स्वतंत्रता संग्राम में जनजाति नायकों का योगदान पर केंद्रित राष्ट्रीय संगोष्ठी विक्रम विश्वविद्यालय में सम्पन्न
जनजाति नायकों पर केंद्रित दो दिवसीय प्रदर्शनी का बड़ी संख्या में अवलोकन किया प्रबुद्धजनों और विद्यार्थियों ने

संसद सदस्य श्री दुर्गादास उईके, बैतूल - हरदा क्षेत्र ने अपने उद्बोधन में कहा कि भारत में जनजाति समुदाय की भूमिका युगों युगों से है। जनजातीय समुदाय प्राचीन काल से राष्ट्रधर्म और दायित्वों के प्रति सजग रहा है। जब भी राष्ट्र की प्रतिगामी शक्तियां सक्रिय हुईं, उनके विरुद्ध जनजातीय समुदाय ने विद्रोह किया। त्रेता युग में श्री राम ने वन गमन करते हुए शबरी माता और केवट के साथ मिलकर सामाजिक समरसता का संदेश दिया। वन में रहने वाले समुदायों का बुद्धत्व चैतन्य था। आज भी राष्ट्र विरोधी शक्तियां मायावी रूप में विविध क्षेत्रों में सक्रिय हैं। विश्व का स्वास्थ्य ठीक नहीं है। हमें जनजातीय समुदाय से प्रेरणा लेनी होगी। द्वापर में जनजातीय समुदाय की माता हिडिंबा ने घटोत्कच जैसे वीर योद्धा को जन्म दिया, जिन्होंने धर्म की प्रतिगामी शक्तियों का प्रतिरोध किया। पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान वन में वास किया था, जो वनवासी राज्य था। आचार्य चाणक्य ने क्रूर अत्याचारी शासक नंद को हटाने के लिए वनवासी सेनाओं का सहयोग लिया था। आजादी के अमृत महोत्सव के दौरान जनजाति नायकों की दिव्य आत्माओं के प्रति श्रद्धा भाव जागृत करने का प्रयास चल रहा है। पूर्वजों के पुरुषार्थ को याद करते हुए हम राष्ट्र को अंदर और बाहर से सशक्त कर सकते हैं। मेवाड़ के महाराणा प्रताप और पूंजा भील ने राष्ट्र के स्वाभिमान को जगाया था। भील समुदाय ने महाराणा प्रताप के मस्तक को झुकने नहीं दिया। महासमर में योगदान देने वाले टंट्या भील, बिरसा मुंडा, भीमा नायक जैसे महानायकों का स्मरण नई चेतना जगाता है।
प्रमुख वक्ता श्रीमती सुजाता मांडवी, नागपुर ने कहा कि 1857 की क्रांति के पूर्व 1855 में संथाल क्रांति हुई थी। उस विद्रोह में दस हजार से अधिक आदिवासियों ने शहादत दी। देश की आजादी के लिए तिलका मांझी ने महत्वपूर्ण योगदान दिया। वे पहले क्रांतिकारी थे, जिन्हें फांसी पर लटकाया गया। अंग्रेजों की रीति नीति और इतिहास को विकृत करने की कोशिशों के कारण जनजाति समुदाय के महानायकों को विस्मृत किया गया। इस दिशा में हमें सजग होना होगा। जनजाति समाजों को स्वयं अपना इतिहास लिखना होगा। स्वतंत्रता आंदोलन के बीज आदिवासी विद्रोह में दिखाई देते हैं। जनजातीय समुदाय ने कभी गुलामी स्वीकार नहीं की। स्वतंत्रता समर में जनजाति महिलाओं ने बहुत बड़ा योगदान दिया है। आदिवासी इतिहास लेखन से संपूर्ण भारत का गौरव जाग्रत होगा।

कुलपति प्रो अखिलेश कुमार पांडेय ने कहा कि मालवा और भील अंचल में अनेक अमर वीरों ने अपना योगदान दिया था। आज जरूरत इस बात की है कि इतिहासकार और शोधकर्ता इतिहास को आम जनता से जोड़ें। विक्रम विश्वविद्यालय में आजादी के अमृत महोत्सव के अंतर्गत स्वाधीनता वीरों के योगदान को पाठ्यक्रम में निर्धारित किया जाएगा। जनजाति नायकों की चित्र दीर्घा बनाई जाएगी। राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग की विभिन्न योजनाओं से संबंधित जानकारी की दीर्घा भी लगाई जाएगी।
राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के क्षेत्रीय कार्यालय प्रभारी एवं निदेशक श्री राकेश कुमार दुबे ने अपने व्याख्यान और पॉवर पॉइंट प्रस्तुतीकरण के माध्यम से आयोग के कार्यों, कर्तव्य, जनजाति अधिकार एवं विकास के विषय, योजनाओं आदि का परिचय दिया। अनुसूचित जनजाति के शोधार्थी श्री अनूप कुमार जमरे, ज्योति सोलंकी, श्री हरेसिंह मुवेल आदि ने एनसीएसटी से संबंधित प्रश्न किए, जिनका समाधान श्री दुबे ने किया। अवसर पर प्रसिद्ध जनजाति नायक श्री भीमा कोमुरम पर केंद्रित आर आर आर फिल्म का गीत तथा एनसीएसटी पर केंद्रित वीडियो प्रस्तुति की गई।
कार्यपरिषद सदस्य डॉ कुसुमलता निगवाल ने कहा कि बिरसा मुंडा जैसे अनेक जनजाति नायकों ने भारत की आजादी के लिए योगदान दिया। उन्होंने जनजाति समुदाय के लोगों को अंग्रेजों के विरुद्ध खड़ा किया और देश के विभिन्न भागों में जागृति पैदा की।
कुलसचिव डॉ प्रशांत पुराणिक ने कहा कि जनजातीय समुदाय ने सल्तनत काल से लेकर ब्रिटिश शासन के दौरान अनेक बार विद्रोह किए। जब भी उनकी स्वायत्तता पर कुठाराघात हुआ, उन्होंने महत्वपूर्ण विद्रोह किया।
संगोष्ठी के प्रारंभ में अर्थशास्त्र अध्ययनशाला की छात्राओं ने कुलगान की प्रस्तुति की। अतिथियों द्वारा वाग्देवी सरस्वती, भारत माता, महान क्रांतिकारी बिरसा मुंडा एवं डॉ भीमराव अंबेडकर जी के चित्र पर पुष्पांजलि करते हुए दीप प्रज्वलन किया गया।
संगोष्ठी के अवसर पर अखिल भारतीय वनवासी कल्याण परिषद के प्रांतीय सह संगठन मंत्री श्री तिलक राज दांगी, प्रांत महामंत्री श्री योगीराज जी परते, अमृत महोत्सव प्रांतीय कार्यक्रम संयोजक डॉ रामदीन त्यागी, श्री ईश्वर पटेल, अध्यक्ष वनवासी कल्याण परिषद, जिला उज्जैन, विजयेन्द्र सिंह आरोण्या, कोषाध्यक्ष, वनवासी कल्याण परिषद, जिला उज्जैन, डॉ आंबेडकर पीठ की शोध अधिकारी डॉ निवेदिता वर्मा, वरिष्ठ कवि श्री अशोक भाटी, महाकाल आदिवासी लोक कल्याण समिति के अध्यक्ष श्री हरि सिंह मुवैल, श्री शांतिलाल जैन, श्री संतोष अग्रवाल श्री चंपालाल अहोरिया आदि सहित अनेक शिक्षक, अधिकारी, कर्मचारी, शोधार्थी और विद्यार्थी उपस्थित रहे।
अतिथियों का स्वागत विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कुलसचिव डॉ प्रशांत पुराणिक, कुलानुशासक एवं संयोजक, राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग प्रो. शैलेंद्रकुमार शर्मा, प्रशासनिक संयोजक एवं चेयर प्रो, डॉ अंबेडकर पीठ, विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन डॉ सत्येंद्र किशोर मिश्रा, शैक्षिक संयोजक डॉ कनिया मेड़ा, डॉ निवेदिता वर्मा, डॉ सचिन राय, श्री चंपालाल अहोरिया, डॉ दयाराम नर्गेश, सुश्री ज्योति सोलंकी, सुश्री सरिता फुलफगर, सुश्री पूजा योगी आदि ने किया।
संगोष्ठी के एक दिवस पूर्व जनजाति नायकों पर केंद्रित विशेष प्रदर्शनी का उद्घाटन स्वर्ण जयंती सभागार, विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन में हुआ। प्रदर्शनी का उद्घाटन स्वर्ण जयंती सभागार में कुलपति प्रोफ़ेसर अखिलेश कुमार पांडेय की अध्यक्षता एवं तिलकराज जी दांगी प्रांतीय सह संगठन मंत्री वनवासी कल्याण परिषद मध्य प्रदेश के मुख्य आतिथ्य में संपन्न हुआ। इस प्रदर्शनी में देश के विभिन्न भागों में स्वतंत्रता संग्राम में योगदान देने वाले जनजाति नायकों के बहुरंगी चित्र, परिचय एवं योगदान को संजोया गया, जिसका अवलोकन बड़ी संख्या में उपस्थित प्रबुद्धजनों, शिक्षकों, शोधकर्ताओं और विद्यार्थियों ने किया। प्रदर्शनी का परिचय संयोजक एवं शोध अधिकारी डॉ निवेदिता वर्मा ने दिया। दो दिवसीय कार्यक्रम में बड़ी संख्या में गणमान्य नागरिकों, प्रबुद्धजनों, शिक्षकों, शोधकर्ताओं और विद्यार्थियों ने सहभागिता की।
राष्ट्रीय संगोष्ठी का संचालन राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के संयोजक एवं कुलानुशासक प्रोफ़ेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा ने किया। आभार प्रदर्शन डॉ अंबेडकर पीठ की शोध अधिकारी डॉ निवेदिता वर्मा ने किया।
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