Skip to main content

रसायन एवं जैव रसायन अध्ययनशाला में नेट, सेट और गेट के लिए रणनीति एवं प्लानिंग पर राष्ट्रीय कार्यशाला आयोजित


उज्जैनविक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन की रसायन एवं जैव रसायन अध्ययन शाला में दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन किया गया, जिसका उद्देश्य कार्यशाला का आयोजन राष्ट्रीय एवं राज्य स्तरीय प्रतियोगी परीक्षाएं (नेट, सेट और गेट) तथा तथा साथ ही असिस्टेंट प्रोफेसर की भर्तियों में सफलता के लिए रणनीति एवं प्लानिंग रहा। यह कार्यशाला कुलपति प्रो अखिलेश कुमार पाण्डेय के निर्देशन में आयोजित की गई

उद्घाटन सत्र में डॉ. उमा शर्मा, आचार्य एवं अध्यक्ष, रसायन एवं जैव रसायन अध्ययनशाला ने कार्यशाला की रूपरेखा रखी। उन्होंने बताया कि भविष्य में भी छात्र हित में रोजगारपरक एवं शैक्षणिक आयोजनों की योजना है। कार्यक्रम की मुख्य विशेषता – सभी वक्ता नेट, गेट उत्तीर्ण कर चुके है, उनके द्वारा मार्गदर्शन उपलब्ध करवाना रहा।
मुख्य अतिथि डॉ. बालकृष्ण शर्मा, पूर्व कुलपति, विक्रम विश्वविद्यालय ने अपने उद्बोधन में बताया कि यह नवाचार आगामी परीक्षाओं एवं रोजगार के लिए प्रतियोगितओं को तैयार के लिए में अद्वितीय माध्यम होगा। डॉ स्वाति दुबे, अध्यक्ष भौतिकी अध्ययनशाला ने छात्रों में सफलता के लिए किन गुणों का होना आवश्यक है, इस पर प्रकाश डाला।
प्रथम अकादमिक सत्र में सीकर राजस्थान से पधारे डॉक्टर एस. के. वर्मा सर रहे जो 44 बार सीएसआईआर - नेट परीक्षा उत्तीर्ण कर लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में स्थान बना चुके हैं। उन्होंने विषय ज्ञान के साथ मानसिक तैयारी एवं रणनीति को साझा किया। अन्य वक्ता श्री वीरेंद्र सिंह मीणा एवं श्रुति जैन ने स्पेक्ट्रोस्कोपी एवं अकार्बनिक रसायन की बारीकियां बताई। कार्यशाला में कुल 45 प्रतिभागियों उपस्थित रहे जो रतलाम, कायथा, बदनावर तथा उज्जैन के विभिन्न कॉलेज से थे।
कार्यक्रम के द्वितीय दिवस के प्रथम सत्र में डॉ. एस. के. वर्मा, सीकर राज. ने ग्रुप थ्योरी को समझाया। द्वितीय सत्र में रतलाम से आई विषय विशेषज्ञ डॉ. मीनल गुप्ता ने कार्बनिक रसायन के बारे में प्रतिभागीओं को बताया तथा उनको होने वाली प्रतियोगी परीक्षाओं में होने वाली कठिनाइयों को कैसे दूर किया जाए, इस बारे में बताया। साथ ही तृतीय सत्र में श्री हितेश वाणी सर ने बच्चों को अलग-अलग प्रतियोगी परीक्षाओं में किस तरह प्रश्नों पर ध्यान दिया जाए तथा केमिकल काइनेटिक्स समझाया।
समापन समारोह के मुख्य अतिथि पूर्व डीन डॉ. एच. पी. सिंह रहे, उन्होंने अपने अनुभवों से बच्चों को अवगत कराया तथा शोधार्थियों एवं प्रतिभागियों को अपने क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने के लिए प्रोत्साहन दिया एवं बताया कि इस तरह का प्रथम प्रयास निश्चित ही शिक्षा एवं रोजगार के लिए क्षेत्र के लिए बहुत उपयोगी सिद्ध होगा। प्रतिभागियों ने अपने फीडबैक में बताया कि यह कार्यशाला किस तरह आने वाली परीक्षाओं के लिए उपयोगी होगी एवं उन्होंने कार्यशाला के दौरान सीखे गए नवाचारों को साझा भी किया तथा यह कार्यशाला वास्तव मे उनके जीवन में नई दिशा लाएगी।
कार्यक्रम का संचालन डॉ. दर्शना मेहता ने किया तथा आभार प्रदर्शन डॉ. अंशुमाला वाणी व डॉ. प्रदीप पालीवाल द्वारा किया गया।

Comments

मध्यप्रदेश समाचार

देश समाचार

Popular posts from this blog

आधे अधूरे - मोहन राकेश : पाठ और समीक्षाएँ | मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे : मध्यवर्गीय जीवन के बीच स्त्री पुरुष सम्बन्धों का रूपायन

  आधे अधूरे - मोहन राकेश : पीडीएफ और समीक्षाएँ |  Adhe Adhure - Mohan Rakesh : pdf & Reviews मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा हिन्दी के बहुमुखी प्रतिभा संपन्न नाट्य लेखक और कथाकार मोहन राकेश का जन्म  8 जनवरी 1925 को अमृतसर, पंजाब में  हुआ। उन्होंने  पंजाब विश्वविद्यालय से हिन्दी और अंग्रेज़ी में एम ए उपाधि अर्जित की थी। उनकी नाट्य त्रयी -  आषाढ़ का एक दिन, लहरों के राजहंस और आधे-अधूरे भारतीय नाट्य साहित्य की उपलब्धि के रूप में मान्य हैं।   उनके उपन्यास और  कहानियों में एक निरंतर विकास मिलता है, जिससे वे आधुनिक मनुष्य की नियति के निकट से निकटतर आते गए हैं।  उनकी खूबी यह थी कि वे कथा-शिल्प के महारथी थे और उनकी भाषा में गज़ब का सधाव ही नहीं, एक शास्त्रीय अनुशासन भी है। कहानी से लेकर उपन्यास तक उनकी कथा-भूमि शहरी मध्य वर्ग है। कुछ कहानियों में भारत-विभाजन की पीड़ा बहुत सशक्त रूप में अभिव्यक्त हुई है।  मोहन राकेश की कहानियां नई कहानी को एक अपूर्व देन के रूप में स्वीकार की जाती ...

खाटू नरेश श्री श्याम बाबा की पूरी कहानी | Khatu Shyam ji | Jai Shree Shyam | Veer Barbarik Katha |

संक्षेप में श्री मोरवीनंदन श्री श्याम देव कथा ( स्कंद्पुराणोक्त - श्री वेद व्यास जी द्वारा विरचित) !! !! जय जय मोरवीनंदन, जय श्री श्याम !! !! !! खाटू वाले बाबा, जय श्री श्याम !! 'श्री मोरवीनंदन खाटू श्याम चरित्र'' एवं हम सभी श्याम प्रेमियों ' का कर्तव्य है कि श्री श्याम प्रभु खाटूवाले की सुकीर्ति एवं यश का गायन भावों के माध्यम से सभी श्री श्याम प्रेमियों के लिए करते रहे, एवं श्री मोरवीनंदन बाबा श्याम की वह शास्त्र सम्मत दिव्यकथा एवं चरित्र सभी श्री श्याम प्रेमियों तक पहुंचे, जिसे स्वयं श्री वेद व्यास जी ने स्कन्द पुराण के "माहेश्वर खंड के अंतर्गत द्वितीय उपखंड 'कौमारिक खंड'" में सुविस्तार पूर्वक बहुत ही आलौकिक ढंग से वर्णन किया है... वैसे तो, आज के इस युग में श्री मोरवीनन्दन श्यामधणी श्री खाटूवाले श्याम बाबा का नाम कौन नहीं जानता होगा... आज केवल भारत में ही नहीं अपितु समूचे विश्व के भारतीय परिवार ने श्री श्याम जी के चमत्कारों को अपने जीवन में प्रत्यक्ष रूप से देख लिया हैं.... आज पुरे भारत के सभी शहरों एवं गावों में श्री श्याम जी से सम्बंधित संस्थाओं...

दुर्गादास राठौड़ : जिण पल दुर्गो जलमियो धन बा मांझल रात - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

अमरवीर दुर्गादास राठौड़ : जिण पल दुर्गो जलमियो धन बा मांझल रात। - प्रो शैलेन्द्रकुमार शर्मा माई ऐड़ा पूत जण, जेहड़ा दुरगादास। मार मंडासो थामियो, बिण थम्बा आकास।। आठ पहर चौसठ घड़ी घुड़ले ऊपर वास। सैल अणी हूँ सेंकतो बाटी दुर्गादास।। भारत भूमि के पुण्य प्रतापी वीरों में दुर्गादास राठौड़ (13 अगस्त 1638 – 22 नवम्बर 1718)  के नाम-रूप का स्मरण आते ही अपूर्व रोमांच भर आता है। भारतीय इतिहास का एक ऐसा अमर वीर, जो स्वदेशाभिमान और स्वाधीनता का पर्याय है, जो प्रलोभन और पलायन से परे प्रतिकार और उत्सर्ग को अपने जीवन की सार्थकता मानता है। दुर्गादास राठौड़ सही अर्थों में राष्ट्र परायणता के पूरे इतिहास में अनन्य, अनोखे हैं। इसीलिए लोक कण्ठ पर यह बार बार दोहराया जाता है कि हे माताओ! तुम्हारी कोख से दुर्गादास जैसा पुत्र जन्मे, जिसने अकेले बिना खम्भों के मात्र अपनी पगड़ी की गेंडुरी (बोझ उठाने के लिए सिर पर रखी जाने वाली गोल गद्देदार वस्तु) पर आकाश को अपने सिर पर थाम लिया था। या फिर लोक उस दुर्गादास को याद करता है, जो राजमहलों में नहीं,  वरन् आठों पहर और चौंसठ घड़ी घोड़े पर वास करता है और उस पर ही बैठकर बाट...