विक्रम विश्वविद्यालय एवं वन विभाग उज्जैन के संयुक्त प्रयास से मियावाकी तकनीक द्वारा शहरी वनरोपण की संकल्पना
पौधरोपण तथा शहरी वनीकरण के लिए वन विभाग और विक्रम विश्वविद्यालय द्वारा किया जाएगा एम. ओ. यू.
उज्जैन । कम समय में हरियाली एवं नगरीय वनीकरण हेतु जापानी मियावाकी तकनीक महत्वपूर्ण है। उज्जैन वन मण्डल द्वारा शहर के कई स्थानों में इस विधि द्वारा पौधरोपण किया गया है। विक्रम विश्वविद्यालय एवं वनमण्डल, उज्जैन के संयुक्त प्रयास से विश्वविद्यालय परिसर एवं शहर के अन्य स्थानों पर इस तकनीक का उपयोग करते हुए वनरोपण की संकल्पना को पूर्ण किया जाएगा। विश्वविद्यालय में अध्ययनरत विद्यार्थियों व शोधार्थियों के लिए यह तकनीक जैव विविधता, पौधरोपण, अपशिष्ट जैवोपचारण, समस्याग्रस्त मिट्टी एवं जलभराव के उपचार तथा प्रबन्धन के क्षेत्र में अध्ययन एवं अनुसंधान के लिए उपयोगी है। भविष्य में वन विभाग, उज्जैन एवं विक्रम विश्वविद्यालय द्वारा पौधरोपण तथा शहरी वनीकरण के लिए द्विपक्षीय सहमति (एम. ओ. यू) की जाएगी। जैव विविधता का मानव जीवन में महत्वपूर्ण स्थान है, जिसके बिना पृथ्वी पर मानव जीवन असंभव है। औद्योगिकीकरण, शहरीकरण, अनियंत्रित विकास, प्राकृतिक संसाधनों का मनुष्य द्वारा अति दोहन, पर्यावरण प्रदूषण व वैश्विक तापमान में वृद्धि तथा जलवायु परिवर्तन के कारण जैव विविधता के समक्ष अस्तित्व का संकट दिनों दिन बढ़ता जा रहा है। भारत सरकार एवं मध्यप्रदेश शासन वन विभाग, सामाजिक गैर सरकारी संगठनों तथा अन्य शासकीय विभागों द्वारा समय-समय पर पौधरोपण, वनीकरण कार्यक्रम चलाकर जैव विविधता को पुनः स्थापित करना या इसके घनत्व वृद्धि करने का प्रयास किया जा रहा है। वनीकरण के प्राचीन पद्धति द्वारा पौधों का विकास धीमी गति से होता है परिणाम स्वरूप पूर्णतः पारिस्थितिकी तंत्र विकसित होने में कई वर्ष लग जाते हैं। अतः कम समय में पौधों में तेजी से वृद्धि कराने हेतु वन मंडल उज्जैन द्वारा ग्राम भीतरी, भैरवगढ़ एवं मक्सी रोड औद्योगिक क्षेत्र में मियावाकी वृक्षारोपण तकनीक का उपयोग करते हुए मात्र दो वर्ष में ही पूरा वन पारिस्थितिकी तंत्र विकसित करने का सराहनीय कार्य किया गया। वन पारिस्थितिकी तंत्र में विकसित हो रहे पौधों तथा उसकी पारिस्थितिकी में उपस्थित जैविक एवं जैविक कारकों के वैज्ञानिक अध्ययन तथा तकनीकी सहयोग विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन द्वारा किया जाएगा। विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो अखिलेश कुमार पांडेय ने डॉक्टर किरण बिसेन, वन मंडल अधिकारी उज्जैन, श्री मनोज अग्रवाल, मुख्य वन संरक्षक; डॉ अरविंद शुक्ला एवं डॉ शिवि भसीन जैव प्रौद्योगिकी अध्ययनशाला के साथ वन विभाग द्वारा विकसित किए जा रहे नगरीय वनीकरण ग्रीन क्षेत्रों का भ्रमण किया एवं विश्वविद्यालय द्वारा आवश्यक सहयोग दिए जाने का आश्वासन दिया। प्रोफेसर पांडेय ने शहरी वनीकरण हेतु उज्जैन वन मंडल द्वारा प्रयोग की गई मियावाकी तकनीक की प्रशंसा करते हुए बताया कि इस तकनीक से विकसित किए जाने वाले पौधे सामान्य पौधों की तुलना में 10 गुना अधिक वृद्धि करते हैं। इस विधि में अधिकांश पौधे कम पानी की सिंचाई में भी पनप जाते हैं। जिन स्थानों में उक्त पौधों का रोपण किया जाता है, उसके आसपास की भूमि पर नमी का प्रतिशत अन्य क्षेत्रों से अधिक होता है। प्रो पांडेय ने वन मंडल अधिकारी उज्जैन डा़ किरण बिसेन को इस उपलब्धि पर बधाई देते हुए तकनीक में गाजर घास की जड़ों को भी मिट्टी के नीचे पौधारोपण के पूर्व डालने का सुझाव दिया तथा बताया कि गाजर घास की जड़ों में माइक्रोराएजा की संख्या अधिक होने के कारण पौधों को उचित मात्रा में नाइट्रोजन जैसे पोषक तत्व प्राप्त होंगे। प्रो पांडेय ने वन विभाग के अधिकारियों को आश्वासन देते हुए स्पष्ट किया कि विश्वविद्यालय में अध्ययनरत वनस्पति विज्ञान, कृषि विज्ञान तथा जैव प्रौद्योगिकी के विद्यार्थियों एवं शोध छात्रों को वन विभाग द्वारा विकसित किए जा रहे ग्रीन क्षेत्रों (शहरी वनीकरण) में प्रोजेक्ट आवंटित करते हुए अनुसंधान हेतु प्रेरित किया जाएगा।
श्री मनोज अग्रवाल मुख्य वन संरक्षक उजैन ने बताया कि नगरीय वनीकरण हेतु प्रयुक्त की जा रही मियांवाकी तकनीक में विक्रम विश्वविद्यालय एवं वन विभाग मिलकर कार्य करेंगे। यह तकनीक विद्यार्थियों को शोध कार्य में उपयोगी होगी। उज्जैन वन विभाग द्वारा अपशिष्ट निस्तारीकरण स्थल में भी इस तकनीक द्वारा पौधरोपण करते हुए भूमि उद्धार का प्रयास किया जा रहा है।
डॉ किरण बिसेन, वन मंडल अधिकारी उज्जैन ने बताया कि मियावाकी तकनीक जापान के वैज्ञानिक अकीरा मियावाकी द्वारा प्रारंभ की गई थी। इस तकनीक के द्वारा बहुत कम समय में जंगलों को घने जंगलों में परिवर्तित किया जा सकता है। इस विधि में देशी प्रजाति के पौधे एक दूसरे के समीप लगाए जाते हैं जो कम स्थान घेरने के साथ ही अन्य पौधों की वृद्धि में भी सहायक होते हैं। पौधों की सघनता के कारण यह पौधे सूर्य की रोशनी को धरती पर आने से रोकते हैं जिससे धरती पर खरपतवार नहीं उग पाते हैं इस विधि में झाड़ी, पेड़, छोटे पेड़ तथा कैनोपी आदि 4 समुदाय के लगभग 70 से अधिक प्रजाति के पौधों का रोपण 2020 में किया गया था जो मात्र 2 वर्ष में विकसित होकर एक वन पारिस्थितिकी तंत्र में परिवर्तित हो चुका है जिसमें कई प्रकार के पक्षी, कीट, मोलस्क, रेप्टाइल, मधुमक्खियां, तितलियां आदि अपना आवास बना चुके हैं। यह पारिस्थितिकी विद्यार्थियों के लिए जैव विविधता के अध्ययन हेतु उपयोगी सिद्ध होगी।
विक्रम विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ प्रशांत पुराणिक ने बताया कि मियावाकी पद्धति कम समय पौधों को विकसित करने हेतु एक महत्वपूर्ण विधि है। वन विभाग के सहयोग से विश्वविद्यालय परिसर में ग्रीन क्षेत्र विकसित करने के लिए इस विधि का उपयोग किया जाएगा, जिसका प्रायोगिक ज्ञान हमारे विद्यार्थियों को प्राप्त होगा प्राणिकी एवं जैव प्रौद्योगिकी अध्ययन शाला के शिक्षक डॉ अरविंद शुक्ला एवं डॉ शिवि भसीन ने बताया कि शहरी वन रोपण हेतु मियावाकी संकल्पना महत्वपूर्ण है। इस विधि में पौधे पास पास लगाने से उन पर मौसम का प्रभाव नहीं पड़ता है और गर्मियों के दिन में भी पौधे हरे रहते हैं। कम स्थानों में अधिक घनत्व वाले पौधे क्षेत्र में ऑक्सीजन बैंक की तरह काम करते हैं और इनके कारण क्षेत्र में बारिश भी अधिक होती है।
विक्रम विश्वविद्यालय के कुलानुशासक प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा ने बताया कि मियावाकी पद्धति के उपयोग से स्थानीय पारिस्थितिकी में सुधार आएगा तथा इसके द्वारा किसान की आर्थिक प्रगति भी होगी। यह तकनीक विश्वविद्यालय में अध्ययनरत विद्यार्थियों को अध्ययन एवं शोध के लिए उपयोगी होगी।
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