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जैव प्रौद्योगिकी के विद्यार्थियों को कुलपति प्रोफेसर पांडेय ने करवाया मशरुम जैव विविधता का अध्ययन

उज्जैन । प्राणिकी एवं जैव प्रौद्योगिकी अध्ययनशाला में अध्ययनरत जैव प्रौद्योगिकी के विद्यार्थियों को विश्वविद्यालय परिसर में मशरूम जैव विविधता का अध्ययन कुलपति प्रो पांडेय द्वारा करवाया गया । विद्यार्थियों को मशरूम का आवास , पारिस्थितिकी वृद्धि हेतु उचित वातावरण ,पहचानने के लक्षण तथा उनके उपयोग की जानकारी प्रदान की गई। विद्यार्थियों को मशरूम को फोटोग्राफ , लक्षण तथा उनके माइसीलियम की संरचना आदि को प्रायोगिक रिकॉर्ड में लिखने के लिए निर्देशित किया गया।

प्राचीन काल से मशरूम को जंगलों से एकत्र कर उसका उपयोग दवाइयों तथा भोजन के रूप में किए जाने का प्रचलन रहा है। धीरे-धीरे मशरूम की खेती तथा उसका व्यवसायिक उपयोग विश्व के अधिकांश देशों में प्रारंभ हुआ। भारत में सभी प्रकार की जलवायु एवं व्यर्थ कृषि अवशेष पूरे वर्ष उपलब्ध रहते हैं , इसलिए यहां पर पूरे वर्ष मशरूम का उत्पादन किया जा सकता है । भारत में मशरूम की बढ़ती मांग के कारण उसकी खेती भी देशभर में कई जगह की जाती है। सामान्यतः भारत में पाए जाने वाले मशरूम में सफेद बटन, ऑयस्टर, मिल्की, क्रेमिनि, शिटाके तथा पोर्टोबेलो प्रजातियां प्रमुख है।

विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के कुलपति प्रोफ़ेसर अखिलेश कुमार पांडेय ने प्राणिकी एवं जैव प्रौद्योगिकी अध्ययनशाला में अध्ययनरत विद्यार्थियों को विश्वविद्यालय परिसर में शैक्षणिक भ्रमण कराते हुए मशरूम जैव विविधता का अध्ययन कराया। इस कार्यक्रम में विद्यार्थियों को मशरूम प्रजाति के पहचान करने के लक्षण , उनके आवास ,पारिस्थितिकी, माइसीलियम की संरचना तथा मशरूम के उत्पादन एवं उपयोग की जानकारी दी गई। विश्वविद्यालय परिसर में जीनस, लेटिपोरस, गेनोडामि, प्लुरोट्स आदि प्रजाति के मशहूर विभिन्न पौधों में विकसित होते हुए पाए गए। विद्यार्थियों को एकत्र किए गए विभिन्न प्रजाति के मशरुम का फोटो , लक्षण ,माइसीलियम की संरचना को प्रायोगिक रिकॉर्ड में लिखने हेतु निर्देशित किया गया।

कुलपति प्रोफेसर पांडेय ने बताया कि मशरूम से विभिन्न प्रकार की उपयोगी दवाइयां तथा अन्य उत्पाद बनाए जाते हैं । मशरूम का उपयोग शर्करा, कैस्ट्रॉल को नियंत्रित करने हेतु तथा हृदय रोगियों की आहार योजना में शामिल किया जा सकता है। मशरूम का उपयोग कैंसर एवं जीवाणु रोधी दवाइयों के निर्माण में किया जाता है ।अतः विद्यार्थीगण मशरूम की रासायनिक स्थिति तथा उन में मिलने वाले उपयोगी पदार्थों का अध्ययन कर औषधि निर्माण में अपना योगदान दे सकते हैं । कुलपति के साथ शैक्षणिक भ्रमण में चारवी मदान, हर्षिता पांडेय, पलक विश्वकर्मा, मनस्वी दुबे, रिषिका यादव, अल्फिया नादिर एवं कुमकुम उपाध्याय शामिल थी। कुलपति प्रो पांडेय ने देवास रोड पर भी गैनोडमी प्रजाति के मशरूम की पहचान की तथा वहां पर उपस्थित बीएससी बायो इनफॉर्मेटिक्स प्रथम वर्ष की छात्राएं उमा बैरागी एवं निकिता बैरागी को मशरूम की उपयोगिता की जानकारी प्रदान की ।


इस शैक्षणिक भ्रमण में डॉक्टर संदीप तिवारी, डॉक्टर अरविंद शुक्ला, डॉ शिवि भसीन, डॉ गरिमा शर्मा , डॉ संतोष ठाकुर, इंजी अंजली उपाध्याय , डॉ मुकेश वाणी एवं विद्यार्थीगण उपस्थित थे।

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