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पर्यावरण संरक्षण हमारा दायित्व

 प्राणिकी एवं जैव-प्रौद्योगिकी अध्ययनशाला में पर्यावरण संरक्षण का संकल्प किया गया

उज्जैन विश्व पर्यावरण दिवस 5 जून के अवसर पर प्राणिकी एवं जैव-प्रौद्योगिकी अध्ययनशाला द्वारा पर्यावरण संरक्षण का संकल्प प्रो अखिलेश कुमार पाण्डेय कुलपति, विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन की अध्यक्षता में किया गया। इस अवसर पर विद्यार्थियों, शिक्षकों, तथा शोधकर्ताओं ने पर्यावरण संरक्षण का संकल्प लिया। पर्यावरण दिवस के अवसर पर विद्यार्थियों, शिक्षकों तथा कर्मचारियों द्वारा परिसर की साफ-सफाई एवं पौधों को जल द्वारा सिंचाई कार्य तथा पर्यावरण संरक्षण के महत्त्व पर प्रकाश डाला गया।
हमारे चारों ओर स्थित प्राकृतिक परिवेश जैसे वायु, जल, मृदा, वनस्पति, जीव-जंतु आदि सभी पर्यावरण के घटक हैं तथा इनसे मिलकर पर्यावरण की रचना होती है। पर्यावरण को ही वृहत्तर अवधारणा के रूप पारिस्थिकी की संज्ञा दी जाती है। औद्योगिक क्रांति के परिणामस्वरूप संम्पूर्ण विश्व में विकास की ऐसी दौड़ शुरू हुई कि पर्यावरण को व्यापक पैमानों पर नष्ट किया जाने लगा। बड़ी-बड़ी नदियों, घाटी परियोजनाएं, जंगल का कटाव, जीवाश्म ईंधन का अधिक दोहन, भूगर्भीय जल का अधिक उपयोग, ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन और इसी प्रकार के मानवीय स्वार्थ पूर्ति हेतु अन्य परियोजनाएं का अधिक विकास किया जा रहा है जो पर्यावरण के लिए घातक है। भारत जैसे विकासशील देश में गरीबी,जनसंख्या और बेरोजगारी भी पर्यावरण प्रदूषण का एक कारण है। ऐसे अनेक कारण हैं जिनसे पर्यावरण एवं जैव-विविधता नष्ट होने के कगार पर है। पर्यावरण असंतुलन के कारण अनेक समस्याएँ विकराल रूप धारण कर रही हैं, जैसे सुनामी, ग्लोबल वार्मिंग, ओजोन परत का शीर्ण होना, भूकंप, बाढ़, तापमान में वृद्धि, मौसम परिवर्तन, अनेक जैवविविधता का लुप्त होना तथा नई-नई बीमारियों आम जन- जीवन को प्रभावित कर रहे है। केवल एक ही धरती है, हमारा सामूहिक भविष्य उसी पर निर्भर करता है, इसलिए पर्यावरण संरक्षण को लेकर वैश्विक चेतना जागृति किया जाना आवश्यक है । अतः पर्यावरण दिवस 5 जून 2022 को प्राणिकी एवं जैवप्रौद्योगिकी अध्ययनशाला, विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन में कुलपति प्रो अखिलेश कुमार पाण्डेय की अध्यक्षता में शिक्षकों, विद्यार्थियों एवं कर्मचारियों के द्वारा पर्यावरण संरक्षण हेतु संकल्प किया गया। इस अवसर पर सभी के द्वारा पौधों की सिंचाई तथा अध्ययनशाला परिसर की साफ-सफाई की गयी। पर्यावरण संरक्षण संकल्प कार्यक्रम में कुलपति प्रोफेसर अखिलेश कुमार पाण्डेय ने अपने उद्बोधन में बताया गया की भारत में पर्यावरण संरक्षण का इतिहास पुराना है, हड़प्पा संस्कृति पर्यावरण से समृद्धि थी, तो वैदिक संस्कृति पर्यावरण संरक्षण का परिचय बनी रही। भारतीय मनीषियों ने समूची प्रकृति ही क्या, सभी प्राकृतिक शक्तियों को देवता स्वरूप माना। आपने बताया की पर्यावरण है तो हमारा जीवन है पर्यावरण सुरक्षा और उसमे हमेशा असंतुलन बना रहे इसके लिए हममे जागरूक एवं सचेत रहना होगा।

विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ प्रशांत पुराणिक ने बताया कि पर्यावरण की सुरक्षा से ही भविष्य में जीवन की सुरक्षा हो सकती है। इसके लिए स्थानीय स्तर पर आमजन में पर्यावरण सुरक्षा की जागरूप विकसित करने हेतु कार्यक्रमों का आयोजन किया जाना आवश्यक है।
विक्रम विश्वविद्यालय के कुलानुशासक प्रो शैलेन्द्र कुमार शर्मा, ने कहा कि पर्यावरण संरक्षण हेतु वर्त्तमान में किये गए छोटे-छोटे प्रयासों से ही भविष्य में भावी पीढ़ी पर्यावरण से लाभान्वित हो पायेगी इसके लिए वैश्विक स्टार पर आमजन की सहभागिता आवश्यक है। प्राणिकी एवं जैव प्रौद्योगिकी अध्ययनशाला के अध्यक्ष डॉ सलिल सिंह ने बताया कि पर्यावरण दिवस मानाने की सार्थकता तभी है जब पर्यावरण संरक्षण की भावना हम सभी के दिलों में समाहित हो जाये। हमे विद्यार्थियों एवं युवा पीढ़ी को भी पर्यावरण संरक्षण के महत्त्व से परिचित करवाना होगा।
कार्यक्रम के आयोजन सचिव डॉ अरविन्द शुक्ल ने बताया कि विश्व में गत वर्षो से हो रहे पर्यावरणीय परिवर्तनों जैसे बढ़ते पर्यावरणीय प्रदूषण, तापमान वृद्धि, हरित गैसों का ह्रास होना तथा वातावरणीय मौसम परिवर्तन आदि जीवन के लिए गंभीर चुनौतियां हैं। इनके निवारण हेतु भारत द्वारा कई सार्थक प्रयास किये जा रहे है। भारत सरकार ने पर्यावरण संरक्षण हेतु कई महत्वपूर्ण अधिनियम 1974 तथा 1977 वायु प्रदूषण अधिनियम 1972, वन जीव संरक्षण अधिनियम 1972, वन संरक्षण अधिनियम 1980 तथा पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 प्रमुख हैं।

कार्यक्रम की दूसरी आयोजक सचिव डॉ शिवि भसीन ने पर्यावरण संरक्षण हेतु विक्रम विश्वविद्यालय द्वारा किये जा रहे प्रयासों पर प्रकाश डालते हुए बताया की प्राणिकी एवं जैवप्रौद्योगिकी अध्ययनशाला द्वारा पिछले 30 वर्षों से क्षिप्रा, चम्बल, नर्मदा, नदियों, गांधीसागर, इन्द्रसागर, सरदार सरोवर तथा ओंकारेश्वर एवं महेश्वर डैम आदि सहित अनेक जल पारिस्थितिकी संरचनाओं का विस्तृत जल गुणवत्ता तथा जैवविविधता का अध्ययन किया जा रहा है एवं इस क्षेत्र में कार्यों पर पीएच डी की गयी एवं परियोजनाओं को पूर्ण किया गया है। आपने बताया कि मेरे द्वारा स्वयं क्षिप्रा नदी में "मॉस-बाथिंग" सूक्ष्मजीव जैवविविधता तथा नदी के स्वयं स्वच्छता क्षमता का अध्ययन करते हुए एक माडल विकसित किया गया है एवं जल-जनित बीमारियों का अध्ययन तथा कई शोध पत्र प्रकाशित किये गए हैं। विश्वविद्यालय द्वारा जल संरक्षण, जैव-विविधता संरक्षण, पौधारोपण, साफ-सफाई, गाजर घास उन्मूलन तथा जान जागृत अभियान द्वारा पर्यावरण संरक्षण हेतु सार्थक प्रयास किये जा रहे हैं।
इस कार्यक्रम में विभाग के शिक्षक डॉ संतोष कुमार ठाकुर ने पर्यावरण संरक्षण के लिए एन जी ओ तथा मीडिया के प्रयासों का उल्लेख करते हुए कहा कि जन-जागृति अभियान के लिए यह दोनों अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। कार्यक्रम का सञ्चालन विभाग की शिक्षिका डॉ गरिमा शर्मा ने पर्यावरण संरक्षण हेतु जैवप्रौद्योगिकी की भूमिका पर प्रकाश डाला तथा अपशिष्ट ठोस एवं जल पदार्थों को उपचलित करने की विधियों से विद्यार्थियों को परिचित कराया। इस अवसर विभाग के विद्यार्थी तथा कर्मचारीगण उपस्थित थे।

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