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राष्ट्रीय संगोष्ठी के तृतीय सत्र में प्रस्तुत किए गए चयनित शोध पत्र

 श्रेष्ठ शोध पत्र के लिए विक्रम कालिदास पुरस्कार घोषित

उज्जैन। कालिदास समारोह अंतर्गत विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के तत्वावधान में राष्ट्रीय संगोष्ठी तृतीय सत्र का आयोजन किया गया। 

कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रो. बालकृष्ण शर्मा, पूर्व कुलपति विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन द्वारा की गई। मुख्य अतिथि प्रो. रामराजेश मिश्र पूर्व कुलपति, विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन थे। सारस्वत अतिथि प्रो. बसन्तकुमार भट्ट अहमदाबाद एवं विशेष अतिथि डॉ. अनिल प्रताप गिरि, आगरा तथा डॉ प्रशांत पुराणिक कुलसचिव विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन थे। कालिदास समिति विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के सचिव प्रो. शैलेन्द्रकुमार शर्मा ने रूपरेखा प्रस्तुत करते हुए कहा कि इस सत्र में विक्रम कालिदास पुरस्कार हेतु देश के विभिन्न भागों से प्राप्त एवं चयनित शोध पत्रों का वाचन किया गया। इस अवसर पर विक्रम कालिदास पुरस्कार के लिए चयनित शोध प्रस्तोताओं की घोषणा की गई। इन्हें पांच - पांच हजार की पुरस्कार राशि एवं प्रशस्ति पत्र समापन समारोह में 10 नवम्बर  को अपराह्न 4 बजे  छत्तीसगढ़ की महामहिम राज्यपाल सुश्री अनुसुईया उईके द्वारा अर्पित किए जाएँगे। पुरस्कार के लिए योग्य पाए गए शोधकर्ताओं में डॉ आशा श्रीवास्तव, जबलपुर, डॉ मधुबाला शर्मा, जयपुर, डॉ राजीव रंजन एवं डॉ अवधेश प्रताप सिंह, नई दिल्ली (संयुक्त रूप से) तथा नीदरलैंड की मारिया एलिजाबेथ बेकर सम्मिलित हैं।

अहमदाबाद से पधारे प्रो बसंत कुमार भट्ट ने अपने उद्बोधन में कहा कि कालिदास के काव्य में हर शोधकर्ता को कुछ न कुछ नवीन की प्राप्ति होती है। इसलिए कालिदास चिर नवीन हैं एवं त्रिकाल में प्रासंगिक हैं। शारदा लिपि की पांडुलिपियों में अन्यों से भिन्न जानकारी मिलती है अतः शोधकर्ताओं को प्रकाशित साहित्य के साथ ही पांडुलिपियों पर भी ध्यान देना चाहिए।

मुख्य अतिथि पूर्व कुलपति प्रो रामराजेश मिश्र ने विक्रम कालिदास पुरस्कार की स्थापना के महत्व को स्पष्ट करते हुए बताया कि शोधकार्य को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से इस पुरस्कार का आरंभ किया गया। शोधपत्र लेखन सागर में अवगाहन की भाँति अत्यंत दुष्कर एवं श्रमसाध्य कार्य है जिसमें मोती तो मिलते हैं लेकिन जलजीवों का भय भी होता है। जो लहरों तक जाते हैं वे मोती से वंचित रह जाते हैं, जो शोधकार्यरूपी सागर में गहरे पेठते हैं वही मोती पाते हैं।

पूर्व कुलपति प्रो बालकृष्ण शर्मा ने अपने अध्यक्षयीय उद्बोधन में प्रस्तुत एवं पुरस्कृत शोधपत्रों के संबंध में मार्गदर्शन दिया। उन्होंने कहा कि महाकवि का वाङ्मय अभिगम्य है, अनुपम है। उससे रत्न प्राप्त करने के लिए हमें तल का स्पर्श करना होगा। शोधपत्रों की प्रक्रिया , यांत्रिक नहीं है, शोधपत्रों को विषय रूपी सागर में अवगाहन कर लिखा जाना चाहिए।

डॉ वसुधा गाडगिल, इन्दौर ने अपना शोधपत्र प्रस्तुत करते हुए महाकवि कालिदास को भारतीय सभ्यता एवं सांस्कृृतिक चेतना का पुरोधा बताया। उन्होंने कालिदास के काव्य में लोकमंगल की भावना एवं सांस्कृतिक चेतना को रेखांकित किया।

नीदरलैंड की डॉ मारिया एलिजाबेथ बेकर ने अपने शोधपत्र में कालिदास के साहित्य, मुख्यतः रघुवंश में काव्य के विशिष्ट तत्वों एवं काव्य की विशेषताओं एवं उनसे उत्पन्न प्रभावों  पर प्रकाश डाला।

डॉ अंतरा करवड़े, इन्दौर ने अपना शोधपत्र प्रस्तुत करते हुए रघुवंश एवं रामचरित मानस का तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया। रघुवंश के विविध प्रसंगों में रामकथा का मनोरम वर्णन हुआ है। इसमें अद्भुत सौंदर्य है, अनुपम उपमाएँ हैं। रघुवंश में कवि की उत्कृष्ट प्रतिभा का दर्शन होता है। तुलसीकृत रामकथा में राम का लोकमंगलकारी स्वरूप है जबकि रघुवंश में राम के मर्यादायुक्त वीरोचित रूप दीख पड़ता है।

डॉ विक्रांत, उज्जैन ने अपने शोधपत्र में कालिदास के प्रकृति चित्रण, मानवीकरण, एवं उनके तत्कालीन भारतीय संस्कृति के प्रति आस्था को रेखांकित किया। उनके काव्य में चित्रकार की दृष्टि एवं कलात्मकता का अद्भुत समन्वय मिलता है। 

डॉ शुभश्री पटेल, हैदराबाद ने अपने शोधपत्र में बताया कि  कालिदास के काव्य में नायक नायिका के अंतर्संबंधों का भावपूर्ण चित्रण मिलता है। इनमें जहाँ उद्दात प्रेम का चित्रण है वहीं दूसरी तरफ वियोग की स्थिति में विरह व्यथा का जीवंत विवरण मिलता है। कालिदास के काव्य में सत-रज-तम तीनों गुणों एवं इनसे उत्पन्न विविध भावों एवं विकारों का वर्णन मिलता है।

डॉ मुकेश शाह कायथा ने अपने शोधपत्र में कालिदास के काव्य में वैज्ञानिक दृष्टिकोण को रेखांकित किया। इनके अनुसार कालिदास के साहित्य में अंतरिक्ष विज्ञान, ज्योतिष, आयुर्वेद, आदि का विवरण मिलता है। उन्होंने कालिदास की विभिन्न रचनाओं से उद्धृत करते हुए बताया कि कालिदास के काव्य में विभिन्न ज्योतिषीय योगों एवं शुभाशुभ तिथ्यादि एवं ग्रहण आदि का विवरण मिलता है।

डॉ जया मिश्रा बनारस ने अपना शोधपत्र प्रस्तुत करते हुए रेखांकित किया कि कालिदास के साहित्य में विराट चेतना के एकोऽहं बहुस्याम की रसधार सर्वत्र प्रवाहित होती प्रतीत होती है। काव्य वर्णित प्रकृति के विविध रूप मानव हृदय को स्पंदित करते हैं। प्रकृति सौंदर्य के माध्यम से मानव मन आह्लादित होता है जो आगे जाकर समष्टिगत होता चला जाता है। कालिदास के काव्य में प्रकृति में परमेश्वर की प्रतिच्छाया दीख पड़ती है।

कुलसचिव डॉ प्रशांत पुराणिक ने विभिन्न शोधपत्रों में वर्ण्य विषयों पर चर्चा करते हुए कालिदास साहित्य में विषय वैविध्य एवं कालिदास की पर्यावरण संबंधी चेतना को रेखांकित किया ।

हिमांशु अयाचित, हैदराबाद ने अपने शोधपत्र में कालिदास रचित कुमार संभव पर योगदर्शन एवं वेदांत के प्रभावों को शास्त्रीय उदाहरणों से प्रमाणित करते हुए बताया कि कालिदास के साहित्य में शिव के सर्वव्यापी, मंगलकारी एवं रौद्र संहारक स्वरूपों का अद्भुत चित्रण हुआ है।

पूजा गौड़, उज्जैन द्वारा अपने शोधपत्र के माध्यम से  कालिदास के काव्य का ‘काव्यशास्त्रीय दृष्टिकोण से अनुशीलन करते हुए कालिदास द्वारा प्रयुक्त विभिन्न संबोधनो के आधार पर इनके काव्य औचित्य एवं उसके महत्व पर प्रकाश डाला गया। इनके अनुसार कालिदास का काव्य शास्त्रोक्त ‘काव्य औचित्य‘ के मापदण्ड पर खरा उतरता है।

विशेष अतिथि प्रयागराज से पधारे डॉ. अनिल प्रजापति ने अपने उद्बोधन में कहा कि काव्य और शास्त्र दो धाराएँ हैं, इनमें काव्य श्रेष्ठ है क्योंकि शास्त्र से केवल ज्ञान मिलता है जबकि काव्य से ज्ञान के साथ ही रस एवं आनंद की प्राप्ति भी होती है, अतः काव्य वरणीय है।

कार्यक्रम का संचालन डॉ रमण सोलंकी ने किया तथा आभार प्रदर्शन कालिदास अकादमी की उपनिदेशक डॉ योगेश्वरी फिरोजिया ने किया।

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