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तीन दिवसीय गोस्वामी तुलसीदास जयंती महोत्सव के समापन पर हुआ प्रो शर्मा का सारस्वत सम्मान

दिव्य चातुर्मास्य महायज्ञ के अंतर्गत गोस्वामी तुलसीदास के अवदान पर हुई विद्वत संगोष्ठी

उज्जैन। उज्जैन में जगतगुरु रामानंद आचार्य श्री रामनरेश आचार्य जी महाराज के पावन सान्निध्य में आयोजित दिव्य चातुर्मास्य महायज्ञ के अंतर्गत तीन दिवसीय गोस्वामी तुलसीदास जयंती महोत्सव का आयोजन किया गया। इसके अंतर्गत गोस्वामी तुलसीदास के अवदान पर केंद्रित विद्वत् संगोष्ठी आयोजित की गई। 

इस अवसर पर साहित्यकार, समालोचक एवं विक्रम विश्वविद्यालय के कुलानुशासक प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा का गोस्वामी तुलसीदास के स्वरूप में सारस्वत सम्मान जगद्गुरु रामानंदाचार्य श्री रामनरेशाचार्य जी महाराज, श्रीमठ, पंच गंगा, काशी के सान्निध्य में किया गया। सम्मान के रूप में अतिथिगण सन्त श्री रामविनयदास जी, काशी, सन्त श्री रामलखनदास जी, मानस केसरी, अयोध्या और श्रीधाम के ट्रस्टी श्री संजय मंगल, इंदौर द्वारा उन्हें शॉल, श्रीफल, सम्मान राशि एवं श्रीमठ के ग्रंथ अर्पित कर सम्मानित किया गया।

इस अवसर पर श्रीधाम, नीलगंगा, उज्जैन में आयोजित विद्वत् संगोष्ठी में प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा, डॉ ऊर्मि शर्मा, श्री राम दवे, डॉ पुष्पा चौरसिया, डॉ. जगदीश चंद्र शर्मा ने गोस्वामी तुलसीदास के साहित्य के विविध आयामों पर महत्त्वपूर्ण प्रकाश डाला।

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए जगद्गुरु रामानंदाचार्य श्री रामनरेशाचार्य जी महाराज ने कहा कि आहार शुद्धि और सत्व शुद्धि से मनुष्य बनता है। भारतीय संस्कृति ने श्रेष्ठ चिंतन को प्रतिष्ठित करने वाले संत रविदास और कबीर को  परम संतत्व दिया। वेदों का प्रतिपाद्य ईश्वर है। जब वे राम के रूप में धरा पर आ गए तो देवों के पास वाल्मीकि रामायण ही शेष रह गई। वे वाल्मीकि ही बाद में गोस्वामी तुलसीदास के रूप में जन्मे। मधुसूदन सरस्वती ने गोस्वामी तुलसीदास की कविता को मंजरी के रूप में बताया है, जो मधु और रस से युक्त है। स्वयं राम भ्रमर के रूप में उसका पान करते हैं। तुलसीदास जी ने महाभाष्यकार पंतजलि द्वारा प्रतिपादित ज्ञान की चारों अवस्थाओं को चरितार्थ किया। 

कला संकायाध्यक्ष प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि गोस्वामी तुलसीदास की वाणी सबके मंगल का विधान करने वाली वाणी है। उनका रामचरितमानस अक्षय ज्ञान निधि और आदर्श जीवन की आचार संहिता है। तुलसी ने संपूर्ण विश्व मानव के कल्याण के लिए मानस और अन्य कृतियों को रचा। भारतीय सभ्यता और संस्कृति की परंपरा में स्वामी रामानंद जी का आगमन ऐतिहासिक सिद्ध हुआ। उनके शिष्य - प्रशिष्यों ने सामाजिक समरसता और सर्वमंगल का महान संदेश दिया। तुलसीदास जी ने संपूर्ण संसार को सियाराम मय माना है। इसलिए उनकी दृष्टि में कुछ भी अग्राह्य नहीं है। तुलसी के श्रीराम परब्रह्म परमात्मा हैं। उनमें शील, शक्ति और सौंदर्य का समन्वय है। उनका अवतार लोक-कल्याण के लिए हुआ है।

कवि एवं संपादक श्रीराम दवे, उज्जैन ने गोस्वामी तुलसीदास के काव्य में यथार्थ बोध पर प्रकाश डाला। 

डॉ ऊर्मि शर्मा ने गोस्वामी तुलसीदास और नारी चेतना पर व्याख्यान दिया। डॉ जगदीश चंद्र शर्मा ने तुलसीदास की कृति जानकी मंगल के काव्य वैशिष्ट्य को उद्घाटित किया। डॉ पुष्पा चौरसिया ने गोस्वामी तुलसीदास के जीवन और भक्ति के आयामों पर प्रकाश डाला।

प्रारम्भ में मंगलाचरण वेदाचार्य डॉ उपेंद्र मिश्र, वाराणसी और राहुल शर्मा ने किया। बधाई गीत मिथिला के जनकजाशरण जी और समूह ने प्रस्तुत किया। 

कार्यक्रम में देश के विभिन्न राज्यों के मानस प्रेमी, गणमान्य नागरिक, श्रद्धालुजन और साहित्यकार बड़ी संख्या में उपस्थित थे। 

कार्यक्रम का संयोजन डॉ जगदीश चंद्र शर्मा एवं अमिताभ त्रिपाठी ने किया।

कार्यक्रम में विद्वत् संगोष्ठी में सम्मिलित हुए साहित्यकार श्री राम दवे, डॉ ऊर्मि शर्मा, डॉ जगदीश चंद्र शर्मा एवं डॉ पुष्पा चौरसिया को अतिथियों द्वारा शॉल, श्रीफल, सम्मान राशि एवं श्रीमठ द्वारा प्रकाशित ग्रंथ भेंट कर उनका सारस्वत सम्मान किया गया।









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