उज्जैन। आदियोगी भगवान महाकालेश्वर के प्रांगण के नवीन कलेवर का भारत के माननीय प्रधानमन्त्री श्रीमान् नरेन्द्र मोदी द्वारा उद्घाटन कार्यक्रम के पूर्वानुसरण में विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन की दर्शनशास्त्र अध्ययनशाला के योगकेन्द्र तथा काशी की सांस्कृतिक संस्था आसनेन रूजो हन्ति के संयुक्त तत्वावधान में वाराणसी के वेदमूर्ति श्री विकास दीक्षित के सारस्वत व्याख्यान का आयोजन ऑनलाइन माध्यम से कुलपति प्रो. अखिलेश कुमार पाण्डेय की अध्यक्षता में हुआ। सारस्वत व्याख्यान में वेदमूर्ति दीक्षित ने आदियोगी शिव की समन्वायत्मक तथा समत्व स्वरूप को सुन्दर ढ़ंग से प्रस्तुत किया। शिव की महिमा बताते हुए कहा हक शक्ति में विवेक का अभाव होता है परन्तु योग विवेक एवं विज्ञान समाज को सही दिशा देता है। आदियोगी शिव ही योगः समत्व उच्चते के अनुसार समरस तथा समत्व आचरण का उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। संसार में एक भी तत्व अथवा प्राणी बगैर प्रयोजन के नहीं है, प्राणिमों में समरसता, जैव विविधता तथा समत्व का भाव ही तो शिव संकल्पना है, यही विज्ञान है। विज्ञान को धर्म से जोड़ने से इसका लोकमंगलस्वरूप निखारता है, शक्तिमान भी होता है। श्री विकास दीक्षित ने अपने व्याख्यान में बताया कि वस्तुतः आदियोगी शिव तो मन तथा चित्त के देवता हैं। आयुर्वेद को छोड़कर संसार के किसी भी शास्त्र में मन के उपचार का विचार नहीं है। आदियोगी शिव आयुर्वेद तथा योग के माध्यम से मन तथा चित्त के उपचार का संदेश देते हैं, वस्तुतः साधन नहीं अपितु मन प्रधान होता है।
अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कुलपति प्रो. अखिलेश कुमार पाण्डेय ने महाकाल के स्थानिक महत्व को बताते हुए शिवस्वरूप में पर्यावरणीय तथा वैज्ञानिक चेतना को रेखांकित किया। कार्यक्रम का शुभारम्भ में आसनेन रूजो हन्ति के रितेश द्विवेदी द्वारा प्रस्तुत मंगलाचरण तथा अतिथि स्वागत से हुआ। विभागाध्यक्ष डॉ सत्येन्द्र किशोर मिश्र ने अतिथियों का स्वागत करते हुए आदियोगी शिव की महिमा समझने की आवश्यकता बताई। कार्यक्रम में प्रो. उमा शर्मा, डॉ संग्राम भूषण, डॉ आलोक गोयल, डॉ धर्मेन्द्र सिंह, डॉ दीपा द्विवेदी सहित विक्रम विश्वविद्यालय के अनेक शिक्षक, विद्यार्थी एवं शोधार्थियों सहित देशभर से अनेक विद्वान सम्मिलित हुए। अतिथियों के प्रति आभार प्रदर्शन योग विषय की अतिथि विद्वान डॉ बिन्दु सिंह पवार तथा संचालन रितेश द्विवेदी ने किया।
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