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विक्रम विश्वविद्यालय द्वारा गाजर घास जागरूकता एवं उन्मूलन सप्ताह का शुभारंभ

उज्जैन। गाजर घास के दुष्प्रभावों के बारे में लोगों को जागरूक करने तथा इसके नियंत्रण के उद्देश्य से विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन द्वारा पुरातत्व संग्रहालय विक्रम कीर्ति मंदिर में गाजर घास जागरूकता सप्ताह 16 अगस्त से 22 अगस्त 2022 का शुभारंभ कुलपति प्रोफ़ेसर अखिलेश कुमार पांडेय द्वारा किया गया । इस कार्यक्रम के आयोजक राष्ट्रीय सेवा योजना तथा प्राणिकी एवं जैव प्रौद्योगिकी अध्ययनशाला विक्रम विश्वविद्यालय थे। गाजर घास उन्मूलन एवं जागरूकता सप्ताह के अंतर्गत विश्वविद्यालय परिक्षेत्र के महाविद्यालयों एवं अध्ययनशालाओं द्वारा गाजर घास उन्मूलन हेतु विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया जाएगा।

 मनुष्य के साथ साथ  पशुओं एवं फसलों के लिए हानिकारक एवं खतरनाक मानी जाने वाली गाजर घास ग्रामीण इलाकों में तेजी से फैल रही है। भारत में यह पौधा गेहूं के साथ मेक्सिको, अमेरिका से 1955 में आया था। गाजर घास का वैज्ञानिक नाम पारथेनियम है जो एस्टीरेसी (कम्पोजिटी) कुल का पौधा है । वर्तमान समय में भारत में यह पौधा 35 मिलियन हेक्टेयर से अधिक भूमि पर फैल चुका है । गाजर घास के हानिकारक दुष्प्रभाव के कारण इसका नियंत्रण आवश्यक है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा प्रतिवर्ष 16 से 22 अगस्त को गाजर घास जागरूकता सप्ताह मनाया जाता है। गाजर घास जागरूकता एवं उन्मूलन के उद्देश्य से राष्ट्रीय सेवा योजना तथा प्राणिकी एवं जैव प्रौद्योगिकी अध्ययनशाला के संयुक्त प्रयास से सत्रहवाँ गाजर घास जागरूकता सप्ताह 16 से 22 अगस्त 2022 का शुभारंभ प्रोफ़ेसर अखिलेश कुमार पांडेय, कुलपति, विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन तथा डॉ प्रशांत पौराणिक, कुलसचिव, विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन द्वारा पुरातत्व संग्रहालय, विक्रम कीर्ति मंदिर में किया गया।

उक्त कार्यक्रम में कुलपति  अखिलेश कुमार पांडेय ने बताया कि गाजर घास शाकीय पौधा है, प्रत्येक पौधा लगभग 10,000 से 25000 सूक्ष्म  बीज पैदा करता है। यह पौधा 1 वर्ष में दो तीन पीढ़ी का चक्र पूरा करता है । गाजर घास में  “सेस्क्यूटर्पीन लेक्टोन” नामक विषाक्त पदार्थ पाया जाता है, जो खाद्यान्न फसलों की पैदावार को लगभग 40% तक कम कर देता है। पशुओं के द्वारा गाजर घास खाने से उनमें कई रोग उत्पन्न हो जाते हैं। दुधारू पशुओं में दूध उत्पादन की कमी तथा दूध में कड़वाहट आ जाती है। मनुष्य में भी कई प्रकार की बीमारियां गाजर घास के संपर्क में आने से हो जाती है। अतः सभी विद्यार्थियों, शिक्षकों एवं कर्मचारियों को गाजर घास के हानिकारक प्रभाव इसके उन्मूलन हेतु जागरूकता अभियान के साथ साथ विश्वविद्यालय परिसर से इसके नियंत्रण हेतु सार्थक प्रयास किए जाने चाहिए। प्रो पांडेय ने बताया कि गाजर घास नम भूमि में फूल आने के पूर्व उखाड़ कर जला दिया जाना चाहिए अथवा इसका उपयोग कंपोस्ट खाद निर्मित करने अथवा गोबर के साथ मिलाकर बायोगैस उत्पादन में किया जा सकता है। प्रो पांडेय ने गाजर घास उन्मूलन हेतु जैव नियंत्रण विधि के लिए मैक्सिकन बीटल (जाईगोग्रामा बाईकोलोराटा),  रोगजनक जीवाणु एवं फ़ंजाई का उपयोग किया जा सकता है।

गाजर घास जागरूकता शुभारंभ कार्यक्रम में डॉ प्रशांत पुराणिक कुलसचिव , विक्रम विश्वविद्यालय ने बताया कि गाजर घास के अनेक दुष्परिणाम है इसके लगातार संपर्क में आने पर मनुष्य में  डर्मेटाइटिस, एग्जिमा, एलर्जी, बुखार, दमा आदि बीमारियां हो जाती है । इसके नियंत्रण हेतु विद्यार्थीगण, राष्ट्रीय सेवा योजना तथा विभिन्न अध्ययनशालाओं द्वारा 16 से 22 अगस्त तक लगातार कार्यक्रमों का आयोजन करते हुए जागरूकता अभियान चलाया जाएगा।

प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा, कुलानुशासक, विक्रम विश्वविद्यालय ने बताया कि गाजर घास हानिकारक खरपतवार है जो फसलों की वृद्धि को प्रभावित करता है। इसके नियंत्रण हेतु जागरूकता अभियान चलाया जाना आवश्यक है। इनके नियंत्रण हेतु परस्पर प्रतिस्पर्धा उत्पन्न करने वाली वनस्पतियां जैसे चकोड़ा, टिटिप्स, जंगली चौलाई आदि से गाजर घास की वृद्धि को रोककर आसानी से विस्थापित किया जा सकता है। गाजर घास उन्मूलन एवं जागरूकता सप्ताह के शुभारंभ कार्यक्रम के आयोजक डॉक्टर रमण सोलंकी, डॉ अरविंद शुक्ल,  डॉ शिवि भसीन, डॉ अजय शर्मा थे। इस अवसर पर प्राणिकी एवं जैव प्रौद्योगिकी अध्ययनशाला के विभागाध्यक्ष डॉ सलिल सिंह, डॉ संतोष ठाकुर, डॉ स्मिता सोलंकी,  डॉ गरिमा शर्मा, इंजि. अंजली उपाध्याय, डॉ मुकेश वाणी, विद्यार्थी कु चारवी मदान, दीक्षा पंड्या, हर्षिता पांडेय, गोविंद कुमार, सार्थक जोशी, राष्ट्रीय सेवा योजना के विद्यार्थीगण अधिकारी एवं कर्मचारीगण उपस्थित थे।

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