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विक्रम विश्वविद्यालय द्वारा संचालित बी एस सी (ऑनर्स) बायोटेक्नोलॉजी में पाठ्यक्रम में सम्पूर्ण भारत का प्रतिनिधित्व

जैव प्रौद्योगिकी के प्रति नई पीढ़ी का रुझान बढ़ा

वर्तमान समय में जैवप्रौद्योगिकी एक महत्वपूर्ण रोजगारपरक पाठ्यक्रम है। भविष्य में इस क्षेत्र में रोजगार की अपार सम्भावनाएं है। वैश्विक मांग के अनुरूप जैवप्रौद्योगिकी के क्षेत्र में कुशल मानव संसाधन विकसित करने के उद्देश्य से विक्रम विश्वविद्यालय द्वारा यह महत्वपूर्ण पाठ्यक्रम 2006 से संचालित किया जा रहा है, जिसका सीधा लाभ विद्यार्थियों को रोजगार प्राप्त करने के लिए होता है। विगत वर्षो से इस पाठ्यक्रम को पूर्ण करने के पश्चात् अनेक विद्यार्थी विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, कृषि, पशु चिकित्सा, भारतीय विज्ञान एवं औद्योगिक अनुसन्धान परिषद्, भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद्, भारतीय चिकित्सा अनुसन्धान परिषद् द्वारा संचालित देश की विभिन्न प्रयोगशालाओं में, चिकित्सा महाविद्यालाओ, उच्च शिक्षा एवं विश्वविद्यलाओ के साथ-साथ विभिन्न प्रकार के औद्योगिक क्षेत्रों जैसे फार्मा इंडस्ट्री, डेरी इंडस्ट्री, फ़ूड एवं बेवरेजेज इंडस्ट्री, अलकोहल इंडस्ट्री, एग्रीकल्चर इंडस्ट्री, चर्म उद्योग, सीमेंट उद्योग आदि क्षेत्रों में महत्वपूर्ण पदों जैसे वैज्ञानिक, क्वालिटी कण्ट्रोल मैनेजर, अपशिष्ट नियंत्रण प्रबंधक एवं टेक्नीशियन आदि के रूप में अपनी सेवाएं दे रहे हैं।

जैवप्रौद्योगिकी के क्षेत्र में रोजगार की सम्भावनाओं एवं इसकी उपयोगिता को देश के विद्यार्थियों ने पहचाना है, परिणामस्वरूप विक्रम विश्वविद्यालय द्वारा संचालित इस महत्वपूर्ण पाठ्यक्रम में प्रवेशित विद्यार्थियों में समूर्ण भारत की झलक दिखाई देती है। जहाँ पर केरल,, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, ओड़िसा, पश्चिम बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखण्ड, गुजरात, राजस्थान, दिल्ली, उत्तराखंड, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र के साथ-साथ मध्य प्रदेश के विभिन्न भागों से विद्यार्थियों ने प्रवेश प्राप्त किया है।

प्राणिकी एवं जैवप्रौद्योगिकी अध्ययनशाला के विभागाध्यक्ष डॉ सलिल सिंह ने बताया कि विद्यार्थियों को नियमानुसार प्रवेश दिए जाने हेतु, निर्धारित सीट संख्या में वृद्धि के लिए विश्वविद्यालय प्रशासन से निवेदन किया गया है। विक्रम विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर अखिलेश कुमार पाण्डेय ने बताया कि बी. एससी. बायोटेक्नोलॉजी के छात्रों ने गत एक वर्ष के समय में कई महत्वपूर्ण उत्पाद बनाये हैं, जैसे हर्बल क्रीम, चॉकलेट, टोनर, सैनेटाइजर, इम्यून पाउडर आदि।


इस विभाग के शिक्षकों ने अपने शिक्षण के तरीको में प्रायोगिक तरीको का मिश्रण करते हुए छात्रों के सर्वांगीण विकास पर ध्यान दिया है एवं अपने द्वारा किये गए कार्यों को छात्रों और आम जनता तक पहुंचने में भी विभाग सफल रहा है। साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि पिछले वर्ष आयोजित विभिन्न जॉब फेयर में अनेक विद्यार्थियों का चयन जैव प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में महत्वपूर्ण मांग को दर्शाता है तथा भविष्य में भी इसके रोजगार की अनेक सम्भावनाएं बानी रहेगी। विक्रम विश्वविद्यालय के कुलसचिव प्रोफेसर प्रशांत पुराणिक ने बताया कि विश्वविद्यालय का ध्यान बायोटेक्नोलॉजी की शैक्षणिक एवं प्रायोगिक गुणवत्ता बनाये रखने पर है और इसी कारण विश्वविद्यालय उपलब्ध संसाधनों के आधार पर सीट बढ़ाने का विचार कर रहा है।

विक्रम विश्वविद्यालय के कुलानुशासक प्रोफेसर शैलेन्द्र कुमार शर्मा ने बताया कि प्राणिकी एवं जैवप्रौद्योगिकी विभाग गत दो वर्षों से विश्वविद्यालय का केंद्रीय बिंदु रहा है और इस विभाग के शिक्षक एवं छात्रों को समय-समय पर माननीय कुलपति प्रोफेसर पाण्डेय का मार्गदर्शन प्राप्त होता रहता है। कुलपति जी ने इस विभाग में कई बार छात्रों की प्रायोगिक कक्षाए भी ली है जिससे, छात्रों एवं शिक्षकों को प्रोत्साहन मिलता रहा है।


विभाग के शिक्षक डॉ अरविन्द शुक्ल, डॉ शिवि भसीन, डॉ संतोष कुमार ठाकुर, डॉ स्मिता सोलंकी एवं डॉ गरिमा शर्मा ने बताया कि विभाग ने यह उपलब्धि एक लम्बे अंतराल के बाद हासिल की है। इससे पूरे विभाग में हर्षोल्लास का माहौल है और पूरा विभाग इस उपलब्धि के साथ आई एक बड़ी जिम्मेदारी को निभाने के लिए तत्पर है। साथ ही उन्होंने माननीय कुलपति प्रोफेसर पाण्डेय को विभाग का निरंतर मार्गदर्शन करने के लिए एवं सी. यू. ई. टी. में विभाग द्वारा संचालित पाठ्यक्रमों को शामिल करने के लिए धन्यवाद ज्ञापित किया।

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