Skip to main content

कलाकारों को अभिप्रेरणा देने के लिए युवा उत्सव जैसे आयोजनों की आवश्यकता – कुलपति प्रो पांडेय

अंतरजिला विश्वविद्यालय स्तरीय युवा उत्सव का शुभारंभ हुआ विक्रम विश्वविद्यालय में

शुभारम्भ दिवस पर समूह लोक नृत्य, शास्त्रीय नृत्य एवं नाट्य प्रस्तुतियों ने दर्शकों पर प्रभाव जमाया


उज्जैन विक्रम विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित अंतरजिला विश्वविद्यालय स्तरीय युवा उत्सव का शुभारंभ 19 नवंबर को प्रातः काल 10 बजे हुआ। शुभारंभ समारोह की अध्यक्षता विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के कुलपति प्रोफेसर अखिलेश कुमार पांडेय ने की। विशिष्ट अतिथि कार्यपरिषद के सदस्य श्री संजय नाहर, कुलसचिव डॉ प्रशांत पुराणिक एवं कुलानुशासक प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा थे।


कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कुलपति प्रो अखिलेश कुमार पांडेय ने कहा कि स्वतंत्रता आंदोलन के दौर में युवाओं में अपूर्व जोश और उत्साह था। आजादी मिलने के बाद उनके सामने नए भारत के निर्माण से जुड़ी कई चुनौतियां थीं। विविध रचनात्मक गतिविधियों के माध्यम से युवा इन चुनौतियों से टकराने के लिए निरंतर आगे बढ़े। समाज को नई दिशा देने में प्रतिभावान युवा सांस्कृतिक एवं साहित्यिक गतिविधियों के माध्यम से महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं। युवा कलाकारों को अभिप्रेरणा देने के लिए युवा उत्सव जैसे आयोजनों की आवश्यकता है।

विशिष्ट अतिथि कार्यपरिषद् सदस्य श्री संजय नाहर ने कहा कि युवा अपने सृजन कौशल को निखारने के लिए आगे आएं। नई पीढ़ी को हताशा और व्यसनों से मुक्त रखने के लिए इस प्रकार की गतिविधियों को प्रोत्साहित करने की जरूरत है। कार्यक्रम को कुलसचिव डॉ प्रशांत पुराणिक एवं कुलानुशासक प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा ने भी संबोधित किया।

प्रारम्भ में स्वागत भाषण युवा उत्सव आयोजन समिति के अध्यक्ष प्रो देवेंद्र मोहन कुमावत ने दिया। युवा उत्सव की संकल्पना पर विद्यार्थी कल्याण संकायाध्यक्ष डॉ एस के मिश्रा ने प्रकाश डाला।

युवा उत्सव में विक्रम विश्वविद्यालय परिक्षेत्र के सात जिलों से 22 विधाओं में भाग लेने के लिए तीन सौ से अधिक प्रतिभागी विद्यार्थी, दल प्रबंधक और संगतकार सम्मिलित हो रहे हैं। स्वर्ण जयंती सभागार में हुए उद्घाटन समारोह के पश्चात देर शाम तक शास्त्रीय नृत्य, समूह लोक नृत्य, लघु नाटिका, मूकाभिनय, मिमिक्री आदि नाट्य विधा की कई प्रस्तुतियों ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध किया। अतिथियों का स्वागत विभिन्न समितियों के संयोजकों, विक्रम परिक्षेत्र के 7 जिलों से आए दल प्रबंधकों और विद्यार्थियों ने किया।


कार्यक्रम में अनेक शिक्षक संस्कृति कर्मी, कलाकार, कर्मचारी और विद्यार्थी बड़ी संख्या में उपस्थित थे। संचालन श्री दुर्गाशंकर सूर्यवंशी ने किया।

युवा उत्सव का समापन एवं पुरस्कार वितरण 20 नवम्बर को होगा विक्रम विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित विश्वविद्यालयीन युवा उत्सव का समापन समारोह 20 नवम्बर को स्वर्ण जयंती सभागार में मध्यप्रदेश के माननीय उच्च शिक्षा मंत्री डॉ मोहन यादव के मुख्य आतिथ्य में स्वर्ण जयंती सभागार में दोपहर 3 : 00 बजे संपन्न होगा। कार्यक्रम की अध्यक्षता कुलपति प्रो अखिलेश कुमार पांडेय करेंगे। 20 नवम्बर को प्रातः से विभिन्न साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं रूपांकन विधाओं में युवा अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करेंगे।

Comments

Popular posts from this blog

आधे अधूरे - मोहन राकेश : पाठ और समीक्षाएँ | मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे : मध्यवर्गीय जीवन के बीच स्त्री पुरुष सम्बन्धों का रूपायन

  आधे अधूरे - मोहन राकेश : पीडीएफ और समीक्षाएँ |  Adhe Adhure - Mohan Rakesh : pdf & Reviews मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा हिन्दी के बहुमुखी प्रतिभा संपन्न नाट्य लेखक और कथाकार मोहन राकेश का जन्म  8 जनवरी 1925 को अमृतसर, पंजाब में  हुआ। उन्होंने  पंजाब विश्वविद्यालय से हिन्दी और अंग्रेज़ी में एम ए उपाधि अर्जित की थी। उनकी नाट्य त्रयी -  आषाढ़ का एक दिन, लहरों के राजहंस और आधे-अधूरे भारतीय नाट्य साहित्य की उपलब्धि के रूप में मान्य हैं।   उनके उपन्यास और  कहानियों में एक निरंतर विकास मिलता है, जिससे वे आधुनिक मनुष्य की नियति के निकट से निकटतर आते गए हैं।  उनकी खूबी यह थी कि वे कथा-शिल्प के महारथी थे और उनकी भाषा में गज़ब का सधाव ही नहीं, एक शास्त्रीय अनुशासन भी है। कहानी से लेकर उपन्यास तक उनकी कथा-भूमि शहरी मध्य वर्ग है। कुछ कहानियों में भारत-विभाजन की पीड़ा बहुत सशक्त रूप में अभिव्यक्त हुई है।  मोहन राकेश की कहानियां नई कहानी को एक अपूर्व देन के रूप में स्वीकार की जाती हैं। उनकी कहानियों में आधुनिक जीवन का कोई-न-कोई विशिष्ट पहलू उजागर

मालवी भाषा और साहित्य : प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

MALVI BHASHA AUR SAHITYA: PROF. SHAILENDRAKUMAR SHARMA पुस्तक समीक्षा: डॉ श्वेता पंड्या Book Review : Dr. Shweta Pandya  मालवी भाषा एवं साहित्य के इतिहास की नई दिशा  लोक भाषा, लोक साहित्य और संस्कृति का मानव सभ्यता के विकास में अप्रतिम योगदान रहा है। भाषा मानव समुदाय में परस्पर सम्पर्क और अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम है। इसी प्रकार क्षेत्र-विशेष की भाषा एवं बोलियों का अपना महत्त्व होता है। भारतीय सभ्यता और संस्कृति से जुड़े विशाल वाङ्मय में मालवा प्रदेश, अपनी मालवी भाषा, साहित्य और संस्कृति के कारण महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। यहाँ की भाषा एवं लोक-संस्कृति ने  अन्य क्षेत्रों पर प्रभाव डालते हुए अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है। मालवी भाषा और साहित्य के विशिष्ट विद्वानों में डॉ. शैलेन्द्रकुमार शर्मा का नाम बड़े आदर से लिया जाता है। प्रो. शर्मा हिन्दी आलोचना के आधुनिक परिदृश्य के विशिष्ट समीक्षकों में से एक हैं, जिन्होंने हिन्दी साहित्य की विविध विधाओं के साथ-साथ मालवी भाषा, लोक एवं शिष्ट साहित्य और संस्कृति की परम्परा को आलोचित - विवेचित करने का महत्त्वपूर्ण एवं सार्थक प्रयास किया है। उनकी साहित्य

हिंदी कथा साहित्य / संपादक प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा

हिंदी कथा साहित्य की भूमिका और संपादकीय के अंश : किस्से - कहानियों, कथा - गाथाओं के प्रति मनुष्य की रुचि सहस्राब्दियों पूर्व से रही है, लेकिन उपन्यास या नॉवेल और कहानी या शार्ट स्टोरी के रूप में इनका विकास पिछली दो सदियों की महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है। हिंदी में नए रूप में कहानी एवं उपन्यास  विधा का आविर्भाव बीसवीं शताब्दी में हुआ है। वैसे संस्कृत का कथा - साहित्य अखिल विश्व के कथा - साहित्य का जन्मदाता माना जाता है। लोक एवं जनजातीय साहित्य में कथा – वार्ता की सुदीर्घ परम्परा रही है। इधर आधुनिक हिन्दी कथा साहित्य का विकास संस्कृत - कथा - साहित्य अथवा लोक एवं जनजातीय कथाओं की समृद्ध परम्परा से न होकर, पाश्चात्य कथा साहित्य, विशेषतया अंग्रेजी साहित्य के प्रभाव रूप में हुआ है।  कहानी कथा - साहित्य का एक अन्यतम भेद और उपन्यास से अधिक लोकप्रिय साहित्य रूप है। मनुष्य के जन्म के साथ ही साथ कहानी का भी जन्म हुआ और कहानी कहना - सुनना मानव का स्वभाव बन गया। सभी प्रकार के समुदायों में कहानियाँ पाई जाती हैं। हमारे देश में तो कहानियों की सुदीर्घ और समृद्ध परंपरा रही है। वेद - उपनिषदों में वर्णित यम-यम