गुरु नानक जयंती पर हुआ राष्ट्रीय परिसंवाद
उज्जैन। विक्रम विश्वविद्यालय के गुरुनानक अध्ययन पीठ एवं हिंदी अध्ययनशाला द्वारा गुरु नानक जयंती के अवसर पर राष्ट्रीय परिसंवाद का आयोजन किया गया। यह परिसंवाद गुरु नानक देव जी का सार्वभौमिक संदेश विषय पर अभिकेंद्रित था। कार्यक्रम में उपस्थित जनों ने गुरु नानक देव जी के चित्र एवं गुरु ग्रंथ साहिब पर पुष्पांजलि अर्पित की।
परिसंवाद को संबोधित करते हुए हिंदी विभागाध्यक्ष एवं कुलानुशासक प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि भारत में सामाजिक जकड़न और जड़ता को दूर करने तथा मानवता को आलोकित करने का कार्य गुरुनानक जी ने किया। भारतीय सांस्कृतिक आकाश पर सूर्य की भांति गुरुनानक जी प्रकट हुए। गुरुनानक देव जी ने अनेक सदियों से सभी क्षेत्रों में व्याप्त अंधकार को काटकर उजाला फैलाया था। तत्कालीन समाज, धर्म एवं राजनीति की विसंगतियों को हटाने का उन्होंने सार्थक प्रयास किया, जो आज भी प्रेरणादायी है। उन्होंने गुरुनानक को विश्व मानवता का पर्याय बताया है।
प्रो गीता नायक ने कहा कि गुरुनानक द्वारा प्रवर्तित सिक्ख धर्म पहला ऐसा धर्म है जिसने ग्रंथ को ही गुरु मान लिया है। नानकदेव जी के अनुसार मानवता की सेवा सबसे बड़ी सेवा है।
डॉ जगदीश चंद्र शर्मा ने कहा कि गुरु नानक देव जी ने बहुत बड़े लोक समुदाय को प्रभावित किया। नए ढंग से जीने और दुनिया को देखने का नजरिया दिया। उनका मार्ग पलायन से परे गहरे दायित्वबोध का मार्ग है।
डॉ. प्रतिष्ठा शर्मा ने कहा कि गुरुनानक जी परोपकार पर बल देते हैं। देश में एकता स्थापित हो सके, इस पर उन्होंने बहुत बाल दिया है। कबीर एवं अन्य संतों की परंपरा में गुरुनानक का महत्वपूर्ण स्थान है।
शोधार्थी ज्योति शर्मा ने कहा कि गुरुनानक का मानना है कि जो व्यक्ति ईश्वर की भक्ति करता है, उसे मान- प्रतिष्ठा सब मिलती है।
श्री अनुराग वर्मा, राजस्थान ने गुरुनानक का प्रसंग सुनते हुए बताया कि जो सज्जनता का और परोपकार का पालन करता है वह चारों दिशाओं में ख्याति प्राप्त करता है।
कार्यक्रम का संचालन श्यामलाल चौधरी ने किया। आभार पूजा परमार ने माना।
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