सामाजिक क्रांति के अग्रदूत सन्त रविदास और आज का विश्व पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी संपन्न
देश की प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा सामाजिक क्रांति के अग्रदूत संत रविदास और आज का विश्व विषय पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी के मुख्य अतिथि पूर्व संभागायुक्त भोपाल डॉ अशोक कुमार भार्गव थे। मुख्य वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कुलानुशासक एवं हिंदी विभागाध्यक्ष प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि नागरी लिपि परिषद, नई दिल्ली के महामंत्री डॉ हरिसिंह पाल, श्री सुरेश चंद्र शुक्ल शरद आलोक, नॉर्वे एवं संस्था के महासचिव डॉ प्रभु चौधरी थे।
संगोष्ठी को संबोधित करते हुए मुख्य वक्ता प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि सन्त रविदास जी अंतर्बाह्य सभी स्तरों पर मनुष्य को स्वतन्त्र करते हैं। उनका संघर्ष दोहरा था, एक तरफ वे बाह्याचारों और सामाजिक जड़ता से लड़ रहे थे तो दूसरी तरफ अंतर्मन के स्तर पर माया, ममता, अहं के जाल को तोड़ने की चेष्टा कर रहे थे। सन्त रैदास प्रभुरस में डूबे महान भक्त हैं। साथ ही समता, सदाचार और सद्भाव के सूत्र उन्हें अनुपम बनाते हैं। आज संपूर्ण विश्व को परस्पर प्रेम और सद्भाव की आवश्यकता है, यही संत रविदास जी का महान संदेश है। वे जिस भावभूमि पर स्थित हैं, वहां तर्क - वितर्क की ओर ज्यादा नहीं जाते हैं। ब्रह्मानन्द में निमग्न उनके जैसा कोई और कवि दिखाई नहीं देता है।
मुख्य अतिथि वरिष्ठ आईएएस डॉ अशोक कुमार भार्गव, भोपाल ने कहा कि संत रविदास जी ने अपना संपूर्ण जीवन सामाजिक समरसता के लिए अर्पित किया। उन्होंने जात पात के बंधन में फंसे भारतीय समाज को मुक्त करने की कोशिश की। उनकी वाणी आज भी प्रासंगिक है।
विशिष्ट अतिथि डॉ हरिसिंह पाल, नई दिल्ली ने कहा कि संत रविदास जी के दौर में समाज अनेक खंडों में बटा हुआ था। बाह्याचार और पाखंड तेजी से पनप रहा था। संत रविदास जी ने उस दौर में देश को जोड़ने का अविस्मरणीय कार्य किया। उन्होंने सभी प्रकार के बाह्य आडम्बरों का खंडन किया। वे मानव मानव के मध्य भेद को समाप्त करते हैं। ईश्वर एक ही है, इस बात पर संत रविदास जी ने बल दिया।
डॉ प्रभु चौधरी ने कहा कि संत रविदास जी ने इस बात पर बल दिया कि मन यदि शुद्ध है तो ईश्वर प्राप्ति संभव है। मनुष्य केवल शारीरिक स्वच्छता और बाहरी सुंदरता पर ध्यान देता है और मन की पवित्रता पर ध्यान नहीं देता है, उसका जीवन निरर्थक है। उनका सन्देश आज अधिक प्रासंगिक हो गया है कि सभी मनुष्य एक ही ईश्वर की संतान हैं।
संगोष्ठी की प्रस्तावना डॉ अनुसूया अग्रवाल, प्राचार्य महाप्रभु वल्लभाचार्य महाविद्यालय, महासमुंद, छत्तीसगढ़ ने प्रस्तुत की।
प्रारंभ में सरस्वती वंदना राष्ट्रीय संयुक्त सचिव डॉ संगीता पाल, कच्छ ने की। स्वागत भाषण राष्ट्रीय संयोजक श्री यशवंत भंडारी झाबुआ ने दिया। अतिथि परिचय राष्ट्रीय महासचिव महिला इकाई डॉ रश्मि चौबे, गाजियाबाद ने दिया।
कार्यक्रम का संचालन राष्ट्रीय सचिव श्रीमती श्वेता मिश्रा ने किया। आभार प्रदर्शन राष्ट्रीय संयुक्त सचिव शैली भागवत ने किया।
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