Skip to main content

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की मूलभावना एवं सिद्धान्तों के अनुरूप पाठ्यक्रमों का निर्माण एवं अद्यतन किया जाएगा - कुलपति प्रो पांडेय

स्नातक कार्यक्रमों के लिए पाठ्यचर्या तथा क्रेडिट फ्रेमवर्क पर महत्वपूर्ण बैठक संपन्न

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, नई दिल्ली द्वारा राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 के परिपालन में जारी स्नातक कार्यक्रमों के लिए पाठ्यचर्या तथा क्रेडिट फ्रेमवर्क को विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन में लागू करवाने के संबंध में कुलपति प्रो. अखिलेश कुमार पाण्डेय की अध्यक्षता में संकायाध्यक्षों, अध्ययन मण्डल के अध्यक्षों, विभागाध्यक्षों तथा अधिकारियों की बैठक दिनांक 24 फरवरी को माधव भवन स्थित शलाका दीर्घा सभागार में आयोजित की गयी। बैठक में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, नई दिल्ली द्वारा जारी स्नातक कार्यक्रमों के लिए पाठ्यचर्या तथा क्रेडिट फ्रेमवर्क पर बिन्दुवार विचार-विमर्श हुआ। कुलपति प्रो. अखिलेश कुमार पाण्डेय ने विगत वर्ष से लागू राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के पाठ्यक्रमों को पाठ्यचर्या तथा क्रेडिट फ्रेमवर्क के अनुरूप बनाने का परामर्श दिया। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की मूलभावना एवं सिद्धान्तों के अनुरूप पाठ्यक्रमों का निर्माण एवं उन्हें अद्यतन किया जाएगा।

बैठक में पाठ्यचर्या तथा क्रेडिट फ्रेमवर्क से बिन्दुवार अवगत कराने हेतु विद्यार्थी कल्याण संकायाध्यक्ष डॉ एस. के. मिश्रा ने पॉवर प्वाइण्ट प्रस्तुतिकरण दिया। प्रस्तुतिकरण में पाठ्यचर्या तथा क्रेडिट फ्रेमवर्क का परिचय देते हुए पाठ्यचर्या की रूपरेखा, एनईपी में उच्च शिक्षा में कई परिवर्तनकारी पहलों, पाठ्यक्रम के प्रकार द्वारा क्रेडिट की संख्या, विभिन्न प्रकार के पाठ्यक्रमों के लिए क्रेडिट, क्षमता वृद्धि पाठ्यक्रम, कौशल संवर्धन पाठ्यक्रम, मूल्य वर्धित पाठ्यक्रम, स्नातक कार्यक्रम के पाठ्यचर्या घटकों इत्यादि का परिचय दिया गया। बैठक में पाठ्यक्रम तथा क्रेडिट फ्रेमवर्क के बारे में प्रश्नों तथा संशयों का समाधान किया गया। बैठक में संकायाक्ष्यक्ष प्रो. दीपिका गुप्ता, प्रो. शैलेन्द्र कुमार शर्मा, प्रो. डी. एम. कुमावत, प्रो. शशिप्रभा जैन, डॉ मन्सूर खान, डॉ अरुणा सेठी सहित अध्ययनमण्डल के अध्यक्ष डॉ चन्द्रदीप यादव, डॉ ज्योति उपाध्याय, डॉ स्वाति दुबे, डॉ डी. डी. बेदिया, डॉ धर्मेन्द्र मेहता, डॉ संदीप तिवारी, डॉ राज बोरिया, डॉ वीरेन्द्र चावरे आदि उपस्थित रहे।

Comments

Popular posts from this blog

आधे अधूरे - मोहन राकेश : पाठ और समीक्षाएँ | मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे : मध्यवर्गीय जीवन के बीच स्त्री पुरुष सम्बन्धों का रूपायन

  आधे अधूरे - मोहन राकेश : पीडीएफ और समीक्षाएँ |  Adhe Adhure - Mohan Rakesh : pdf & Reviews मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा हिन्दी के बहुमुखी प्रतिभा संपन्न नाट्य लेखक और कथाकार मोहन राकेश का जन्म  8 जनवरी 1925 को अमृतसर, पंजाब में  हुआ। उन्होंने  पंजाब विश्वविद्यालय से हिन्दी और अंग्रेज़ी में एम ए उपाधि अर्जित की थी। उनकी नाट्य त्रयी -  आषाढ़ का एक दिन, लहरों के राजहंस और आधे-अधूरे भारतीय नाट्य साहित्य की उपलब्धि के रूप में मान्य हैं।   उनके उपन्यास और  कहानियों में एक निरंतर विकास मिलता है, जिससे वे आधुनिक मनुष्य की नियति के निकट से निकटतर आते गए हैं।  उनकी खूबी यह थी कि वे कथा-शिल्प के महारथी थे और उनकी भाषा में गज़ब का सधाव ही नहीं, एक शास्त्रीय अनुशासन भी है। कहानी से लेकर उपन्यास तक उनकी कथा-भूमि शहरी मध्य वर्ग है। कुछ कहानियों में भारत-विभाजन की पीड़ा बहुत सशक्त रूप में अभिव्यक्त हुई है।  मोहन राकेश की कहानियां नई कहानी को एक अपूर्व देन के रूप में स्वीकार की जाती हैं। उनकी कहानियों में आधुनिक जीवन का कोई-न-कोई विशिष्ट पहलू उजागर

मालवी भाषा और साहित्य : प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

MALVI BHASHA AUR SAHITYA: PROF. SHAILENDRAKUMAR SHARMA पुस्तक समीक्षा: डॉ श्वेता पंड्या Book Review : Dr. Shweta Pandya  मालवी भाषा एवं साहित्य के इतिहास की नई दिशा  लोक भाषा, लोक साहित्य और संस्कृति का मानव सभ्यता के विकास में अप्रतिम योगदान रहा है। भाषा मानव समुदाय में परस्पर सम्पर्क और अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम है। इसी प्रकार क्षेत्र-विशेष की भाषा एवं बोलियों का अपना महत्त्व होता है। भारतीय सभ्यता और संस्कृति से जुड़े विशाल वाङ्मय में मालवा प्रदेश, अपनी मालवी भाषा, साहित्य और संस्कृति के कारण महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। यहाँ की भाषा एवं लोक-संस्कृति ने  अन्य क्षेत्रों पर प्रभाव डालते हुए अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है। मालवी भाषा और साहित्य के विशिष्ट विद्वानों में डॉ. शैलेन्द्रकुमार शर्मा का नाम बड़े आदर से लिया जाता है। प्रो. शर्मा हिन्दी आलोचना के आधुनिक परिदृश्य के विशिष्ट समीक्षकों में से एक हैं, जिन्होंने हिन्दी साहित्य की विविध विधाओं के साथ-साथ मालवी भाषा, लोक एवं शिष्ट साहित्य और संस्कृति की परम्परा को आलोचित - विवेचित करने का महत्त्वपूर्ण एवं सार्थक प्रयास किया है। उनकी साहित्य

हिंदी कथा साहित्य / संपादक प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा

हिंदी कथा साहित्य की भूमिका और संपादकीय के अंश : किस्से - कहानियों, कथा - गाथाओं के प्रति मनुष्य की रुचि सहस्राब्दियों पूर्व से रही है, लेकिन उपन्यास या नॉवेल और कहानी या शार्ट स्टोरी के रूप में इनका विकास पिछली दो सदियों की महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है। हिंदी में नए रूप में कहानी एवं उपन्यास  विधा का आविर्भाव बीसवीं शताब्दी में हुआ है। वैसे संस्कृत का कथा - साहित्य अखिल विश्व के कथा - साहित्य का जन्मदाता माना जाता है। लोक एवं जनजातीय साहित्य में कथा – वार्ता की सुदीर्घ परम्परा रही है। इधर आधुनिक हिन्दी कथा साहित्य का विकास संस्कृत - कथा - साहित्य अथवा लोक एवं जनजातीय कथाओं की समृद्ध परम्परा से न होकर, पाश्चात्य कथा साहित्य, विशेषतया अंग्रेजी साहित्य के प्रभाव रूप में हुआ है।  कहानी कथा - साहित्य का एक अन्यतम भेद और उपन्यास से अधिक लोकप्रिय साहित्य रूप है। मनुष्य के जन्म के साथ ही साथ कहानी का भी जन्म हुआ और कहानी कहना - सुनना मानव का स्वभाव बन गया। सभी प्रकार के समुदायों में कहानियाँ पाई जाती हैं। हमारे देश में तो कहानियों की सुदीर्घ और समृद्ध परंपरा रही है। वेद - उपनिषदों में वर्णित यम-यम