कुलपति प्रो सी. जी. विजयकुमार मेनन ने कहा कि आचार्य राममूर्ति त्रिपाठी उच्च कोटि के विद्वान और आलोचक थे। उन्होंने साहित्य शास्त्र के सभी प्रमुख पक्षों पर लिखा है। उनके ग्रंथ भारतीय काव्यशास्त्र के उज्ज्वल पक्षों को उजागर करते हैं। प्रत्येक व्यक्ति उनके कम से कम एक ग्रंथ को एक वर्ष में पूरी तरह पढ़ने का संकल्प अवश्य ले।
विक्रम विश्वविद्यालय के प्रभारी कुलपति प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा ने कहा कि आचार्य राममूर्ति त्रिपाठी की आलोचना व्यापक दृष्टि लिए हुए है। वे एक समावेशी और सम्पूर्ण समालोचक हैं। उसमें भारतीय काव्यशास्त्र, दर्शन, धर्म साधना, भक्ति और ज्ञान विविध आयामों का सार्थक समावेश दिखाई देता है। काव्य के रसात्मक प्रतिमान को उन्होंने सर्वोपरि माना। उन्होंने काव्य चिंतन और सौंदर्यशास्त्र की दृष्टि से भारतीय ज्ञान प्रणाली के उदात्त तत्वों को अनेक दशकों पूर्व नए सिरे से प्रतिष्ठित किया। उन्होंने आलोचना को कृति की मूल संवेदना का साक्षात्कार माना है, जिसका सर्जनात्मक पुनराख्यान आलोचक करता है। वर्तमान दौर में इस आलोचना दृष्टि की प्रासंगिकता बढ़ती जा रही है। वर्ष 2028 से आचार्य राममूर्ति त्रिपाठी के जन्म शताब्दी वर्ष को बड़े पैमाने पर मनाया जाएगा।
वरिष्ठ साहित्यकार डॉ शिव चौरसिया ने कहा कि आचार्य त्रिपाठी उज्जयिनी की महान विद्वत परंपरा के उज्ज्वलतम नक्षत्र हैं। उन्होंने ऐसे अनेक शिष्यों को तैयार किया, जो उनकी परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं।
पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो हरिमोहन बुधौलिया ने कहा कि आचार्य राममूर्ति त्रिपाठी ने अनेक पीढ़ियों के युवाओं को प्रेरणा दी। उनके द्वारा बताए गए मूल्यों को जीवन में उतारने की चेष्टा करें।
डॉ गोविंद गन्धे ने कहा कि संस्कृत भाषा के क्षेत्र में नए नए प्रयोग हो रहे हैं। हिंदी संस्कृत के बहुत अधिक निकट है। संस्कृत बहुत सरल भाषा है, जिसे बड़ी आसानी से निरन्तर अभ्यास के माध्यम से सीखा जा सकता है।
डॉक्टर जगदीश चंद्र शर्मा ने आचार्य त्रिपाठी के सादगीपूर्ण जीवन से जुड़े अनेक आत्मीय संस्मरण सुनाए।
वरिष्ठ संस्कृतविद् डॉ गोविंद गन्धे को अतिथियों द्वारा शॉल, श्रीफल एवं सम्मान राशि अर्पित कर उन्हें आचार्य राममूर्ति त्रिपाठी सम्मान से अलंकृत किया गया।
इस दौरान विद्यार्थी कल्याण संकायाध्यक्ष डॉ एस के मिश्रा, डॉ सुशील शर्मा, श्रीमती हीना तिवारी आदि सहित अनेक साहित्यकार, विभिन्न प्रान्तों के शोधकर्ता, एवं विद्यार्थी उपस्थित थे।
संगोष्ठी का संचालन डॉ जगदीश चंद्र शर्मा ने एवं आभार प्रदर्शन शिक्षा देवी, नई दिल्ली ने किया।
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