गुरुओं के कारण ही आया भगवान श्री राम और श्री कृष्ण के जीवन में परिवर्तन – उच्च शिक्षा मंत्री डॉ मोहन यादव
गुरु पूर्णिमा पर हुआ विक्रम विश्वविद्यालय में बृहद् राज्य स्तरीय महोत्सव का आयोजन
गुरु पूर्णिमा महोत्सव में गुरु शिष्य परम्परा और कृष्ण गमन पथ पर हुई परिचर्चा
कार्यक्रम का उद्घाटन करते हुए उच्च शिक्षा मंत्री डॉ. मोहन यादव ने कहा कि भारत की गुरुकुल पद्धति और पारंपरिक शिक्षा प्रणाली अत्यंत गौरवमयी रही है। परम सौभाग्य की बात है कि उज्जैन स्थित महर्षि सांदीपनि के आश्रम में स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने 64 कलाओं और 14 विद्याओं की शिक्षा ग्रहण की थी। गुरुओं के सान्निध्य में आकर शिष्य का जीवन किस प्रकार परिवर्तित होता है, यह देखने की आवश्यकता है। भगवान श्री राम और श्री कृष्ण के जीवन में परिवर्तन उनके गुरुओं के कारण ही आया। जनक का व्यक्तित्व अष्टावक्र जैसे गुरु के प्रभाव से ही निखरा। भगवान श्रीकृष्ण की शिक्षास्थली उज्जैन के ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व को दृष्टिगत रखते हुए यह महोत्सव उज्जैन में किया गया। एक श्रेष्ठ शिष्य के रूप में भगवान कृष्ण ने उज्जैन में विद्यार्जन करने के बाद द्वापर युग में अपनी एक विशिष्ट पहचान बनाई। महर्षि सांदीपनि के मार्गदर्शन में श्री कृष्ण के साथ बलराम और सुदामा ने शिक्षा अर्जित करते हुए भारत की उदात्त गुरु - शिष्य परंपरा का आदर्श प्रस्तुत किया। दूसरी ओर गुरु द्रोणाचार्य के आश्रम में केवल राजकुमारों को अध्ययन का अवसर मिलता था, ऐसी प्रणाली हमारे लिए आदर्श नहीं हो सकती। यह गौरव की बात है कि श्रीमद्भगवद्गीता को प्रस्तुत करने वाले श्रीकृष्ण ने अपनी शिक्षा उज्जैन में महर्षि सांदीपनि के माध्यम से अर्जित की थी। गुरु – शिष्य की महान परंपरा को नई पीढ़ी के मध्य पुनः स्थापित करने के लिए उच्च शिक्षा विभाग संकल्पबद्ध है। श्रीकृष्ण के जीवन से जुड़े महत्त्वपूर्ण स्थलों के विकास के साथ उनके यात्रा पथ के अनुसंधान के लिए कार्य किया जाएगा।
कार्यक्रम में विद्वत्जनों ने श्रीकृष्ण गमन पथ पर प्रकाश डाला। महर्षि सांदीपनि के वंशज ज्योतिर्विद पंडित आनंदशंकर व्यास ने कहा कि भगवान श्री महाकालेश्वर के आशीर्वाद से महर्षि सांदीपनि ने प्रथम विश्वविद्यालय प्रारंभ किया था। धर्मशास्त्र में उल्लेख मिलता है कि गुरु पूर्णिमा पर हमारी समृद्ध परम्परा के 48 महान गुरुओं का स्मरण किया जाना चाहिए। यह प्रसन्नता की बात है कि श्री कृष्ण के यात्रा पथ पर विक्रम विश्वविद्यालय द्वारा शोध किया जाएगा। महर्षि सांदीपनि की परंपरा देश के अनेक भागों में आज भी जीवित है। देश के विभिन्न भागों के पंचांगकर्ता आज भी उज्जैन की काल गणना और पंचांग की परंपरा से जुड़े हुए हैं।
वरिष्ठ इतिहासकार डॉक्टर भगवतीलाल राजपुरोहित ने कहा कि यात्राएँ कई प्रकार की होती हैं। श्री कृष्ण ने विद्याध्ययन के लिए मथुरा से उज्जैन की यात्रा की थी, जो सीधे मार्ग से हुई। इसी प्रकार उज्जैन से जुड़ी तीन अन्य यात्राएं भी उनके द्वारा की गईं। उनके यात्रा पथ पर आने वाले प्रमुख स्थलों का पुरातत्व एवं इतिहास की दृष्टि से अध्ययन किए जाने की आवश्यकता है। उनकी विभिन्न यात्राओं के पथ में मथुरा, करौली, रणथंबोर, गागरोन, आगर, उज्जैन, धोलका, डाकोर, लिमडी, अमझेरा, महेश्वर, खंडवा, द्वारका, आणंद, प्रभास आदि सहित अनेक स्थल रहे हैं।
विक्रम विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. अखिलेश कुमार पांडेय ने संबोधित करते हुए कहा कि पिछले दिनों वाराणसी में आयोजित राष्ट्रीय शिक्षा समागम के दौरान माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने आह्वान किया है कि भारत की ज्ञान विज्ञान परंपरा को हम साक्ष्य के आधार पर आगे बढ़ाएँ। विक्रम विश्वविद्यालय राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अनुरूप बहुविषयक शिक्षा के महत्त्वपूर्ण केंद्र के रूप में आगे बढ़ रहा है। यहां सभी अध्ययन क्षेत्रों में शिक्षा और अनुसंधान की नई दिशाएँ खुल गई हैं।
मंचासीन अतिथियों और विद्वानों को शॉल, श्रीफल एवं साहित्य अर्पित कर उनका सम्मान कुलसचिव डॉ प्रशांत पुराणिक, महाराजा विक्रमादित्य शोध पीठ के निदेशक श्रीराम तिवारी एवं कुलानुशासक प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा ने किया।
श्रीकृष्ण गमन पथ की संकल्पना पुरातत्ववेत्ता डॉक्टर रमण सोलंकी ने प्रस्तुत की। उन्होंने कहा कि पुरातत्व और इतिहास की दृष्टि से श्री कृष्ण के यात्रा पथ पर धरातलीय कार्य किया जाएगा। कुलानुशासक प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा ने ज्ञान साधना में उज्जयिनी की गुरु शिष्य परम्परा के असाधारण अवदान पर प्रकाश डाला।
स्वागत भाषण कुलसचिव डॉ प्रशांत पुराणिक ने दिया। प्रारंभ में कुलगान डॉ नेहा चौरे एवं संजय सेन ने प्रस्तुत किया। सरस्वती वंदना संजय सेन ने और मंगलाचरण तिलक सिंह ने किया। यह आयोजन विक्रम विश्वविद्यालय परिसर स्थित ऐतिहासिक विक्रम कीर्ति मंदिर में सम्पन्न हुआ।
महोत्सव का संचालन कुलानुशासक प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा ने किया। आभार प्रदर्शन महाराजा विक्रमादित्य शोध पीठ के निदेशक श्रीराम तिवारी ने किया।
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