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प्राचीन भारतीय संस्कृति का एक अभिन्न अंग जल संरक्षण - कुलपति प्रो पांडेय

 प्राचीन भारतीय जल संरक्षण की अवधारणा : एक विवेचन पर व्याख्यान सम्पन्न 

उज्जैन। भारतीय प्रशासनिक सेवा के परिवीक्षाधीन अधिकारियों के राज्य प्रशिक्षण संस्थान आर. सी. पी. वी. नरोन्हा प्रशासन अकादमी, भोपाल में आयोजित वर्कशॉप में विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कुलपति प्रो अखिलेश कुमार पांडेय ने प्राचीन भारतीय जल संरक्षण की अवधारणा: एक विवेचन विषय पर विशिष्ट व्याख्यान दिया। आर.सी. पी.वी नरोन्हा  प्रशासन अकादमी, भोपाल जो कि भारतीय प्रशासनिक सेवा के परीवीक्षाधीन अधिकारियों का एक उत्कृष्ट राज्य प्रशिक्षण संस्थान है, द्वारा प्रोटेक्शन ऑफ एनवायरनमेंट एंड कंज़र्वेशन ऑफ वाटर विषय पर वर्कशॉप का आयोजन किया गया।  इसमें विशेष आमंत्रित विषय विशेषज्ञ के रूप में विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कुलपति प्रो अखिलेश कुमार पांडेय ने प्राचीन भारतीय जल संरक्षण विषय पर विशिष्ट व्याख्यान दिया। आयोजित वर्कशॉप में जल की उपयोगिता, जैसे धर्म ग्रंथों महाभारत, रामायण, ऋग्वेद, यजुर्वेद आदि में वर्णित जल के महत्व पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने धार्मिक संस्कारों में जल पूजन के महत्व को स्पष्ट किया। उन्होंने  प्राचीन भारतीय संस्कृति में गंगा, यमुना, नर्मदा, गोदावरी, क्षिप्रा आदि पवित्र नदियों की विवेचना की। साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि जल संरक्षण प्राचीन भारतीय संस्कृति का एक अभिन्न अंग रहा है एवं प्राचीन समय से ही जल संरक्षण विधियां भारत में प्रचलित रही हैं।  

प्रोफेसर पांडेय ने बताया की जल के महत्व एवं इसके संरक्षण के प्रमाण हिंदू, इस्लाम, ईसाई, सिख, जैन, यहूदी सहित अनेक ग्रंथों में मिलते हैं। वर्तमान समय में जल की गुणवत्ता, शहरीकरण, औद्योगिकीकरण एवं जल के अधिक दोहन के कारण प्रभावित हो रही है। प्रोफेसर पांडेय ने अपने वक्तव्य में जल संरक्षण की पुरानी विधियों के साथ साथ नई विधियों का भी वर्णन किया। 

इस अवसर पर विक्रम विश्वविद्यालय के कुलसचिव प्रोफेसर प्रशांत पुराणिक एवं कुलानुशासक प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कुलपति जी को जल संरक्षण जैसे महत्त्वपूर्ण विषय पर जन मानस को अपने ज्ञान से जागृत करने पर बधाई दी।

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