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दो उपनिवेशों का सामना करते हुए भारत और मॉरीशस ने अपनी संस्कृति को बचाए रखा - राज हीरामन

भारत - मॉरीशस संबंध : साहित्य, संस्कृति और सिनेमा पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी संपन्न

मॉरीशस के प्रसिद्ध साहित्यकार श्री राज हीरामन विश्व हिंदी सेवी सम्मान से सम्मानित

उज्जैन। विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन की पत्रकारिता एवं जनसंचार अध्ययनशाला और हिंदी अध्ययनशाला के संयुक्त तत्वावधान में भारत - मॉरीशस संबंध : साहित्य, संस्कृति और सिनेमा के परिप्रेक्ष्य पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी के मुख्य अतिथि मॉरीशस के प्रख्यात साहित्यकार श्री राज हीरामन थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कुलपति प्रो अखिलेश कुमार पांडेय ने की। इस अवसर पर मॉरीशस के प्रधानमंत्री कार्यालय के विशेष कर्तव्यस्थ अधिकारी श्री ईश्वरदत्त अबाना, विक्रम विश्वविद्यालय के कला संकायाध्यक्ष एवं विभागाध्यक्ष प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा, मॉरीशस के शिक्षाविद् श्री ब्रह्मदत्त अलबाना, पर्यटन प्रबन्धक श्री सुखेन्द्र रामदास आदि ने अपने विचार व्यक्त किए। इस अवसर पर प्रख्यात साहित्यकार श्री राज हीरामन को अतिथियों ने विश्व हिंदी सेवी सम्मान से सम्मानित किया।


मॉरीशस से पधारे वरिष्ठ साहित्यकार श्री राज हीरामन ने उद्बोधन में मॉरीशस के साहित्य और संस्कृति के सम्बंध में बताते हुए कहा कि हमारे साहित्य में भारतीय संस्कृति है। प्रवासी लेखन भारतीय संस्कृति के बिना कुछ नहीं है। हमारे साहित्य में आजादी के पहले के वही कोड़े दिखेंगे जो दो सौ साल से हमारी पीठ पर हैं। साहित्य में शोले के अंगारे दिखेंगे, आंधियों की हवा दिखेगी। नदियों की कलकल नहीं, हमारे साहित्य में वो नदी दिखेगी जो विपरीत धारा में बहती है। बैठका की परंपरा के माध्यम से मॉरीशसवासियों ने अपनी भाषा और संस्कृति की रक्षा की। दुनिया में भारत और मॉरीशस ऐसे देश हैं, जिन्होंने दो उपनिवेशों का डटकर सामना किया और अपनी संस्कृति और अपने देश का गौरव बनाए रखा। विपरीत परिस्थितियां होते हुए भी मॉरिशस में बसे भारतवंशियों ने अपनी संस्कृति को जीवित रखा हैं। मॉरिशस में 60 वर्ष की आयु के बाद पेंशन योजना, शिक्षा, आवागमन सब सेवाएं सरकार की तरफ से मुफ्त में हैं। इस तरह की सोच तो किसी वसुधैव कुटुंबकम् वाली मानसिकता रखने वाले भारतीय व्यक्ति की ही हो सकती है। संस्कृत और हिंदी भाषा की महत्ता बताते हुए उन्होंने कहा कि भाषा हमारे लिए मां है। हिंदी हमारे लिए भाषा नहीं, संपूर्ण संस्कृति है। अंग्रेजी मैकाले की शिक्षा नीति की देन थी और आज मैकाले के देश इंग्लैंड के लोग ही संस्कृत और हिंदी सीखना चाहते हैं। भारतीय संस्कृति और संस्कार से व्यक्ति का आचरण और उसके व्यवहार में सकारात्मक परिवर्तन आते हैं। यह समाज में शौर्य और मान दिलाते हैं।

अध्यक्षीय उद्बोधन में कुलपति प्रो अखिलेश कुमार पाण्डेय ने अतिथियों का अभिनंदन किया और कहा कि मॉरिशस और भारतीय संस्कृति और साहित्य में अत्यधिक समानता है। मॉरीशस के लोग वहाँ भारतीय संस्कृति को आज भी सहेजे हुए हैं। मॉरीशस की संस्कृति, साहित्य और प्राकृतिक सौंदर्य - सब देखने लायक है।

विक्रम विश्वविद्यालय के कुलानुशासक प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा ने अपने मॉरीशस प्रवास के संस्मरण सुनाते हुए कहा कि मॉरिशस को हम लघु भारत कहते हैं। मॉरीशसवासियों ने अपने श्रम के पसीने और रक्त से उस मिट्टी को सींचा है। आज मॉरीशस अफ्रीका की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। भारतीय संस्कृति के अनेक उज्ज्वल पक्षों को उन्होंने बिना किसी बदलाव के अपने घर - परिवार में सुरक्षित रखा है। भारत की लोक परंपराओं और विश्वासों को उन्होंने जीवित रखा है। इसका श्रेय वहां बसे लाखों भारतवंशियों को जाता है। मॉरीशस के हिंदी साहित्य में भारतीयता की सुवास व्याप्त है। 2 नवंबर 1834 को 36 भारतीय मज़दूर मॉरीशस में अनुबंध पर मज़दूरी करने गए थे। इस पहले दल ने जिन चौदह सीढ़ियों पर चढ़कर मॉरीशस की ज़मीन पर कदम रखा था, वो आज भी मौजूद हैं और उनके दर्दीले संघर्ष की गाथा कह रही हैं।

मॉरीशस के प्रधानमंत्री कार्यालय के विशेष कर्तव्य अधिकारी श्री ईश्वरदत्त अबाना ने अपने उद्बोधन में कहा कि मॉरिशस में लोग रामायण पढ़ते और उसका गायन करते हैं। उन्होंने स्वयं साठ से ज्यादा रामायण के सत्संग और उसके पाठ किए हैं। मॉरीशस में इंडिया म्यूजिक अकादमी नाम से एक संस्था भी है, जहां भारतीय संगीत और रामायण का गायन भी सिखाया जाता है।

मॉरीशस के पर्यटन प्रबन्धक श्री सुखेन्द्र रामदास, मॉरीशस ने अपने उद्बोधन में कहा कि मॉरीशस की अनेक लोकेशन भारतीय सिने निर्माताओं के लिए आकर्षण का केंद्र रही है। वहां सौतन, चांदी सोना, अलबेला जैसी अनेक लोकप्रिय फिल्मों की शूटिंग हुई है। आज हमें भारत भूमि पर आकर अत्यंत हर्ष हो रहा है। ऐसा लग रहा है जैसे हम अपने दूसरे घर में आ गए हैं।

मॉरीशस के शिक्षाशास्त्री श्री ब्रह्मदत्त अलबाना ने मॉरिशस की शिक्षा प्रणाली के बारे में बताते हुए कहा कि वहां शिक्षा मुफ्त में कराई जाती है। अफ्रीका का सबसे पढ़ा लिखा देश मॉरीशस है। मॉरीशस जैसी शिक्षा प्रणाली तो किसी विकसित देश में भी नहीं है।

प्रारम्भ में अतिथि परिचय और कार्यक्रम की पीठिका डॉ जगदीश चंद्र शर्मा ने प्रस्तुत की। कार्यक्रम में डॉ सुशील शर्मा, डॉ अजय शर्मा, श्रीमती हीना तिवारी सहित अनेक शोधार्थी, विद्यार्थी बड़ी संख्या में उपस्थित थे।

संचालन डॉ. जगदीशचंद्र शर्मा ने किया। आभार प्रदर्शन डॉ. अजय शर्मा ने किया।

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