दुनिया के तमाम हिस्सों में विपरीत परिस्थितियों के बीच हिंदी सेवी आज भी इसकी ज्वाला को जगाए हुए हैं – डॉ जागासिंह
विक्रम विश्वविद्यालय में विश्व पटल पर हिंदी : नई संभावनाएं पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी सम्पन्न
विश्व पटल पर हिंदी भाषा की प्रतिष्ठा के लिए अविस्मरणीय योगदान देने वाले भारतवंशी लेखक डॉ जागासिंह और श्री शुक्ल का सम्मान हुआ
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मुख्य अतिथि मॉरीशस के महात्मा गांधी संस्थान के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ बीरसेन जागासिंह ने अपने उद्बोधन में कहा कि दुनिया के तमाम देशों में विपरीत परिस्थितियों के बीच हिंदी सेवी आज भी उत्कृष्ट कार्य कर रहे हैं। अनेक दशकों पहले उज्जैन में रहते हुए मैंने भारतीयता का पाठ पढ़ा है। मॉरीशस में वर्ष में कई दिनों इंद्रधनुष निकलता है। उसके स्वरूप के संबंध में प्राचीन चिंतकों ने जो कहा है वह आज भी सार्थक है। भारत में रहते हुए हम भारतीयता की उत्कृष्टता को उतना नहीं समझ सकते, जितना उसे दूर से समझा जा सकता है। मॉरीशस वासियों के लिए भारत अपना देश है, पराया नहीं। हिंदी के माध्यम से मॉरीशस वासियों ने सदियों पहले जो चेतना प्राप्त की, वह आज भी जीवित है। भारत के सारे लोग हम लोगों के लिए कुटुंब के लोग हैं मॉरीशस में विद्यालयों में हिंदी के पठन-पाठन की श्रेष्ठ व्यवस्था है।
प्रवासी साहित्यकार श्री सुरेशचंद्र शुक्ल शरद आलोक, ओस्लो, नॉर्वे ने विश्व पटल पर हिंदी के माध्यम से रोजगार के अवसरों की चर्चा की। उन्होंने कहा कि हिंदी को आगे ले जाने के लिए सभी स्तरों पर कार्य करना होगा। दुनिया के तमाम हिस्सों में भारतीय संस्कृति को लेकर काम करने वाले ऐसे केंद्र विकसित किए जाएं, जहां भारत को समझने के लिए सभी प्रकार की सुविधाएं उपलब्ध हों।
मध्यप्रदेश हिंदी ग्रंथ अकादमी, भोपाल के संचालक श्री अशोक कड़ेल ने कहा कि भाषा, संस्कृति का अधिष्ठान है। भाषा के माध्यम से संस्कृति और मूल्य प्रभावित होते हैं। अपनी भाषा अपनेपन का भाव उत्पन्न करती है। स्वभाषा को महत्व देना प्रत्येक व्यक्ति का दायित्व है। भारत भाषाओं का गुलदस्ता है। अपनी भाषा से जुड़कर हम अपनी धरोहर को आगे बढ़ा सकते हैं।
कुलसचिव डॉ प्रशांत पुराणिक ने कहा कि हिंदी के विकास के लिए निरंतर कार्य हो रहे हैं। नई पीढ़ी हिंदी के प्रति जागृति के लिए व्यापक प्रयास करें। हिंदी के प्रयोग से जुड़ी हुई बारीकियों को ध्यान में रखना जरूरी है।
कला संकायाध्यक्ष प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठा दिलाने में प्रवासी भारतवंशियों के संघर्ष और कष्टमय जीवन की अविस्मरणीय भूमिका रही है। हिंदी उनके लिए भारतीय संस्कृति और परंपरा के साथ जीवंत संबंध बनाने का माध्यम रही है। मॉरीशस में बसे भारतवंशियों के पूर्वजों ने अपने खून और पसीने से उस देश को सँवारा है। वर्तमान दौर में प्रवासी साहित्य और संस्कृति के गहन अध्ययन की आवश्यकता है। विक्रम विश्वविद्यालय हिंदी अध्ययनशाला में प्रवासी साहित्य और संस्कृति अध्ययन केंद्र प्रारंभ किया जाएगा।
प्रो गीता नायक ने कहा कि हिंदी और भारत का अभिन्न संबंध है। भूमंडलीकरण से हम हिंदी को अलग नहीं कर सकते। अनेक देशों में हिंदी के नए-नए रूप प्रचलन में आ रहे हैं। हिंदी क्रियोलीकरण से बचाना होगा।
डॉक्टर जगदीश चंद्र शर्मा ने कहा कि वर्तमान दौर में विचार और ज्ञान विज्ञान की भाषा के रूप में हिंदी का प्रयोग बढ़े, यह जरूरी है।
मॉरीशस से आईं श्रीमती देवंती जागासिंह ने मॉरीशस में प्रचलित विवाह के मंगल प्रसंग से जुड़ा हल्दी लोकगीत सुनाया।
डॉ प्रतिष्ठा शर्मा ने कहा कि हिंदी के अनेक ग्रंथों के माध्यम से असंख्य लोग प्रेरणा प्राप्त कर रहे हैं। जनसंचार और तकनीकी के क्षेत्र में हिंदी स्थापित हो गई है।
कार्यक्रम में उपस्थित जनों को प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा ने हिंदी में हस्ताक्षर, नाम पट्ट लेखन और निमंत्रण पत्र प्रकाशन की शपथ दिलाई। इस महत्त्वपूर्ण आयोजन में वाणिज्य विभाग के डॉ शैलेंद्र भारल, डॉक्टर सुशील कुमार शर्मा, श्रीमती हीना तिवारी आदि सहित विभिन्न विषयों के शोधकर्ताओं और विद्यार्थियों ने भाग लिया।
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