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विक्रम विश्वविद्यालय और वन विभाग के मध्य द्विपक्षीय समझौता - एम.ओ. यू. संपन्न

सांस्कृतिक वन की स्थापना की जाएगी


उज्जैन भौतिकी अध्ययनशाला में विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन एवं वन विभाग, उज्जैन द्वारा सांस्कृतिक वन की स्थापना एवं द्विपक्षीय समझौते - एम.ओ. यू. पर हस्ताक्षर किया गया। दिनांक 1 मार्च 2023 को भौतिकी अध्ययनशाला में विक्रम विश्वविद्यालय एवं वन विभाग, उज्जैन द्वारा सांस्कृतिक वन की स्थापना एवं द्विपक्षीय समझौते (एम. ओ. यू.) पर हस्ताक्षर किये गए।

अध्यक्षीय उद्बोधन में विक्रम विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर अखिलेश कुमार पांडेय ने कहा कि सांस्कृतिक वन विकसित करने की संकल्प विद्यार्थियों के अध्ययन एवं अनुसन्धान के लिए उपयोगी होगी। वही दूसरी ओर उज्जैन क्षेत्र की जैव-विविधता के विकास को गति प्रदान करने का काम करेगी। सांस्कृतिक वन में रोपित किये जाने वाले पौधों में अनेक प्रकार के औषधीय अल्कालानोइड्स प्राप्त करते हुए ड्रग्स विकास को गति प्रदान करेगा। सांस्कृतिक वन की संकल्पना, अध्यात्म, इतिहास, संस्कृति के विद्यार्थियों के साथ-साथ विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के विद्यार्थियों के लिए उपयोगी होगा।
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि श्री मनोज अग्रवाल मुख्य वन संरक्षक, उज्जैन संभाग ने कहा कि सांस्कृतिक वन की अवधारणा सर्वप्रथम गुजरात में माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी द्वारा की गई थी, जो धीरे-धीरे देश के अन्य क्षेत्रों में फैल गई है। उज्जैन प्राचीन संस्कृति एवं संस्कार का धनी है जहां भगवान श्री कृष्ण ने शिक्षा प्राप्त की थी। इस पवित्र शहर में सांस्कृतिक वन का विकास विश्वविद्यालय विद्यार्थियों के साथ-साथ आम नागरिकों के लिए भी स्वच्छ पर्यावरण निर्मित करने में सहायक होगा।
कार्यक्रम की प्रमुख वक्ता डॉ किरण बसेन, जिला वन मंडलाधिकारी, उज्जैन ने बताया कि सांस्कृतिक वन का निर्माण विश्वविद्यालय के अनुसन्धान हेतु अत्यंत उपयोगी होगा। इस वन में हरि-हर मिलन से सम्बंधित पौधों के रोपण पर ध्यान दिया जायेगा। उन्होंने यह भी बताया कि पर्यावरण संरक्षण का प्रथम सन्देश भगवन शिव से प्राप्त होता है जिन्होंने गंगा धारण गंगाधरण के साथ-साथ चन्द्रमा, विष, सर्प आदि को समाहित किये हुए हैं। भगवान शिव के परिवार में अनेक जीव जन्तुओ के संरक्षण के प्रमाण प्राप्त होते हैं।
प्राकृतिक वन निर्माण कि संकल्पना सामने रखते हुए विक्रम विश्वविद्यालय के कुलानुशासक प्रो शैलेन्द्र कुमार शर्मा ने बताया कि वानस्पतिक सम्पदा, संरक्षण का सन्देश अनेक पुराणों में वर्णित है। समुद्र मंथन एक यथार्थ था जिससे अनेक बहुमूल्य रत्न प्राप्त हुए थे, जिसमें से पारिजात पुष्प, हरिचंदन आदि के प्राप्त होने के प्रमाण है। इनके औषधीय गुण विदित है।
विक्रम विश्वविद्यालय के कुलसचिव प्रो प्रशांत पुराणिक ने प्राचीन कालीन वनों के विकास पर प्रकाश डालते हुए कहा कि वन एवं पौधों का संरक्षण भारत की पुरानी सभ्यता है और वृक्षों के महत्त्व का वर्णन हमारे पुराणों में है। वृक्षों से ऑक्सीजन, भोजन, कपड़ा, मकान आदि प्राप्त होते हैं। सांस्कृतिक वन विकास से विद्यार्थियों को नवीन क्षेत्रों में अनुसन्धान का पथ निर्मित होगा।


कार्यक्रम की शुरुआत में अतिथियों का परिचय जीव विज्ञान संकाय के संकाय अध्यक्ष प्रोफेसर डी एम कुमावत द्वारा दिया गया, साथ ही उन्होंने सांस्कृतिक वन विकास को पर्यावरण संरक्षण हेतु उपयोगी बताया। कार्यक्रम की शृंखला को आगे बढ़ाते हुए कृषि अध्ययनशाला के विभागाध्यक्ष डॉ राजेश टेलर ने कार्यक्रम की रूपरेखा बताते हुए सांस्कृतिक वन की परिकल्पना एवं एम ओ यू की उपयोगिता पर प्रकाश डाला।

कार्यक्रम में प्रोफेसर अर्पण भारतद्वाज अतिरिक्त संचालक उच्च शिक्षा मध्य प्रदेश शासन, विशेष अतिथि के रूप में उपस्थित थे। इसके अतिरिक्त कार्यक्रम में डॉ एस के मिश्रा, डीन विद्यार्थी कल्याण संकाय, डॉ संदीप तिवारी, डॉ गणपत अहीरवाल, डॉ सलिल सिंह, डॉ निश्छल यादव डॉ अरविन्द शुक्ल, डॉ शिवि भसीन, डॉ जगदीश शर्मा, डॉ निहाल सिंह, डॉ मुकेश वाणी, डॉ शीतल चौहान, डॉ पूर्णिमा त्रिपाठी, डॉ आशुतोष पाटीदार, भौतिकी अध्ययनशाला एवं कृषि अध्ययनशाला के समस्त शिक्षक गण उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन डॉ गरिमा शर्मा, शिक्षक प्राणिकी एवं जैवप्रौद्योगिकी अध्ययनशाला ने किया एवं आभार डॉ स्वाति दुबे विभागाध्यक्ष भौतिकी अध्ययनशाला ने माना।

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