- विमुक्त और घुमंतू जातियों का देवलोक संवाद और अध्ययन के लिए नूतन विषय - डॉ. पारे
- बंजारा समुदाय में संस्कारों का महत्वपूर्ण स्थान - डॉ. शैलेंद्र कुमार शर्मा
- उज्जैन में विमुक्त एवं घुमंतू जातियों के देवलोक पर तीन दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का हुआ शुभारंभ
- विमुक्त एवं घुमंतू जातियां भारतीय संस्कृति की संरक्षक
उज्जैन। त्रिवेणी कला संग्रहालय में जनजातीय लोक कला एवं बोली विकास अकादमी मध्यप्रदेश संस्कृति परिषद, भोपाल द्वारा विमुक्त एवं घुमंतू जातियों के देवलोक विषय पर तीन दिवसीय संगोष्ठी का शुभारंभ शुक्रवार को हुआ, शुभारंभ सत्र की अध्यक्षता राजस्थान से आए वरिष्ठ लोक अध्येता डॉ.महेंद्र भानावत, उदयपुर ने की। बीज वक्तव्य हैडलबर्ग यूनिवर्सिटी, जर्मनी के रिसर्च स्कॉलर श्री अश्विनी शर्मा तथा जनजातीय लोक कला एवं बोली विकास अकादमी, भोपाल के निदेशक डॉ.धर्मेंद्र पारे ने प्रस्तावना व स्वागत उद्बोधन दिया। उद्घाटन के पश्चात प्रथम तकनीकी सत्र में विक्रम विश्वविद्यालय के कुलाशासक प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा का व्याख्यान हुआ। इस अवसर पर अकादमी द्वारा प्रकाशित पुस्तक पशुचारक: ठाट्या एवं चौमासा पत्रिका के संगोष्ठी आधारित विशेषांक का लोकार्पण किया गया।
जनजातीय लोक कला एवं बोली विकास अकादमी के निदेशक डॉ. धर्मेंद्र पारे ने स्वागत वक्तव्य में कहा कि इस तीन दिवसीय संगोष्ठी में देश भर से पधारे हुए अध्येता विमुक्त एवं घुमंतू जातियों के देवलोक पर विचार-विमर्श एवं संवाद कर रहे है पूर्व में भी अकादमी द्वारा संपन्न विमुक्त और घुमंतु समुदायों की वाचिक और कला परंपराओं पर एकाग्र तीन संगोष्ठियों और इनके उत्थान में सक्रिय संस्थाओं, व्यक्तियों का ध्यान इस विषय की ओर आकृष्ट किया है। विमुक्त और घुमंतू जातियों का देवलोक संवाद और अध्ययन के लिए बिल्कुल नूतन विषय है शायद ही इस विषय पर अब तक कोई चर्चा- परिचर्चा संपन्न हुई हो।
उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ लोक अध्येता डॉ.महेंद्र भानावत, उदयपुर ने कहा कि देवलोक प्रत्येक समाज का अपना रक्षा तंत्र होता है। लोक को शास्त्र की आवश्यकता नहीं होती, जबकि शास्त्र लोक की बुनियाद पर खड़ा होता है। लोक ने ही देवताओं की धारणा अनेक अर्थों में शास्त्र, सभ्यता और संस्कृति को दी है। डॉ भानावत ने देव लोक के संदर्भ में दिव्यात्माओं, प्रेतों और मानवीय रूप में आए देवताओं के मेलों तथा देव धारणाओं के पोषक नाट्य, ख्याल, रम्मतों आदि को भी विस्तार से विवेचित किया। हेडलबर्ग यूनिवर्सिटी से शोध कर रहे श्री अश्विनी शर्मा ने प्रो. विलियम सेक लिखित गोड ऑफ़ जस्टिस के आधार पर कहा कि यायावर समुदायों में देव पूजन का संबंध कहीं न कहीं सामाजिक न्याय से होता है। श्री शर्मा ने विमुक्त एवं घुमंतू जातियों के देवलोक के सांस्कृतिक एवं सामाजिक पक्षों पर विचार व्यक्त किए।उद्घाटन सत्र का संचालन शुभम चौहान ने किया।
बंजारा समुदाय में संस्कारों का महत्वपूर्ण स्थान - डॉ शर्मा
संगोष्ठी के तकनीकी सत्र की अध्यक्षता कर रहे विक्रम विश्वविद्यालय के कुलानुशासक और वरिष्ठ साहित्यकार डॉ शैलेंद्रकुमार शर्मा ने 'बंजारा समुदाय के विविध संस्कार' विषय पर विचार प्रस्तुत करते हुए कहा कि बंजारा समुदाय की जीवन शैली, संस्कृति और परंपराओं में संस्कारों का महत्वपूर्ण स्थान है। परिवार और समाज की धारणाओं, मूल्यों और मान्यताओं को सुरक्षित और जीवंत रखते हुए बंजारा जन सदियों से पीढ़ी दर पीढ़ी संस्कारों को हस्तांतरित करते आ रहे हैं।
द्वितीय सत्र की अध्यक्षता डॉ सूर्यकांत भगवान भिसे ने की, इस सत्र में डॉ श्रीकृष्ण काकड़े, अकोला, डॉ. दीपक दत्तात्रय, पूजा सक्सेना, शिवम शर्मा ने अपनी बात रखी। मुख्य वक्ता डॉ. श्रीकृष्ण काकडे ने कहा कि घुमंतू धनगर चरवाहों के देवी- देवता अलग- अलग है। धनगर विशेषकर नर्मदा के दक्षिणी तट में घूमते हैं, उनका दृढ़ विश्वास रहता है कि देवी- देवता उनका सदैव संरक्षण करते हैं। ज्ञात हो कि इस तीन दिवसीय संगोष्ठी में मध्य प्रदेश के अलावा महाराष्ट्र, राजस्थान , दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश,छत्तीसगढ़,आंध्रप्रदेश आदि राज्यों के प्रतिभागी सहभागिता कर रहें है।
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