Skip to main content

राजा हरिश्चंद्र माच और तुर्रा कलंगी शैली में मध्यम व्यायोग की सरस प्रस्तुति के साथ दो दिवसीय मालवा लोकनाट्य माच महोत्सव का हुआ शुभारंभ

लोक नाट्य माच और तुर्रा कलंगी की परंपराओं को संरक्षित और संवर्धित करने के प्रयास जरूरी – प्रो शर्मा

उज्जैन। संस्कृति विभाग, भारत सरकार एवं कालिदास संस्कृत अकादमी के सहयोग से अंकुर रंगमंच समिति, उज्जैन द्वारा पद्मभूषण पं सूर्यनारायण व्यास संकुल के मंच पर दो दिवसीय मालवा माच महोत्सव का शुभारंभ हुआ। इसमें अतिथि के रूप में विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के प्रभारी कुलपति प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा, वरिष्ठ रंगकर्मी शरद शर्मा, माचकार स्व श्री सिद्धेश्वर सेन की सुपुत्री श्रीमती कृष्णा वर्मा, गिरजेश व्यास एवं कालिदास संस्कृत अकादमी के निदेशक संतोष पंड्या विशेष रूप से उपस्थित थे। एनएसडी से प्रशिक्षित प्रख्यात रंगकर्मी श्री हफीज़ खान के संयोजन में यह समारोह विख्यात माचगुरु स्व. सिद्धेश्वर सेन की स्मृति में किया जा रहा है।


अपने उद्बोधन में प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि लगभग 300 वर्ष पुरानी माच और तुर्रा कलंगी की लोक परंपराएँ विलुप्ति की ओर हैं। इन्हें संरक्षित और संवर्धित करने के प्रयास नहीं किए गए तो यह लुप्त हो जाएगी। एक ओर जहां 30-40 वर्ष पहले मालवा में इस परंपरा के 50 अखाड़े कार्यरत थे, वहां अब मुश्किल से 40 से 90 आयु वर्ग के केवल 30-40 कलाकार ही शेष हैं। माच सम्पूर्ण नाट्य रूप है जो मालवा की पहचान है। लोक नाट्य माच की अपनी विशेष पहचान राग रागिनी और मुश्किल धुनों के कारण जानी जाती है। इस कारण बहुत कम लोग इस कठिन कला की ओर आकर्षित होते हैं। अगर इसे बचाना है तो पंचायत से लेकर राज्य सरकार और केंद्र सरकार को इस ओर ध्यान देना होगा। प्राथमिक से विश्वविद्यालय शिक्षा तक इसे पहचान दिलाने के लिए प्रयत्न करना होगा। लोक परम्पराओं के प्रति हमारी उदासीनता के कारण अपूरणीय नुकसान हुआ है। इन्हें बचाना हम सबका दायित्व है।

मध्यमव्यायोग की प्रस्तुति
उद्घाटन दिवस के कार्यक्रम में तुर्रा कलंगी शैली में भास के नाटक मध्यम व्यायोग का मंचन श्री हफी़ज़ खा़न के निर्देशन में किया गया। इसमें सूत्रधार बाबूलाल देवड़ा एवं सुधीर सांखला, हिडिंबा - विष्णु चंदेल, घटोत्कच - राजेंद्र चावड़ा, ब्राह्मण -टीकाराम भाटी, पुत्र - इरशाद खा़न, मध्यमा- सोनू बोड़ाणा, पुत्र तीन- बबलू भाटी, भीम- सुधीर सांखला, ब्राह्मणी- सीमा कुशवाहा ने भास रचित मध्यम व्यायोग में अपनी भूमिकाओं से प्रस्तुति में जीवित रंग उकेर दिए।

दूसरी प्रस्तुति अजय विजय गांगोलिया (गांगोलिया बंधु) का लोक एवं निर्गुण पंथी गायन था, जिसकी शुरुआत गणेश वंदना के साथ हुई। तत्पश्चात मालवा के लोकगीतों, निर्गुण गीतों एवं कबीर पंथी गीतों ने समा बांध दिया।

राजा हरिश्चंद्र माच की प्रस्तुति
तीसरी प्रस्तुति स्वर्गीय सिद्धेश्वर सेन द्वारा रचित राजा हरिश्चंद्र का मंचन बाबूलाल देवड़ा के निर्देशन में किया गया। इस माच में सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र की लोककथा को माच की सुंदर धुनों के साथ सजाया गया था। इसका मंच पर जिन कलाकारों ने सजीव अभिनीत किया उनमें राजा हरिश्चंद्र- बाबूलाल देवड़ा, रानी- विष्णु चंदेल, विश्वामित्र- सुधीर सांखला, भिश्ती / शेर मार खां / चांडाल- बबलू देवड़ा, चोबदार- बाबू भाटी, फर्रासन- टीकाराम, सोनू बोड़ाना, जज़ा सिद्दीकी, आयुषी चौहान, हीरामणि, दीपा सेन तथा विष्णु भगवान के रूप में सोनू बोड़ाना विशेष रूप से चर्चित रहे। मंच पार्श्व में ईवान खा़न एवं रोहन बॉथम का सहयोग रहा। साथ ही ढोलक- पप्पू चौहान/ विवेक धवन, हारमोनियम-रमेश असवार एवं मंजीरे पर रमेश मंडोर की संगत माच संगीत में सराहनीय रही। वरिष्ठ रंगकर्मी श्री हफी़ज़ खा़न के निर्देशन में, लोकनाट्य माच के विकास में, अंकुर रंगमंच समिति का यह दो दिवसीय समारोह एक अनूठा प्रयास है।

Comments

मध्यप्रदेश समाचार

देश समाचार

Popular posts from this blog

आधे अधूरे - मोहन राकेश : पाठ और समीक्षाएँ | मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे : मध्यवर्गीय जीवन के बीच स्त्री पुरुष सम्बन्धों का रूपायन

  आधे अधूरे - मोहन राकेश : पीडीएफ और समीक्षाएँ |  Adhe Adhure - Mohan Rakesh : pdf & Reviews मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा हिन्दी के बहुमुखी प्रतिभा संपन्न नाट्य लेखक और कथाकार मोहन राकेश का जन्म  8 जनवरी 1925 को अमृतसर, पंजाब में  हुआ। उन्होंने  पंजाब विश्वविद्यालय से हिन्दी और अंग्रेज़ी में एम ए उपाधि अर्जित की थी। उनकी नाट्य त्रयी -  आषाढ़ का एक दिन, लहरों के राजहंस और आधे-अधूरे भारतीय नाट्य साहित्य की उपलब्धि के रूप में मान्य हैं।   उनके उपन्यास और  कहानियों में एक निरंतर विकास मिलता है, जिससे वे आधुनिक मनुष्य की नियति के निकट से निकटतर आते गए हैं।  उनकी खूबी यह थी कि वे कथा-शिल्प के महारथी थे और उनकी भाषा में गज़ब का सधाव ही नहीं, एक शास्त्रीय अनुशासन भी है। कहानी से लेकर उपन्यास तक उनकी कथा-भूमि शहरी मध्य वर्ग है। कुछ कहानियों में भारत-विभाजन की पीड़ा बहुत सशक्त रूप में अभिव्यक्त हुई है।  मोहन राकेश की कहानियां नई कहानी को एक अपूर्व देन के रूप में स्वीकार की जाती हैं। उनकी कहानियों में आधुनिक जीवन का कोई-न-कोई विशिष्

तृतीय पुण्य स्मरण... सादर प्रणाम ।

https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=1003309866744766&id=395226780886414 Bekhabaron Ki Khabar - बेख़बरों की खबर Bekhabaron Ki Khabar - बेख़बरों की खबर Bkk News Bekhabaron Ki Khabar, magazine in Hindi by Radheshyam Chourasiya / Bekhabaron Ki Khabar: Read on mobile & tablets -  http://www.readwhere.com/publication/6480/Bekhabaron-ki-khabar

खाटू नरेश श्री श्याम बाबा की पूरी कहानी | Khatu Shyam ji | Jai Shree Shyam | Veer Barbarik Katha |

संक्षेप में श्री मोरवीनंदन श्री श्याम देव कथा ( स्कंद्पुराणोक्त - श्री वेद व्यास जी द्वारा विरचित) !! !! जय जय मोरवीनंदन, जय श्री श्याम !! !! !! खाटू वाले बाबा, जय श्री श्याम !! 'श्री मोरवीनंदन खाटू श्याम चरित्र'' एवं हम सभी श्याम प्रेमियों ' का कर्तव्य है कि श्री श्याम प्रभु खाटूवाले की सुकीर्ति एवं यश का गायन भावों के माध्यम से सभी श्री श्याम प्रेमियों के लिए करते रहे, एवं श्री मोरवीनंदन बाबा श्याम की वह शास्त्र सम्मत दिव्यकथा एवं चरित्र सभी श्री श्याम प्रेमियों तक पहुंचे, जिसे स्वयं श्री वेद व्यास जी ने स्कन्द पुराण के "माहेश्वर खंड के अंतर्गत द्वितीय उपखंड 'कौमारिक खंड'" में सुविस्तार पूर्वक बहुत ही आलौकिक ढंग से वर्णन किया है... वैसे तो, आज के इस युग में श्री मोरवीनन्दन श्यामधणी श्री खाटूवाले श्याम बाबा का नाम कौन नहीं जानता होगा... आज केवल भारत में ही नहीं अपितु समूचे विश्व के भारतीय परिवार ने श्री श्याम जी के चमत्कारों को अपने जीवन में प्रत्यक्ष रूप से देख लिया हैं.... आज पुरे भारत के सभी शहरों एवं गावों में श्री श्याम जी से सम्बंधित संस्थाओं