विक्रम विश्वविद्यालय में हुआ आचार्य श्री प्रज्ञासागर जी महाराज का शिक्षा में क्रांति पर विशिष्ट व्याख्यान
जैन धर्म में स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम प्रारंभ होगा भारत अध्ययन केंद्र, विक्रम विश्वविद्यालय में
विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन एवं महावीर तपोभूमि ट्रस्ट, भद्रबाहु प्रज्ञापीठ के मध्य एमओयू पर हस्ताक्षर किए गए
उज्जैन । विक्रम विश्वविद्यालय प्रसिद्ध सन्त आचार्य श्री प्रज्ञासागर जी महाराज का विशिष्ट व्याख्यान हुआ। उन्होंने शिक्षा में क्रांति विषय पर व्याख्यान के माध्यम से विक्रम कीर्ति मंदिर में उपस्थित सैकड़ों सुधी जनों को लाभान्वित किया। अध्यक्षता विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कुलपति प्रो अखिलेश कुमार पांडेय ने की।
अपने प्रेरणादायक व्याख्यान में तपोभूमि प्रणेता आचार्य 108 श्री प्रज्ञासागर जी महाराज ने कहा कि शिक्षा सदा से महत्त्वपूर्ण रही है। ऐसा कोई काल नहीं रहा, जब इसकी महिमा न रही हो। माताएँ अपनी - अपनी परम्परा और धर्म के अनुसार शिक्षा देती रही हैं। बड़े होने पर उन बच्चों में वैचारिक खींचतान प्रारम्भ हो जाती है। इसलिए शिक्षा में क्रांति की आवश्यकता है। नई पीढ़ी को इंसानियत सिखाने से परिवर्तन सम्भव है। आज युवा पीढ़ी में विश्वास जाग्रत करने की जरूरत है। आज जरूरी है कि विद्यालयों में मानव धर्म की शिक्षा दी जाए। दुनिया के सभी धर्म, सभी भगवान कहते हैं कि मानव बनो। विश्वास के स्थान पर विचार जगाने की दिशा में ध्यान दिया जाना चाहिए। लोगों को अनुशासित बनाने के बजाय विवेकवान बनाना चाहिए। हंस की तरह विवेक जाग्रत करने का काम शिक्षा करती है। विवेकशील बनाने पर व्यक्ति हाँ को हाँ कह पाएगा, ना को ना कह सकेगा। जो भी पढ़ाया जाए वह बच्चों को इंसान बनाए, विवेकवान बनाए। शिक्षा संस्थाओं में सिद्धांतों के ज्ञान के साथ साथ प्रायोगिक शिक्षा भी दी जाना चाहिए। गुरुकुलों में शिक्षा देने के साथ दीक्षार्थी को कार्य करना भी सिखाया जाता था। शिक्षा केंद्रों में बच्चों को तन, मन और जीवन से मजबूत बनाने का कार्य हो। नए दौर में गुरुकुल शिक्षा को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है। संस्कारयुक्त शिक्षा ग्रेट बनाता है, जबकि संस्कारविहीन शिक्षा केवल ग्रेजुएट बनाती है। हमें शिक्षा पर सम्यक् ढंग से सोचने की आवश्यकता है। भारत में संन्यासियों की महिमा रही है, सत्ताधीशों की नहीं। शासन द्वारा शिक्षा नीति में परिवर्तन का कार्य किया जा रहा है, जो महत्त्वपूर्ण है। मातृभाषा के माध्यम से शिक्षा पर बल दिए जाने की जरूरत है। हिंदी को लेकर गौरव का भाव हम सब में हो, हिंदी का बहुमान होना चाहिए। शिक्षकों की बहुत बड़ी जिम्मेदारी है, वह चाणक्य बनकर चंद्रगुप्त को तैयार करे, वह नई पीढ़ी को संस्कारवान बनाए। शिक्षा बंधन में नहीं बांधती, स्वतंत्रता देती है। स्वतंत्रता, स्वछंदता नहीं है, व्यक्ति को खुले आसमान में उड़ना सिखाए, यह शिक्षा का उद्देश्य है। अज्ञात को जानने की कोशिश विद्यार्थी की होना चाहिए।



स्वागत भाषण कार्यपरिषद सदस्य श्री संजय नाहर ने दिया। महाराजश्री को श्रीफल अर्पित कर उनका अभिवादन कुलपति प्रो अखिलेश कुमार पांडेय, पूर्व कुलपति प्रो रामराजेश मिश्र, न्यायाधीश श्री अरविंद जैन, श्रीमती अरुणा सारस्वत, कुलसचिव डॉ प्रशांत पुराणिक, कार्यपरिषद सदस्य श्री संजय नाहर, श्री विनोद यादव, कुलानुशासक प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा, भारत अध्ययन केंद्र के निदेशक डॉ सचिन राय, डॉ रमण सोलंकी, डॉ अजय शर्मा आदि ने किया। इस अवसर पर बड़ी संख्या में विश्वविद्यालय के विभागाध्यक्ष, शिक्षक, अधिकारी, कर्मचारी, विद्यार्थी और समाजजन उपस्थित थे।
कार्यक्रम के संयोजक कार्यपरिषद सदस्य एडवोकेट श्री संजय नाहर थे। संचालन डॉ अरिहंत जैन ने किया। आभार प्रदर्शन कुलसचिव डॉ प्रशांत पुराणिक ने किया।
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