Skip to main content

हर घर तिरंगा अभियान राष्ट्रप्रेम का एक अनूठा यज्ञ है, तिरंगे को गर्व और गौरव से फहराएं - प्रो. सी. सी. त्रिपाठी

भोपाल। एनआईटीटीटीआर भोपाल के निदेशक प्रो. सी. सी. त्रिपाठी ने संकाय सदस्यों, अधिकारियों, कर्मचारियों व उनके परिवारों को आज़ादी की 75वीं वर्षगांठ पर पी.एम. मोदी जी के हर घर तिरंगा अभियान को सफल बनाने के लिए प्रेरित एवं इसमे भाग लेने का आहवान किया। प्रो. त्रिपाठी ने बताया कि, राष्ट्रीय ध्वज के साथ नागरिकों का संबंध हमेशा औपचारिक और विशुद्ध रूप से संस्थागत रहा है। यह अभियान इसे नागरिक के लिए और अधिक व्यक्तिगत बनाने का प्रयास करता है और राष्ट्र निर्माण के प्रति नागरिकों की प्रतिबद्धता के महत्व पर भी जोर देता है। लोगों के हृदय में स्वतंत्रता संग्राम की स्मृति रखने, देश के लिए बलिदान देने वालों को याद करने और देशभक्ति के साथ कृतज्ञता की भावना को बढ़ाने के उद्देश्य से यह अभियान आयोजित किया जा रहा है। 'हर घर तिरंगा' अभियान एक बेहद ही वृहद् और महत्वपूर्ण अभियान है। 

स्वतंत्रता के 75वें वर्ष में एक राष्ट्र के रूप में ध्वज को सामूहिक रूप से लाना इस प्रकार न केवल तिरंगे के साथ व्यक्तिगत जुड़ाव का कार्य बन जाता है, बल्कि राष्ट्र निर्माण के प्रति हमारी प्रतिबद्धता और सम्मान का प्रतीक भी बन जाता है। भारत के नेशनल फ्लैग 'तिरंगा' को लेकर हम सभी गौरव और सम्मान की भावना रखते हैं। विश्व के हर देश के लिए अपने देश का राष्ट्रध्वज बहुत ही महत्वपूर्ण और सम्माननीय होता है। देश का झंडा अपने देश की आन बान और शान का प्रतीक माना जाता है। यही कारण है भारत के लोग भी अपने देश के तिरंगे का बहुत सम्मान और आदर करते हैं। 

प्रो. त्रिपाठी ने निटर परिवार से अपने-अपने घरों में तिरंगा फहराने तथा मीडिया प्लेटफॉर्म पर प्रोफाइल फोटो में तिरंगा लगाने का आग्रह किया।

Comments

मध्यप्रदेश समाचार

देश समाचार

Popular posts from this blog

खाटू नरेश श्री श्याम बाबा की पूरी कहानी | Khatu Shyam ji | Jai Shree Shyam | Veer Barbarik Katha |

संक्षेप में श्री मोरवीनंदन श्री श्याम देव कथा ( स्कंद्पुराणोक्त - श्री वेद व्यास जी द्वारा विरचित) !! !! जय जय मोरवीनंदन, जय श्री श्याम !! !! !! खाटू वाले बाबा, जय श्री श्याम !! 'श्री मोरवीनंदन खाटू श्याम चरित्र'' एवं हम सभी श्याम प्रेमियों ' का कर्तव्य है कि श्री श्याम प्रभु खाटूवाले की सुकीर्ति एवं यश का गायन भावों के माध्यम से सभी श्री श्याम प्रेमियों के लिए करते रहे, एवं श्री मोरवीनंदन बाबा श्याम की वह शास्त्र सम्मत दिव्यकथा एवं चरित्र सभी श्री श्याम प्रेमियों तक पहुंचे, जिसे स्वयं श्री वेद व्यास जी ने स्कन्द पुराण के "माहेश्वर खंड के अंतर्गत द्वितीय उपखंड 'कौमारिक खंड'" में सुविस्तार पूर्वक बहुत ही आलौकिक ढंग से वर्णन किया है... वैसे तो, आज के इस युग में श्री मोरवीनन्दन श्यामधणी श्री खाटूवाले श्याम बाबा का नाम कौन नहीं जानता होगा... आज केवल भारत में ही नहीं अपितु समूचे विश्व के भारतीय परिवार ने श्री श्याम जी के चमत्कारों को अपने जीवन में प्रत्यक्ष रूप से देख लिया हैं.... आज पुरे भारत के सभी शहरों एवं गावों में श्री श्याम जी से सम्बंधित संस्थाओं...

आधे अधूरे - मोहन राकेश : पाठ और समीक्षाएँ | मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे : मध्यवर्गीय जीवन के बीच स्त्री पुरुष सम्बन्धों का रूपायन

  आधे अधूरे - मोहन राकेश : पीडीएफ और समीक्षाएँ |  Adhe Adhure - Mohan Rakesh : pdf & Reviews मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा हिन्दी के बहुमुखी प्रतिभा संपन्न नाट्य लेखक और कथाकार मोहन राकेश का जन्म  8 जनवरी 1925 को अमृतसर, पंजाब में  हुआ। उन्होंने  पंजाब विश्वविद्यालय से हिन्दी और अंग्रेज़ी में एम ए उपाधि अर्जित की थी। उनकी नाट्य त्रयी -  आषाढ़ का एक दिन, लहरों के राजहंस और आधे-अधूरे भारतीय नाट्य साहित्य की उपलब्धि के रूप में मान्य हैं।   उनके उपन्यास और  कहानियों में एक निरंतर विकास मिलता है, जिससे वे आधुनिक मनुष्य की नियति के निकट से निकटतर आते गए हैं।  उनकी खूबी यह थी कि वे कथा-शिल्प के महारथी थे और उनकी भाषा में गज़ब का सधाव ही नहीं, एक शास्त्रीय अनुशासन भी है। कहानी से लेकर उपन्यास तक उनकी कथा-भूमि शहरी मध्य वर्ग है। कुछ कहानियों में भारत-विभाजन की पीड़ा बहुत सशक्त रूप में अभिव्यक्त हुई है।  मोहन राकेश की कहानियां नई कहानी को एक अपूर्व देन के रूप में स्वीकार की जाती ...

दुर्गादास राठौड़ : जिण पल दुर्गो जलमियो धन बा मांझल रात - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

अमरवीर दुर्गादास राठौड़ : जिण पल दुर्गो जलमियो धन बा मांझल रात। - प्रो शैलेन्द्रकुमार शर्मा माई ऐड़ा पूत जण, जेहड़ा दुरगादास। मार मंडासो थामियो, बिण थम्बा आकास।। आठ पहर चौसठ घड़ी घुड़ले ऊपर वास। सैल अणी हूँ सेंकतो बाटी दुर्गादास।। भारत भूमि के पुण्य प्रतापी वीरों में दुर्गादास राठौड़ (13 अगस्त 1638 – 22 नवम्बर 1718)  के नाम-रूप का स्मरण आते ही अपूर्व रोमांच भर आता है। भारतीय इतिहास का एक ऐसा अमर वीर, जो स्वदेशाभिमान और स्वाधीनता का पर्याय है, जो प्रलोभन और पलायन से परे प्रतिकार और उत्सर्ग को अपने जीवन की सार्थकता मानता है। दुर्गादास राठौड़ सही अर्थों में राष्ट्र परायणता के पूरे इतिहास में अनन्य, अनोखे हैं। इसीलिए लोक कण्ठ पर यह बार बार दोहराया जाता है कि हे माताओ! तुम्हारी कोख से दुर्गादास जैसा पुत्र जन्मे, जिसने अकेले बिना खम्भों के मात्र अपनी पगड़ी की गेंडुरी (बोझ उठाने के लिए सिर पर रखी जाने वाली गोल गद्देदार वस्तु) पर आकाश को अपने सिर पर थाम लिया था। या फिर लोक उस दुर्गादास को याद करता है, जो राजमहलों में नहीं,  वरन् आठों पहर और चौंसठ घड़ी घोड़े पर वास करता है और उस पर ही बैठकर बाट...