विक्रम विश्वविद्यालय के प्राणिकी एवं जैव प्रौद्योगिकी के विद्यार्थियों द्वारा महाकाल मंदिर परिक्षेत्र की जैवविविधता का अध्ययन किया गया
विद्यार्थियों ने किया महाकाल मंदिर परिक्षेत्र के पर्यावरण का गहन अध्ययन
उज्जैन। विक्रम विश्वविद्यालय के प्राणिकी एवं जैव प्रौद्योगिकी अध्ययनशाला के विद्यार्थियों द्वारा अपने अकादमिक अध्ययन के अंतर्गत महाकाल मंदिर परिक्षेत्र की जैवविविधता का अध्ययन किया गया। शिक्षा में नए-नए प्रायोगिक तरीकों का उपयोग करना गत दो वर्षों से विक्रम विश्वविद्यालय की शिक्षण प्रणाली का अभिन्न अंग रहा है।
इसी क्रम को आगे बढ़ाते हुए विक्रम विश्वविद्यालय के प्राणिकी एवं जैव प्रौद्योगिकी अध्ययनशाला के विद्यार्थियों द्वारा अकादमिक अध्ययन के अंतर्गत महाकाल मंदिर परिक्षेत्र की जैवविविधता का अध्ययन किया गया। इस दौरान छात्रों ने महाकाल मंदिर परिक्षेत्र के पर्यावरण का गहन अध्ययन करते हुए यहाँ की हवा की नमी, गति एवं तापमान आदि का मापन किया।
इसके अतिरिक्त छात्रों ने यहाँ लगे फ्लॉवरिंग प्लांट्स की पहचान करते हुए उनके औषधीय और अन्य उपयोगों का भी अध्ययन किया। यहाँ लगे प्लांट्स में मुख्यतः पीलिया माइक्रोफिला, सेग्रस रोमंजिफिआना, तस्मानियन फ्लक्स लिल्ली, करदिनीलिने फ्रुक्टिकोसा आदि पाए गए थे। इसके अतिरिक्त विद्यार्थियों ने यहाँ स्थित कुंड में लगे एरिएशन प्लांट का अध्ययन किया तथा कुंड में पाई जाने वाली जैव विविधता का अध्ययन किया। शिक्षकों द्वारा छात्रों को इस अध्ययन की एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा गया है।

विभाग की इस पहल पर विक्रम विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ प्रशांत पुराणिक ने विभाग को बधाई दी। विक्रम विश्वविद्यालय के कुलानुशासक प्रो शैलेन्द्र कुमार शर्मा ने बताया कि गत कुछ वर्षों ने विश्वविद्यालय के सभी विभाग इसी तरह प्रायोगिक शिक्षा को महत्त्व दे रहे हैं, जो छात्रों के विकास के लिए बहुत उपयोगी सिद्ध हुआ है। विद्यार्थियों के साथ इस अध्ययन के दौरान प्राणिकी एवं जैवप्रौधोगिकी अध्ययनशाला के विभागाध्यक्ष डॉ सलिल सिंह एवं शिक्षकगण डॉ अरविन्द शुक्ल, डॉ संतोष ठाकुर, डॉ शिवि भसीन, डॉ स्मिता सोलंकी एवं डॉ गरिमा शर्मा उपस्थित थे।
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