Skip to main content

भौतिक के साथ आध्यात्मिक उपलब्धियां उन्नत राष्ट्र निर्माण में साधक बनें - प्रो. रजनीश शुक्ल

इंदौर । मूल्यनिष्ठ मीडिया वहीं है जो लोगों को शांति और संतुष्टता देता है। जो सूचनायें बेचैनी देती है और शांति छिनने की कोशिष करती है, वे मूल्य नहीं है। राष्ट्र निर्माण में मीडिया की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है इसलिये संचार माध्यमों को बहुत सजग और सचेत होकर समाज में अपसंस्कृति के प्रचार को रोकने के लिये हस्तक्षेप करना चाहिये।

उक्त विचार आज प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय के इंदौर जोन के पूर्व निदेषक तथा ब्रह्माकुमारीज मीडिया प्रभाग के अध्यक्ष रहे ब्रह्माकुमार ओमप्रकाश भाईजी की 7वीं पुण्य स्मृति के उपलक्ष्य में  आयोजित "राष्ट्र निर्माण और मीडिया" विषय पर  ज्ञानशिखर में आयोजित मीडिया परिसंवाद में मुख्य अतिथि महात्मागाँधी अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्व विद्यालय वर्धा के कुलपति प्रो. रजनीश शुक्ल ने कहे ।

उन्होंने आगे कहा कि मूल्यों से समृद्ध हमारी भारतीय प्राचीन परंपरा रही है। उसी राह पर चल मनुष्यों को मूल्यांे से जोड़गें तो राष्ट्र बनेगा । भौतिक के साथ आध्यात्मिक उपलधियां उन्नत राष्ट्र निर्माण में बाधक नहीं साधक बने।

परिसंवाद में अध्यक्षता करते हुए मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी के निदेषक तथा देवपुत्र पत्रिका के संपादक विकास दवे ने कहा कि लोगों ने मीडिया को लोकतंत्र का चैथा स्तंभ होने का मान दिया है। हमें उस शुचिता की मर्यादा की चिंता करनी चाहिए। मीडिया समाज के अंतिम व्यक्ति के कष्टों को भांप कर उसे दूर करने का ईमानदारी से प्रयास करें।

इस अवसर पर आशिर्वचन देते हुए इंदौर जोन की मुख्य क्षेत्रीय समन्वयक ब्रह्माकुमारी हेमलता दीदी ने कहा कि भारत का इतिहास स्वर्णिम इतिहास रहा है। स्वतंत्रता प्राप्ति के पूर्व मीडिया ने राष्ट्र निर्माण एवं देशभक्ति के भावों से ओतप्रोत जनजागृति का महान कार्य किया। आज मीडिया लोगों को सूचित करने, शिक्षित करने के साथ साथ समाजिक, पारिवारीक, मानवीय मूल्यों को पूर्नस्थापित करने की जिम्मेवारी निभाये तो भारत पूनः विश्व गुरु बन जायेगा।

माउण्ट आबू ब्रह्माकुमारीज मीडिया प्रभाग के राष्ट्रीय समन्वयक ब्रह्माकुमार शांतनु भाई ने कहा कि भारत की परंपरा ही लोक मंगल की रही है। समाधान परक पत्रकारिता से राष्ट्र की एकता प्रबल होगी।

माउण्ट आबू से पधारे मधुबन न्युज के प्रधान संपादक ब्रह्माकुमार कोमल भाई ने कहा कि जिस प्रकार एक तिली जलाने से अंधकार समाप्त होकर रोशनी हो जाती है उसी प्रकार राष्ट्र निर्माण के लिए शुभ संकल्प की तिली हम स्वयं जलायेंगे तो सभी इस शुभ कार्य में हमें सांथ देंगे।  

कार्यक्रम में कुशाभाउ ठाकरे पत्रकारिता विश्व विद्यालय रायपुर के पूर्व कुलपति डाॅ. मानसिंह परमार, नई दुनियां के प्रधान संपादक सद्गुरु शरण अवस्थी, दैनिक भास्कर के संपादक अमित मंडलोई, एस. आर. चैनल के संपादक प्रो. राजीव शर्मा, प्रजातंत्र के संपादक अनिल कर्मा ने अपने विचार रखे।

माउण्ट आबू से पधारी ब्रह्माकुमारी तुलसी बहन ने योग की गहन अनुभूति कराई।

 सर्व प्रथम पुष्प गुच्छ, बेच एवं दुपट्टे द्वारा अतिथियों का सम्मान किया गया। शक्तिनिकेतन की कुमारियों द्वारा सुंदर स्वागत नृत्य की प्रस्तुति दी गई। शुभारंभ अतिथियों द्वारा दीप प्रज्जवलन कर किया गया। कार्यक्रम का कुषल संचालन नवभारत के समूह संपादक क्रांति चतुर्वेदी ने किया एवं मीडिया विंग कोर कमेटी की सदस्य ब्रह्माकुमारी अनिता दीदी ने सभी का अभार माना।

इस अवसर इंदौर के साथ साथ उज्जैन, देवास, रतलाम एवं राजगढ़ आदि समूचे मालवांचल के  प्रिंट इलेक्ट्रानिक मीडिया से जुडे़ मीडिया कर्मीयों ने भाग लिया।

Comments

Popular posts from this blog

आधे अधूरे - मोहन राकेश : पाठ और समीक्षाएँ | मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे : मध्यवर्गीय जीवन के बीच स्त्री पुरुष सम्बन्धों का रूपायन

  आधे अधूरे - मोहन राकेश : पीडीएफ और समीक्षाएँ |  Adhe Adhure - Mohan Rakesh : pdf & Reviews मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा हिन्दी के बहुमुखी प्रतिभा संपन्न नाट्य लेखक और कथाकार मोहन राकेश का जन्म  8 जनवरी 1925 को अमृतसर, पंजाब में  हुआ। उन्होंने  पंजाब विश्वविद्यालय से हिन्दी और अंग्रेज़ी में एम ए उपाधि अर्जित की थी। उनकी नाट्य त्रयी -  आषाढ़ का एक दिन, लहरों के राजहंस और आधे-अधूरे भारतीय नाट्य साहित्य की उपलब्धि के रूप में मान्य हैं।   उनके उपन्यास और  कहानियों में एक निरंतर विकास मिलता है, जिससे वे आधुनिक मनुष्य की नियति के निकट से निकटतर आते गए हैं।  उनकी खूबी यह थी कि वे कथा-शिल्प के महारथी थे और उनकी भाषा में गज़ब का सधाव ही नहीं, एक शास्त्रीय अनुशासन भी है। कहानी से लेकर उपन्यास तक उनकी कथा-भूमि शहरी मध्य वर्ग है। कुछ कहानियों में भारत-विभाजन की पीड़ा बहुत सशक्त रूप में अभिव्यक्त हुई है।  मोहन राकेश की कहानियां नई कहानी को एक अपूर्व देन के रूप में स्वीकार की जाती हैं। उनकी कहानियों में आधुनिक जीवन का कोई-न-कोई विशिष्ट पहलू उजागर

मालवी भाषा और साहित्य : प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

MALVI BHASHA AUR SAHITYA: PROF. SHAILENDRAKUMAR SHARMA पुस्तक समीक्षा: डॉ श्वेता पंड्या Book Review : Dr. Shweta Pandya  मालवी भाषा एवं साहित्य के इतिहास की नई दिशा  लोक भाषा, लोक साहित्य और संस्कृति का मानव सभ्यता के विकास में अप्रतिम योगदान रहा है। भाषा मानव समुदाय में परस्पर सम्पर्क और अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम है। इसी प्रकार क्षेत्र-विशेष की भाषा एवं बोलियों का अपना महत्त्व होता है। भारतीय सभ्यता और संस्कृति से जुड़े विशाल वाङ्मय में मालवा प्रदेश, अपनी मालवी भाषा, साहित्य और संस्कृति के कारण महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। यहाँ की भाषा एवं लोक-संस्कृति ने  अन्य क्षेत्रों पर प्रभाव डालते हुए अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है। मालवी भाषा और साहित्य के विशिष्ट विद्वानों में डॉ. शैलेन्द्रकुमार शर्मा का नाम बड़े आदर से लिया जाता है। प्रो. शर्मा हिन्दी आलोचना के आधुनिक परिदृश्य के विशिष्ट समीक्षकों में से एक हैं, जिन्होंने हिन्दी साहित्य की विविध विधाओं के साथ-साथ मालवी भाषा, लोक एवं शिष्ट साहित्य और संस्कृति की परम्परा को आलोचित - विवेचित करने का महत्त्वपूर्ण एवं सार्थक प्रयास किया है। उनकी साहित्य

हिंदी कथा साहित्य / संपादक प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा

हिंदी कथा साहित्य की भूमिका और संपादकीय के अंश : किस्से - कहानियों, कथा - गाथाओं के प्रति मनुष्य की रुचि सहस्राब्दियों पूर्व से रही है, लेकिन उपन्यास या नॉवेल और कहानी या शार्ट स्टोरी के रूप में इनका विकास पिछली दो सदियों की महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है। हिंदी में नए रूप में कहानी एवं उपन्यास  विधा का आविर्भाव बीसवीं शताब्दी में हुआ है। वैसे संस्कृत का कथा - साहित्य अखिल विश्व के कथा - साहित्य का जन्मदाता माना जाता है। लोक एवं जनजातीय साहित्य में कथा – वार्ता की सुदीर्घ परम्परा रही है। इधर आधुनिक हिन्दी कथा साहित्य का विकास संस्कृत - कथा - साहित्य अथवा लोक एवं जनजातीय कथाओं की समृद्ध परम्परा से न होकर, पाश्चात्य कथा साहित्य, विशेषतया अंग्रेजी साहित्य के प्रभाव रूप में हुआ है।  कहानी कथा - साहित्य का एक अन्यतम भेद और उपन्यास से अधिक लोकप्रिय साहित्य रूप है। मनुष्य के जन्म के साथ ही साथ कहानी का भी जन्म हुआ और कहानी कहना - सुनना मानव का स्वभाव बन गया। सभी प्रकार के समुदायों में कहानियाँ पाई जाती हैं। हमारे देश में तो कहानियों की सुदीर्घ और समृद्ध परंपरा रही है। वेद - उपनिषदों में वर्णित यम-यम