Skip to main content

विश्व हिंदी दिवस के अवसर पर पुणे के पूना कॉलेज में हिंदी में रोजगार के अवसर विषय पर हुआ संगोष्ठी का आयोजन

पुणे। विश्व हिंदी दिवस के अवसर पर पुणे के पूना कॉलेज में हिंदी में रोजगार के अवसर विषय पर संगोष्ठी का आयोजन हुआ । विश्व हिंदी दिवस पर पूना कॉलेज पुणे में आर्ट्स एंड साइंस कॉलेज के कांफ्रेंस हाल में समारोह की अध्यक्षता प्राचार्य रहमान शेख ने की, समारोह के मुख्य वक्ता हिंदी एवं नागरी लिपि के प्रवक्ता डॉक्टर साहब उद्दीन शेख तथा मुख्य अतिथि राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना के महासचिव डॉक्टर प्रभु चौधरी एवं विशिष्ट वक्ता डॉक्टर बाबा साहब शेख रहे।

समारोह का शुभारंभ भारत माता वंदना से हुआ तत्पश्चात विशिष्ट अतिथि श्री शेख साहब ने प्रस्तावना में विश्व में हिंदी की स्थिति पर अपने विचार व्यक्त किए।

मुख्य वक्ता डॉक्टर साहब उद्दीन शेख आपने कहा कि, विश्व में हिंदी के महाविद्यालय एवं विश्वविद्यालयों की जानकारी देते हुए हिंदी के लिए कार्यकारिणी एवं हिंदी का प्रचार प्रसार करने एवं नागरी लिपि में लेखन का आह्वान किया ।

मुख्य अतिथि डॉक्टर प्रभु चौधरी ने विश्व में हिंदी का बढ़ता प्रभाव सफलता एवं संभावनाएं विषय पर व्याख्यान दिया । डॉ चौधरी में हिंदी को व्यावहारिक जीवन में अपनाने पर विचार व्यक्त किए।

समारोह के अध्यक्ष प्राचार्य श्री शेख ने कहा कि, हिंदी भाषी क्षेत्र में तो हिंदी का प्रयोग किया जाता है परंतु दक्षिण भारत में हिंदी भाषी नागरिकों द्वारा हिंदी में प्रयोग करने पर हिचकिचाहट होती है इसीलिए परिवार में बचपन से ही हिंदी सिखाना चाहिए, सीखना चाहिए जिससे भविष्य में विश्व स्तर की प्रतियोगिताओं एवं रोजगार प्राप्त किया जा सकता है ।

संगोष्ठी का संचालन हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ साकिर शेख ने एवं आभार डॉक्टर बाबा साहब शेख ने माना ।

इस अवसर पर श्रीमती श्वेता मिश्रा, श्रीमान मिश्रा, डॉ भावना गुप्ता एवं सुश्री रजनी प्रभा, श्रीमती संध्या सिंह सहित अन्य महाविद्यालयों के प्राध्यापक, हिंदी के छात्र एवं गणमान्य नागरिक उपस्थित रहे।

Comments

मध्यप्रदेश समाचार

देश समाचार

Popular posts from this blog

आधे अधूरे - मोहन राकेश : पाठ और समीक्षाएँ | मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे : मध्यवर्गीय जीवन के बीच स्त्री पुरुष सम्बन्धों का रूपायन

  आधे अधूरे - मोहन राकेश : पीडीएफ और समीक्षाएँ |  Adhe Adhure - Mohan Rakesh : pdf & Reviews मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा हिन्दी के बहुमुखी प्रतिभा संपन्न नाट्य लेखक और कथाकार मोहन राकेश का जन्म  8 जनवरी 1925 को अमृतसर, पंजाब में  हुआ। उन्होंने  पंजाब विश्वविद्यालय से हिन्दी और अंग्रेज़ी में एम ए उपाधि अर्जित की थी। उनकी नाट्य त्रयी -  आषाढ़ का एक दिन, लहरों के राजहंस और आधे-अधूरे भारतीय नाट्य साहित्य की उपलब्धि के रूप में मान्य हैं।   उनके उपन्यास और  कहानियों में एक निरंतर विकास मिलता है, जिससे वे आधुनिक मनुष्य की नियति के निकट से निकटतर आते गए हैं।  उनकी खूबी यह थी कि वे कथा-शिल्प के महारथी थे और उनकी भाषा में गज़ब का सधाव ही नहीं, एक शास्त्रीय अनुशासन भी है। कहानी से लेकर उपन्यास तक उनकी कथा-भूमि शहरी मध्य वर्ग है। कुछ कहानियों में भारत-विभाजन की पीड़ा बहुत सशक्त रूप में अभिव्यक्त हुई है।  मोहन राकेश की कहानियां नई कहानी को एक अपूर्व देन के रूप में स्वीकार की जाती ...

खाटू नरेश श्री श्याम बाबा की पूरी कहानी | Khatu Shyam ji | Jai Shree Shyam | Veer Barbarik Katha |

संक्षेप में श्री मोरवीनंदन श्री श्याम देव कथा ( स्कंद्पुराणोक्त - श्री वेद व्यास जी द्वारा विरचित) !! !! जय जय मोरवीनंदन, जय श्री श्याम !! !! !! खाटू वाले बाबा, जय श्री श्याम !! 'श्री मोरवीनंदन खाटू श्याम चरित्र'' एवं हम सभी श्याम प्रेमियों ' का कर्तव्य है कि श्री श्याम प्रभु खाटूवाले की सुकीर्ति एवं यश का गायन भावों के माध्यम से सभी श्री श्याम प्रेमियों के लिए करते रहे, एवं श्री मोरवीनंदन बाबा श्याम की वह शास्त्र सम्मत दिव्यकथा एवं चरित्र सभी श्री श्याम प्रेमियों तक पहुंचे, जिसे स्वयं श्री वेद व्यास जी ने स्कन्द पुराण के "माहेश्वर खंड के अंतर्गत द्वितीय उपखंड 'कौमारिक खंड'" में सुविस्तार पूर्वक बहुत ही आलौकिक ढंग से वर्णन किया है... वैसे तो, आज के इस युग में श्री मोरवीनन्दन श्यामधणी श्री खाटूवाले श्याम बाबा का नाम कौन नहीं जानता होगा... आज केवल भारत में ही नहीं अपितु समूचे विश्व के भारतीय परिवार ने श्री श्याम जी के चमत्कारों को अपने जीवन में प्रत्यक्ष रूप से देख लिया हैं.... आज पुरे भारत के सभी शहरों एवं गावों में श्री श्याम जी से सम्बंधित संस्थाओं...

दुर्गादास राठौड़ : जिण पल दुर्गो जलमियो धन बा मांझल रात - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

अमरवीर दुर्गादास राठौड़ : जिण पल दुर्गो जलमियो धन बा मांझल रात। - प्रो शैलेन्द्रकुमार शर्मा माई ऐड़ा पूत जण, जेहड़ा दुरगादास। मार मंडासो थामियो, बिण थम्बा आकास।। आठ पहर चौसठ घड़ी घुड़ले ऊपर वास। सैल अणी हूँ सेंकतो बाटी दुर्गादास।। भारत भूमि के पुण्य प्रतापी वीरों में दुर्गादास राठौड़ (13 अगस्त 1638 – 22 नवम्बर 1718)  के नाम-रूप का स्मरण आते ही अपूर्व रोमांच भर आता है। भारतीय इतिहास का एक ऐसा अमर वीर, जो स्वदेशाभिमान और स्वाधीनता का पर्याय है, जो प्रलोभन और पलायन से परे प्रतिकार और उत्सर्ग को अपने जीवन की सार्थकता मानता है। दुर्गादास राठौड़ सही अर्थों में राष्ट्र परायणता के पूरे इतिहास में अनन्य, अनोखे हैं। इसीलिए लोक कण्ठ पर यह बार बार दोहराया जाता है कि हे माताओ! तुम्हारी कोख से दुर्गादास जैसा पुत्र जन्मे, जिसने अकेले बिना खम्भों के मात्र अपनी पगड़ी की गेंडुरी (बोझ उठाने के लिए सिर पर रखी जाने वाली गोल गद्देदार वस्तु) पर आकाश को अपने सिर पर थाम लिया था। या फिर लोक उस दुर्गादास को याद करता है, जो राजमहलों में नहीं,  वरन् आठों पहर और चौंसठ घड़ी घोड़े पर वास करता है और उस पर ही बैठकर बाट...