Skip to main content

"हमारा मध्यप्रदेश" थीम पर रोचक विशिष्ट प्रश्न मंच का आयोजन हुआ संपन्न

पंडित जवाहरलाल नेहरू व्यवसाय प्रबंध संस्थान, विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन में मध्यप्रदेश स्थापना दिवस समारोह का आयोजन किया गया

उज्जैन। पंडित जवाहरलाल नेहरू व्यवसाय प्रबंध संस्थान (एमबीए डिपार्टमेंट), विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन में 01 नवम्बर 2022 को मध्यप्रदेश स्थापना दिवस समारोह का आयोजन किया गया। समारोह के आरंभ में संस्थान के निदेशक डॉ. धर्मेंद्र मेहता द्वारा मध्यप्रदेश की समग्र विशेषताओं के संदर्भ में विद्यार्थियों के समक्ष विचार व्यक्त किए गये। आत्मनिर्भर मध्यप्रदेश के संबंध में किए गए उल्लेखनीय कार्यों की रोचक तथ्यवार प्रस्तुति भी डॉ.मेहता द्वारा दी गई।

संस्थान के वरिष्ठ तकनीकी अधिकारी श्री राकेश खोती द्वारा कार्यक्रम के अन्त में मध्यप्रदेश गान को तकनीकी संयोजन के माध्यम से प्रस्तुत किया गया एवं समस्त उपस्थित लोगों द्वारा सामूहिक गायन भी किया गया।

इस अवसर पर संकाय के डॉ दीपक गुप्ता, डॉ कामरान सुल्तान, डॉ सचिन राय, डॉ डी.डी. बेदिया, डॉ. नयनतारा डामोर, डॉ संध्या सक्सेना, श्री गोविंद तोमर, शिक्षकगण, सभी स्टाफ मेंबर्स उपस्थित थे।

एमबीए तृतीय-प्रथम सेमेस्टर के विद्यार्थियों हेतु "हमारा मध्यप्रदेश" थीम पर रोचक विशिष्ट प्रश्न मंच का आयोजन भी संपन्न हुआ। मध्यप्रदेश के ऐतिहासिक, भौगोलिक, संस्कृति, आर्थिक, वैज्ञानिक सामाजिक, पर्यावरणीय, सरोकारों से परिपूर्ण बहुचक्रीय प्रश्न मंच का सुंदर संयोजन क्विज़ मास्टर डॉ. धर्मेन्द्र मेहता ने किया। रोचक प्रश्न मंच में उपस्थित विद्यार्थियों ने सक्रिय सहभागिता की।

Comments

Popular posts from this blog

आधे अधूरे - मोहन राकेश : पाठ और समीक्षाएँ | मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे : मध्यवर्गीय जीवन के बीच स्त्री पुरुष सम्बन्धों का रूपायन

  आधे अधूरे - मोहन राकेश : पीडीएफ और समीक्षाएँ |  Adhe Adhure - Mohan Rakesh : pdf & Reviews मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा हिन्दी के बहुमुखी प्रतिभा संपन्न नाट्य लेखक और कथाकार मोहन राकेश का जन्म  8 जनवरी 1925 को अमृतसर, पंजाब में  हुआ। उन्होंने  पंजाब विश्वविद्यालय से हिन्दी और अंग्रेज़ी में एम ए उपाधि अर्जित की थी। उनकी नाट्य त्रयी -  आषाढ़ का एक दिन, लहरों के राजहंस और आधे-अधूरे भारतीय नाट्य साहित्य की उपलब्धि के रूप में मान्य हैं।   उनके उपन्यास और  कहानियों में एक निरंतर विकास मिलता है, जिससे वे आधुनिक मनुष्य की नियति के निकट से निकटतर आते गए हैं।  उनकी खूबी यह थी कि वे कथा-शिल्प के महारथी थे और उनकी भाषा में गज़ब का सधाव ही नहीं, एक शास्त्रीय अनुशासन भी है। कहानी से लेकर उपन्यास तक उनकी कथा-भूमि शहरी मध्य वर्ग है। कुछ कहानियों में भारत-विभाजन की पीड़ा बहुत सशक्त रूप में अभिव्यक्त हुई है।  मोहन राकेश की कहानियां नई कहानी को एक अपूर्व देन के रूप में स्वीकार की जाती हैं। उनकी कहानियों में आधुनिक जीवन का कोई-न-कोई विशिष्ट पहलू उजागर

मालवी भाषा और साहित्य : प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

MALVI BHASHA AUR SAHITYA: PROF. SHAILENDRAKUMAR SHARMA पुस्तक समीक्षा: डॉ श्वेता पंड्या Book Review : Dr. Shweta Pandya  मालवी भाषा एवं साहित्य के इतिहास की नई दिशा  लोक भाषा, लोक साहित्य और संस्कृति का मानव सभ्यता के विकास में अप्रतिम योगदान रहा है। भाषा मानव समुदाय में परस्पर सम्पर्क और अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम है। इसी प्रकार क्षेत्र-विशेष की भाषा एवं बोलियों का अपना महत्त्व होता है। भारतीय सभ्यता और संस्कृति से जुड़े विशाल वाङ्मय में मालवा प्रदेश, अपनी मालवी भाषा, साहित्य और संस्कृति के कारण महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। यहाँ की भाषा एवं लोक-संस्कृति ने  अन्य क्षेत्रों पर प्रभाव डालते हुए अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है। मालवी भाषा और साहित्य के विशिष्ट विद्वानों में डॉ. शैलेन्द्रकुमार शर्मा का नाम बड़े आदर से लिया जाता है। प्रो. शर्मा हिन्दी आलोचना के आधुनिक परिदृश्य के विशिष्ट समीक्षकों में से एक हैं, जिन्होंने हिन्दी साहित्य की विविध विधाओं के साथ-साथ मालवी भाषा, लोक एवं शिष्ट साहित्य और संस्कृति की परम्परा को आलोचित - विवेचित करने का महत्त्वपूर्ण एवं सार्थक प्रयास किया है। उनकी साहित्य

हिंदी कथा साहित्य / संपादक प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा

हिंदी कथा साहित्य की भूमिका और संपादकीय के अंश : किस्से - कहानियों, कथा - गाथाओं के प्रति मनुष्य की रुचि सहस्राब्दियों पूर्व से रही है, लेकिन उपन्यास या नॉवेल और कहानी या शार्ट स्टोरी के रूप में इनका विकास पिछली दो सदियों की महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है। हिंदी में नए रूप में कहानी एवं उपन्यास  विधा का आविर्भाव बीसवीं शताब्दी में हुआ है। वैसे संस्कृत का कथा - साहित्य अखिल विश्व के कथा - साहित्य का जन्मदाता माना जाता है। लोक एवं जनजातीय साहित्य में कथा – वार्ता की सुदीर्घ परम्परा रही है। इधर आधुनिक हिन्दी कथा साहित्य का विकास संस्कृत - कथा - साहित्य अथवा लोक एवं जनजातीय कथाओं की समृद्ध परम्परा से न होकर, पाश्चात्य कथा साहित्य, विशेषतया अंग्रेजी साहित्य के प्रभाव रूप में हुआ है।  कहानी कथा - साहित्य का एक अन्यतम भेद और उपन्यास से अधिक लोकप्रिय साहित्य रूप है। मनुष्य के जन्म के साथ ही साथ कहानी का भी जन्म हुआ और कहानी कहना - सुनना मानव का स्वभाव बन गया। सभी प्रकार के समुदायों में कहानियाँ पाई जाती हैं। हमारे देश में तो कहानियों की सुदीर्घ और समृद्ध परंपरा रही है। वेद - उपनिषदों में वर्णित यम-यम