Pandya  मालवी भाषा एवं साहित्य के इतिहास की नई दिशा  लोक भाषा, लोक साहित्य और संस्कृति का मानव सभ्यता के विकास में अप्रतिम योगदान रहा है। भाषा मानव समुदाय में परस्पर सम्पर्क और अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम है। इसी प्रकार क्षेत्र-विशेष की भाषा एवं बोलियों का अपना महत्त्व होता है। भारतीय सभ्यता और संस्कृति से जुड़े विशाल वाङ्मय में मालवा प्रदेश, अपनी मालवी भाषा, साहित्य और संस्कृति के कारण महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। यहाँ की भाषा एवं लोक-संस्कृति ने  अन्य क्षेत्रों पर प्रभाव डालते हुए अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है। मालवी भाषा और साहित्य के विशिष्ट विद्वानों में डॉ. शैलेन्द्रकुमार शर्मा का नाम बड़े आदर से लिया जाता है। प्रो. शर्मा हिन्दी आलोचना के आधुनिक परिदृश्य के विशिष्ट समीक्षकों में से एक हैं, जिन्होंने हिन्दी साहित्य की विविध विधाओं के साथ-साथ मालवी भाषा, लोक एवं शिष्ट साहित्य और संस्कृति की परम्परा को आलोचित - विवेचित करने का महत्त्वपूर्ण एवं सार्थक प्रयास किया है। उनकी साहित्य

खाटू नरेश श्री श्याम बाबा की पूरी कहानी | Khatu Shyam ji | Jai Shree Shyam | Veer Barbarik Katha |

संक्षेप में श्री मोरवीनंदन श्री श्याम देव कथा ( स्कंद्पुराणोक्त - श्री वेद व्यास जी द्वारा विरचित) !! !! जय जय मोरवीनंदन, जय श्री श्याम !! !! !! खाटू वाले बाबा, जय श्री श्याम !! 'श्री मोरवीनंदन खाटू श्याम चरित्र'' एवं हम सभी श्याम प्रेमियों ' का कर्तव्य है कि श्री श्याम प्रभु खाटूवाले की सुकीर्ति एवं यश का गायन भावों के माध्यम से सभी श्री श्याम प्रेमियों के लिए करते रहे, एवं श्री मोरवीनंदन बाबा श्याम की वह शास्त्र सम्मत दिव्यकथा एवं चरित्र सभी श्री श्याम प्रेमियों तक पहुंचे, जिसे स्वयं श्री वेद व्यास जी ने स्कन्द पुराण के "माहेश्वर खंड के अंतर्गत द्वितीय उपखंड 'कौमारिक खंड'" में सुविस्तार पूर्वक बहुत ही आलौकिक ढंग से वर्णन किया है... वैसे तो, आज के इस युग में श्री मोरवीनन्दन श्यामधणी श्री खाटूवाले श्याम बाबा का नाम कौन नहीं जानता होगा... आज केवल भारत में ही नहीं अपितु समूचे विश्व के भारतीय परिवार ने श्री श्याम जी के चमत्कारों को अपने जीवन में प्रत्यक्ष रूप से देख लिया हैं.... आज पुरे भारत के सभी शहरों एवं गावों में श्री श्याम जी से सम्बंधित संस्थाओं द