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कालियादेह महल क्षेत्र प्राचीन जल संरक्षण एवं पारिस्थिकीय अध्ययन हेतु उपयोगी – कुलपति प्रो पांडेय

 विक्रम विश्वविद्यालय द्वारा किया जाएगा जल संरक्षण की प्राचीन पद्धतियों एवं  पारिस्थितिकी का अध्ययन

उज्जैन। विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन में अध्ययनरत विद्यार्थियों को जल संरक्षण की प्राचीन पद्धतियों, जल परीक्षण एवं पारिस्थितिकी अध्ययन हेतु स्थल अवलोकन के उद्देश्य से विक्रम विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर अखिलेश कुमार पांडेय ने, प्राणिकी एवं जैव प्रौद्योगिकी अध्ययनशाला के शिक्षकों के साथ कालियादेह महल पहुंच कर प्राचीन जल संरक्षण प्रणाली का अवलोकन किया तथा शिक्षकों को निर्देशित किया कि इस स्थल की पारिस्थितिकी एवं जल परीक्षण का अध्ययन विद्यार्थियों को कराया जाये। 

भारत में जल संसाधनों के संरक्षण  का इतिहास बहुत पुराना है। प्राचीन समय से ही देश में जल प्रबंधन एवं संरक्षण का इतिहास बहुत पुराना है। प्राचीन समय से ही देश में जल प्रबंधन एवं संरक्षण का कार्य किया जा रहा है। जल प्रबंधन का पहला प्रमाण सिंधु घाटी में खुदाई के दौरान मिला, धोलावीरा में अनेक इकाइयो के प्रमाण मिले हैं।  उपरोक्त ऐतिहासिक और पुरातात्विक प्रमाणों से स्पष्ट होता है कि देश के कई क्षेत्रों में चौथी शताब्दी से ही छोटे-छोटे समुदाय जल संचय और वितरण की उपयुक्त व्यवस्था रही है। ऐसा ही एक उदाहरण उज्जैन में स्थित कालियादेह महल जिसे पूर्व में कमल कुंड के नाम से जाना जाता था, में मिलता है। वहाँ प्राचीन जल संरक्षण एवं शोधन का सुन्दर प्राचीन परिदृश्य दिखाई देता है। यहाँ शिप्रा नदी दो भागों में दिखाई पड़ती है, एक भाग में बावन कुंड की संरचना निर्मित है, जिसमे लगभग 2 से 10 फ़ीट गहराई के छोटे - बड़े कुंड शामिल है। प्रत्येक कुंड एक दूसरे से पतली-पतली संरचनाओं द्वारा आपस में जुड़े दिखाई देते है। यहाँ पर सर्पिलाकार संरचना निर्मित है जिसके द्वारा जल दाएं-बाएं घूमता हुआ आगे बढ़ता है। इस स्थल में क्षिप्रा नदी कभी एक कुंड से दूसरे कुंड फिर अगले कुंड में रास्ता तय करती हुई दिखाई देती है। अर्थात् क्षिप्रा नदी यहाँ पर कुंडों के चौकोर संरचनाओं में बहती है। यहाँ पर सूर्य कुंड, ब्रह्म कुंड एवं अग्नि कुंड प्रमुख हैं। इस स्थल पर कई लोग पूजा अर्चना भी करते हुए दिखाई देते हैं। इनमे से पांच कुंड किले के अंदर के जल से निर्मित है। कुलपति प्रोफेसर अखिलेश कुमार पांडेय ने इस रमणीय दृश्य का अवलोकन करते हुए बताया कि यह स्थल प्राचीन जल-संरक्षण प्रणाली का एक अनूठा उदाहरण है, जहाँ पर पतली-पतली नालियों का जल इधर-उधर घूमते हुए एक कुंड से दूसरे कुंड में प्रवाहित होता है, जिससे जल में स्थित घुलित ऑक्सीजन की मात्रा में वृद्धि होती है। माननीय कुलपति जी ने भ्रमण के दौरान उपस्थित शिक्षकों को निर्देशित करते हुए कहा कि विद्यार्थियों को इस स्थल के जल परीक्षण एवं पर्यावरणीय अध्ययन हेतु प्रेरित किया जाये। कुलपति जी के साथ प्राणिकी एवं जैव-प्रौद्योगिकी अध्ययनशाला के शिक्षकगण डॉ अरविन्द शुक्ल, डॉ शिवी भसीन एवं डॉ पूर्णिमा त्रिपाठी उपस्थित थे। 

विक्रम विश्वविद्यालय के कुलसचिव प्रोफेसर प्रशांत पुराणिक ने बताया कि कालियादेह महल में स्थित जल संरचना पुरातत्वीय महत्त्व की प्राचीन संरचना पद्धति को प्रदर्शित करती है। विक्रम विश्वविद्यालय के कुलानुशासक प्रोफेसर शैलेन्द्र कुमार शर्मा ने बताया कि इस रमणीय स्थल में इको टूरिज्म की अपार संभावनाए हैं। यह स्थल विद्यार्थियों के पर्यावरणीय अध्ययन हेतु अत्यंत उपयोगी है।

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