Skip to main content

गुजरात के तकनीकी शिक्षण एवं प्रशिक्षण में निटर का योगदान महत्वपूर्ण - श्री जी टी पंड्या

भोपाल तकनीकी शिक्षण , प्रशिक्षण, पाठ्यक्रम निर्माण , शोध के छेत्र  में निटर भोपाल का योगदान महत्वपूर्ण हैं। यह बिचार श्री जी टी पंड्या , डायरेक्टर टेक्निकल एजुकेशन गुजरात ने निटर भोपाल में आयोजित विभिन्न प्रशिक्षण कार्यक्रमों के समापन अवसर पर व्यक्त किये । उन्होंने गुजरात में तकनीकी शिक्षा के छेत्र में किये जा रहे अभिनव प्रयोग एवं उनके परिणामों पर चर्चा की  उन्होंने कहा कि, गुजरात में तकनीकी शिक्षा ग्रहण कर रहे विद्यार्थियों , शिक्षकों के लिए विशेष प्रयोजन किये गए हैं जिनके उल्लेखनीय परिणाम सामने आये हैं । उन्होंने पांच वर्षों के डाटा के साथ गुजरात की उपलब्धियों को बताया। श्री जी. टी. पंडया ने निटर भोपाल की प्रंशसा करते हुए कहा कि, प्रशिक्षणार्थियों को शिक्षा प्रौद्योगिकी के विभिन्न आयामों का प्रशिक्षण देने के लिए निटर संस्थान का धन्यवाद। उन्होंने यह भी कहा कि, निटर भोपाल के रिसर्च प्रोजेक्ट  में से यदि गुजरात के प्रशिक्षणार्थी जिस भी प्रोजेक्ट पर कार्य करेंगे तो निटर भोपाल को हम अपना मेंटर बनाएंगे। उन्होंने प्रशिक्षणार्थियों को भी संबोधित करते हुए कहा कि, आपने जो प्रशिक्षण यहां से लिया है उसको अपने छात्रों के साथ भी शेयर करें। 

निटर निदेशक प्रो. सी. सी. त्रिपाठी ने  कहा कि, हमारा संसथान इस क्षेत्र में गुणबत्ता सुनिश्चित करने के लिए कमिटेड है। गुजरात के शिक्षक एवं विद्यार्थियों निटर के उत्कृष्तता केंद्र द्वारा आयोजित किये जाने बाले डिप्लोमा एवं सर्टिफिकेट प्रोग्राम, रिसर्च प्रोजेक्ट्स एवं प्रस्तावित एक्सपीरिऐंसिअल लर्निंग सेंटर में आकर प्रशिक्षण के साथ-साथ शोध कार्य भी कर सकते हैं। प्रो. त्रिपाठी ने कहा कि, प्रधानमंत्री जी का भी कहना है कि, शोध सिर्फ पत्रिकाओं में छपने तक ही सिमित न रहे बल्कि शोध विकास के लिए भी हो। प्रो. सी. सी. त्रिपाठी ने प्रशिक्षण कार्यक्रमों में गुजरात के प्रशिक्षणार्थियों को भेजने एवं निटर को मेंटर बनाने के लिए श्री जी. टी. पंडया को धन्यवाद दिया ।

Comments

मध्यप्रदेश समाचार

देश समाचार

Popular posts from this blog

आधे अधूरे - मोहन राकेश : पाठ और समीक्षाएँ | मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे : मध्यवर्गीय जीवन के बीच स्त्री पुरुष सम्बन्धों का रूपायन

  आधे अधूरे - मोहन राकेश : पीडीएफ और समीक्षाएँ |  Adhe Adhure - Mohan Rakesh : pdf & Reviews मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा हिन्दी के बहुमुखी प्रतिभा संपन्न नाट्य लेखक और कथाकार मोहन राकेश का जन्म  8 जनवरी 1925 को अमृतसर, पंजाब में  हुआ। उन्होंने  पंजाब विश्वविद्यालय से हिन्दी और अंग्रेज़ी में एम ए उपाधि अर्जित की थी। उनकी नाट्य त्रयी -  आषाढ़ का एक दिन, लहरों के राजहंस और आधे-अधूरे भारतीय नाट्य साहित्य की उपलब्धि के रूप में मान्य हैं।   उनके उपन्यास और  कहानियों में एक निरंतर विकास मिलता है, जिससे वे आधुनिक मनुष्य की नियति के निकट से निकटतर आते गए हैं।  उनकी खूबी यह थी कि वे कथा-शिल्प के महारथी थे और उनकी भाषा में गज़ब का सधाव ही नहीं, एक शास्त्रीय अनुशासन भी है। कहानी से लेकर उपन्यास तक उनकी कथा-भूमि शहरी मध्य वर्ग है। कुछ कहानियों में भारत-विभाजन की पीड़ा बहुत सशक्त रूप में अभिव्यक्त हुई है।  मोहन राकेश की कहानियां नई कहानी को एक अपूर्व देन के रूप में स्वीकार की जाती ...

खाटू नरेश श्री श्याम बाबा की पूरी कहानी | Khatu Shyam ji | Jai Shree Shyam | Veer Barbarik Katha |

संक्षेप में श्री मोरवीनंदन श्री श्याम देव कथा ( स्कंद्पुराणोक्त - श्री वेद व्यास जी द्वारा विरचित) !! !! जय जय मोरवीनंदन, जय श्री श्याम !! !! !! खाटू वाले बाबा, जय श्री श्याम !! 'श्री मोरवीनंदन खाटू श्याम चरित्र'' एवं हम सभी श्याम प्रेमियों ' का कर्तव्य है कि श्री श्याम प्रभु खाटूवाले की सुकीर्ति एवं यश का गायन भावों के माध्यम से सभी श्री श्याम प्रेमियों के लिए करते रहे, एवं श्री मोरवीनंदन बाबा श्याम की वह शास्त्र सम्मत दिव्यकथा एवं चरित्र सभी श्री श्याम प्रेमियों तक पहुंचे, जिसे स्वयं श्री वेद व्यास जी ने स्कन्द पुराण के "माहेश्वर खंड के अंतर्गत द्वितीय उपखंड 'कौमारिक खंड'" में सुविस्तार पूर्वक बहुत ही आलौकिक ढंग से वर्णन किया है... वैसे तो, आज के इस युग में श्री मोरवीनन्दन श्यामधणी श्री खाटूवाले श्याम बाबा का नाम कौन नहीं जानता होगा... आज केवल भारत में ही नहीं अपितु समूचे विश्व के भारतीय परिवार ने श्री श्याम जी के चमत्कारों को अपने जीवन में प्रत्यक्ष रूप से देख लिया हैं.... आज पुरे भारत के सभी शहरों एवं गावों में श्री श्याम जी से सम्बंधित संस्थाओं...

दुर्गादास राठौड़ : जिण पल दुर्गो जलमियो धन बा मांझल रात - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

अमरवीर दुर्गादास राठौड़ : जिण पल दुर्गो जलमियो धन बा मांझल रात। - प्रो शैलेन्द्रकुमार शर्मा माई ऐड़ा पूत जण, जेहड़ा दुरगादास। मार मंडासो थामियो, बिण थम्बा आकास।। आठ पहर चौसठ घड़ी घुड़ले ऊपर वास। सैल अणी हूँ सेंकतो बाटी दुर्गादास।। भारत भूमि के पुण्य प्रतापी वीरों में दुर्गादास राठौड़ (13 अगस्त 1638 – 22 नवम्बर 1718)  के नाम-रूप का स्मरण आते ही अपूर्व रोमांच भर आता है। भारतीय इतिहास का एक ऐसा अमर वीर, जो स्वदेशाभिमान और स्वाधीनता का पर्याय है, जो प्रलोभन और पलायन से परे प्रतिकार और उत्सर्ग को अपने जीवन की सार्थकता मानता है। दुर्गादास राठौड़ सही अर्थों में राष्ट्र परायणता के पूरे इतिहास में अनन्य, अनोखे हैं। इसीलिए लोक कण्ठ पर यह बार बार दोहराया जाता है कि हे माताओ! तुम्हारी कोख से दुर्गादास जैसा पुत्र जन्मे, जिसने अकेले बिना खम्भों के मात्र अपनी पगड़ी की गेंडुरी (बोझ उठाने के लिए सिर पर रखी जाने वाली गोल गद्देदार वस्तु) पर आकाश को अपने सिर पर थाम लिया था। या फिर लोक उस दुर्गादास को याद करता है, जो राजमहलों में नहीं,  वरन् आठों पहर और चौंसठ घड़ी घोड़े पर वास करता है और उस पर ही बैठकर बाट...