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संविधान दिवस पर हुआ भारत : लोकतंत्र की जननी पर केंद्रित विशिष्ट परिसंवाद

मौलिक कर्त्तव्यों का पालन निष्ठापूर्वक करना होगा - डॉ. ठाकुर

वैदिक काल से लोकतंत्र के पक्ष में खड़ा है भारत – प्रो शर्मा

संविधान दिवस पर हुआ भारत : लोकतंत्र की जननी पर केंद्रित विशिष्ट परिसंवाद

उज्जैन। विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन की डॉ. अम्बेडकर पीठ और कृषि विज्ञान अध्ययनशाला के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित संविधान दिवस पर द्वारा संविधान दिवस के अवसर पर विशिष्ट परिसंवाद का आयोजन किया गया। यह परिसंवाद भारत लोकतंत्र की जननी पर केंद्रित था। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि वक्ता अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त  पुरातिहासकार एवं मुद्राशास्त्री डॉ आर सी ठाकुर थे। अध्यक्षता विक्रम विश्वविद्यालय के प्रभारी कुलपति प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा ने की।

मुद्राशास्त्री एवं पुरातिहासकार डॉ. आर.सी. ठाकुर ने भारत : लोकतंत्र की जननी विषय पर विचार व्यक्त करते हुए कहा कि भारतीय लोकतंत्र भारतीय जनता के हेतु भारतीय नागरिकों द्वारा निर्वाचित जनता का शासन। स्पष्ट है भारतीय लोकतंत्र भारतीय नागरिकों की सद्भावना, सद्इच्छा और लोक कल्याण का प्रतीक है। ऐसा शासन जिसमें लोक समाहित हो भेदभाव, जातिवाद से रहित तंत्र। और यह सब तब संभव जब एक नियम हो, नीति हो, विधान हो, अर्थात संविधान हो। जो हमें स्वतंत्र देश का स्वतंत्र नागरिक होने का बोध कराए। आज 26 नवंबर 1949 ही वह दिन था, जिसने हमें यह गौरव दिलाया और 26 जनवरी 1950 को विधिवत रूप संविधान को लागू किया गया। जिसे हम गणतंत्र दिवस के रूप में मनाते हैं। संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकार हमारे व्यक्तित्व का विकास तो कर ही रहे हैं हमारा सुरक्षा कवच भी है। वहीं दूसरी ओर मौलिक कर्तव्य हमें जिम्मेदारी की याद दिलाते हैं। अधिकार जहाँ हमारे विकास के लिए आवश्यक है ठीक उसी तरह कर्त्तव्य देश के विकास के लिए आवश्यक है। अत: आवश्यक है कि संविधान दिवस पर हम सब यह संकल्प लें मौलिक कर्त्तव्यों का पालन पूरी निष्ठा से करेंगे।

डा. ठाकुर ने कहा कि भारत के लोकतंत्र में प्राचीनकाल से लोक मुखर हैं। राजा, रजवाड़े, परिवारवाद से बने शासन में जनता का अंकुश रहा। भारत विश्वभर में सबसे बड़ा लोकतंत्र है। जिस पर कई सदियों तक राजाओं, सम्राटों तथा यूरोपीय साम्राज्यवादियों द्वारा शासन किया गया। लेकिन आज संगठित राष्ट्र के रूप में स्थापित है। अनेक चुनौतियों, विषम परिस्थितियों को पार कर 1947 में लोकतांत्रिक सरकार का गठन हुआ। जाति, रंग, पंथ, धर्म के वैविध्य के बावजूद हमारी छत एक ही हैं, हमारा संविधान। भारत को लोकतंत्र की जननी कहा ही इसलिए गया है क्योंकि विश्व का एकमात्र राष्ट्र भारत ही है, जो संप्रभु, समाजवाद, धर्म निरपेक्षता, लोकतांत्रिक, गणराज्य के लोकतांत्रिक सिद्धांतों पर कार्य करता है। इसलिए इसे विश्व का मतलब सिर्फ मताधिकार नहीं है, बल्कि सामाजिक और आर्थिक समातना को भी सुनिश्चित करना है। भारत की विशाल सांस्कृतिक, धार्मिक, भाषाई विविधता को एक सूत्र में पिरोकर लोकतंत्र को निष्पक्ष और पारदर्शी व्यवस्था के रूप में स्थापित किया है। जिसमें हमें एक ऐसी जीवन पद्धति मिली, जहाँ स्वतंत्रता, समता और बंधुता हमारे जीवन के मूल सिद्धांत हो गए हैं। ये सिद्धांत बाबा साहेब के हैं और डॉ. आम्बेडकर के इन सिद्धांतों को पूरा करने का दायित्व युवाओं पर है।

अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुए विक्रम विश्वविद्यालय के प्रभारी कुलपति प्रो. शैलेन्द्र कुमार शर्मा ने कहा कि भारतीय संविधान स्व से निर्मित है अर्थात् हम से, व्यक्ति विशेष से नहीं है। मसौदा समिति के अध्यक्ष डॉ. आम्बेडकर की सामाजिक चेतना से आप्लावित सामाजिक समरसता, निष्पक्षता का संदेश प्रवाहित करता है हमारा संविधान। भारत विश्व की सबसे पुरानी सभ्यताओं में से है, जिसमें विविधता में एकता और समृद्ध सामाजिक विरासत है। भारतीय संस्कृति इस विषय में अन्य संस्कृतियों से भिन्न है, क्योंकि आज भी भारत अपनी प्राचीनतम परम्पराओं को संजोने के साथ नवीनता लाता है और ऐसी नवीनता सामाजिक समरसता और लोक चेतना से जुड़ी हो। वैदिक काल से भारत लोकतंत्र के पक्ष में ही खड़ा है। वैदिक काल में सभा, समिति जैसी संस्थाओं और ऐतिहासिक कालों में विभिन्न गणराज्यों की उपस्थिति लोकतंत्र के प्रमाण हैं। भारत लोकतंत्र की ही भूमि है। इसके चार साक्ष्य उपस्थिति है- पुरातात्विक साक्ष्य हैं, जो अभिलेखों, मुद्राओं, स्थलों, प्रागैतिहासिक काल से इतिहास तक उपलब्ध हैं। पौराणिक आख्यानों के प्रमाण बताते हैं कि भारत लोकतंत्र की जननी है। साहित्यिक साक्ष्य, रामायण, महाभारत, कालिदास, भास, कबीर ऐसे राजधर्म की चर्चा करते हैं जो लोकसत्ता में विश्वास रखता हो और चौथा साक्ष्य लोक साक्ष्य, जो ग्राम सभा, गाम पंचायत के माध्यम से लोकतांत्रिक रूप से विभिन्न कार्य सम्पादन करता है। स्पष्ट है भारत लोकतंत्र की आधार भूमि है। यह सब सम्भव हुआ नीति के माध्यम से। नीति के बिना राज्य का अस्तित्व ही नहीं है और संविधान नीतियों पर आधारित है और संविधान की नीतियाँ लोक कल्याणकारी है। लोकतंत्र के पहरेदारों को जागरूक बने रहने की आवश्यकता है।

स्वागत भाषण देते हुए डॉ. आम्बेडकर पीठ के प्रभारी आचार्य डॉ. बी.के. आंजना ने कहा कि संविधान दिवस पर हमें यह संकल्प लेना चाहिए कि देश के कानून का पालन करेंगे, देश के अच्छे व जिम्मेदार नागरिक बनेंगे। स्वतंत्रता, समानता, न्याय, बंधुत्व पर आधारित समाज की स्थापना करेंगे।

कृषि विज्ञान अध्ययनशाला की रिया कुमारी, सोनल कुमारी और आदित्य मेहता ने अतिथियों का स्वागत किया। कृषि विज्ञान अध्ययनशाला की प्राध्यापक रीना परमार, वर्षा पटेल व विदेशी भाषा विभाग की प्राध्यापक निशा चौरसिया विशेष रूप से उपस्थित थीं। मनोज शर्मा, विकास खत्री, सलीम खान, अंकुर टिटवानिया का विशेष सहयोग रहा।

कार्यक्रम का संयोजन व संचालन डॉ. आम्बेडकर पीठ सहायक प्राध्यापक डॉ. निवेदिता वर्मा ने किया। आभार सांख्यिकी अध्ययनशाला के एसोसिएट प्रोफेसर एवं कृषि विज्ञान अध्ययनशाला के प्रभारी विभागाध्यक्ष डॉ. राजेश टेलर ने माना।

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