Skip to main content

अक्वाकल्चर के विद्यार्थियों द्वारा तालाब प्रबंधन एवं कृत्रिम फव्वारे का निर्माण

उज्जैन । प्राणिकी एवं जैव प्रौद्योगिकी अध्ययनशाला में अक्वाकल्चर के विद्यार्थियों द्वारा मत्स्य पालन हेतु तालाब प्रबंधन का कार्य करते हुए जल में घुलित ऑक्सीजन की मात्रा को बढ़ाने के लिए स्थानीय संसाधनों का उपयोग करते हुए कृत्रिम फव्वारे का निर्माण किया गया। भविष्य में इन छात्रों के द्वारा शहर में स्थित छोटे - बड़े तालाबों का वैज्ञानिक प्रबंधन करने का प्रयास किया जायेगा।

गत दो वर्षों में विक्रम विश्वविद्यालय ने कई नये उपयोगी एवं रोजगारपरक पाठ्यक्रम खोले हैं, जो विद्यार्थियों को रोजगार याचक नहीं, अपितु रोजगार जनक बनाएंगे। गत समय में विभिन्न विभागों के छात्रों ने अपनी रचनात्मकता का परिणाम देते हुए कई प्रोडक्ट्स का निर्माण किया है। इसी शृंखला में प्राणिकी एवं जैव प्रौद्योगिकी अध्ययनशाला के अक्वाकल्चर के सर्टिफिकेट एवं डिप्लोमा में अध्ययनरत छात्रों ने तालाब प्रबंधन की कला ग्रहण की एवं साथ ही तालाब को मत्स्य पालन हेतु तैयार करने के लिए उसके जल का परीक्षण करते हुए उसमे घुलित ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ाने के लिए स्थानीय संसाधनों का उपयोग करते हुए कृत्रिम फव्वारे का निर्माण किया।

विक्रम विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर अखिलेश कुमार पाण्डेय ने छात्रों को बधाई देते हुए कहा कि छात्रों को कौशल विकास का ज्ञान देना, उनका स्किल डेवलपमेंट करना, उनकी सृजनात्मक शक्तियों को बढ़ाना आत्मनिर्भर भारत की संकल्पना के महायज्ञ में आहुति स्वरूप ऐसे रोजगार जनक छात्रों को उत्पन्न करते रहना सदैव विक्रम विश्वविद्यालय ने अपना उत्तरदायित्व माना है। अक़वाकल्चर पाठ्यक्रम के संयोजक एवं सह संयोजक डॉ, अरविन्द शुक्ल एवं डॉ शिवि भसीन ने बताया कि किसी तालाब में मत्स्य पालन के लिए तालाब के फसियोकेमिकल, बायोलॉजिकल एवं माइक्रोबायोलोजिकल परमैटेर के सूक्ष्म निरीक्षण की आवश्यकता होती है, साथ ही समय- समय पर तालाब के पानी की जांच भी आवश्यक है। साथ ही उन्होंने यह भी बताया की छात्रों को पानी की घुलित ऑक्सीजन, बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड, हार्डनेस, केमिकल ऑक्सीजन डिमांड, क्लोराइड, कैल्शियम, अल्कालिनिटी, फाईटोप्लैंक्टोन, जोप्लैंक्टोन, टोटल एवं फीकल कॉलिफोर्म जैसे महत्वपूर्ण पैरामीटर्स को कैलकुलेट करना एवं उन्हें नियंत्रित करना सिखाया गया है ताकि यह छात्र भविष्य में शहर के अलग-अलग तालाबों को विकसित कर सके।

प्राणिकी एवं जैव प्रौद्योगिकी अध्ययनशाला के विभागाध्यक्ष डॉ सलिल सिंह ने बताया कि छात्रों ने ख़राब पड़े कूलर के मोटर का उपयोग करते हुए उसमे पाइप अथवा अन्य सामग्री जोड़ते हुए उससे एक 3-4 फ़ीट ऊचा कृत्रिम फव्वारा तैयार किया जिससे मछलियों को जीवन यापन हेतु घुलित ऑक्सीजन मिलती रहे। भविष्य में विभाग द्वारा जल परीक्षण एवं तालाब प्रबंधन की कंसल्टेंसी लेने का प्रयास किया जायेगा।

विक्रम विश्वविद्यालय के कुलानुशासक प्रोफेसर शैलेन्द्र कुमार शर्मा ने बताया कि छात्रों की ऐसी उपलब्धि अन्य छात्रों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनेगी एवं यह छात्र अब घरों के बाहर स्थित तालाब का निर्माण, उसका मेंटेंनेंस और जल का परीक्षण करने के लिए तैयार है, साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि इन छात्रों द्वारा मुख्यतः तालाबों में ऐसी मछली डाली जाएँगी जो मलेरिया को जन्म देने वाले मच्छरों को खाती है जिससे मलेरिया भी नियंत्रित किया जा सकता है। विक्रम विश्वविद्यालय के कुलसचिव प्रोफेसर प्रशांत पुराणिक ने छात्रों की इस सफलता पर हर्ष व्यक्त करते हुए उन्हें बधाई दी एवं उनके उज्ज्वल भविष्य की कामना की। इस कार्य में अक़वाकल्चर के छात्र पूर्णिमा त्रिपाठी, हर्षवर्धन कदम, रौशनी डामोर, समृद्धि राय, कुमकुम उपाध्याय, एवं आलिफिया नादिर शामिल थे। विभाग के शिक्षकगण डॉ संतोष कुमार ठाकुर, डॉ गरिमा शर्मा एवं डॉ स्मिता सोलंकी ने छात्रों की इस उपलब्धि पर उन्हें बधाई दी।

Comments

मध्यप्रदेश समाचार

देश समाचार

Popular posts from this blog

आधे अधूरे - मोहन राकेश : पाठ और समीक्षाएँ | मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे : मध्यवर्गीय जीवन के बीच स्त्री पुरुष सम्बन्धों का रूपायन

  आधे अधूरे - मोहन राकेश : पीडीएफ और समीक्षाएँ |  Adhe Adhure - Mohan Rakesh : pdf & Reviews मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा हिन्दी के बहुमुखी प्रतिभा संपन्न नाट्य लेखक और कथाकार मोहन राकेश का जन्म  8 जनवरी 1925 को अमृतसर, पंजाब में  हुआ। उन्होंने  पंजाब विश्वविद्यालय से हिन्दी और अंग्रेज़ी में एम ए उपाधि अर्जित की थी। उनकी नाट्य त्रयी -  आषाढ़ का एक दिन, लहरों के राजहंस और आधे-अधूरे भारतीय नाट्य साहित्य की उपलब्धि के रूप में मान्य हैं।   उनके उपन्यास और  कहानियों में एक निरंतर विकास मिलता है, जिससे वे आधुनिक मनुष्य की नियति के निकट से निकटतर आते गए हैं।  उनकी खूबी यह थी कि वे कथा-शिल्प के महारथी थे और उनकी भाषा में गज़ब का सधाव ही नहीं, एक शास्त्रीय अनुशासन भी है। कहानी से लेकर उपन्यास तक उनकी कथा-भूमि शहरी मध्य वर्ग है। कुछ कहानियों में भारत-विभाजन की पीड़ा बहुत सशक्त रूप में अभिव्यक्त हुई है।  मोहन राकेश की कहानियां नई कहानी को एक अपूर्व देन के रूप में स्वीकार की जाती हैं। उनकी कहानियों में आधुनिक जीवन का कोई-न-कोई विशिष्

तृतीय पुण्य स्मरण... सादर प्रणाम ।

https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=1003309866744766&id=395226780886414 Bekhabaron Ki Khabar - बेख़बरों की खबर Bekhabaron Ki Khabar - बेख़बरों की खबर Bkk News Bekhabaron Ki Khabar, magazine in Hindi by Radheshyam Chourasiya / Bekhabaron Ki Khabar: Read on mobile & tablets -  http://www.readwhere.com/publication/6480/Bekhabaron-ki-khabar

खाटू नरेश श्री श्याम बाबा की पूरी कहानी | Khatu Shyam ji | Jai Shree Shyam | Veer Barbarik Katha |

संक्षेप में श्री मोरवीनंदन श्री श्याम देव कथा ( स्कंद्पुराणोक्त - श्री वेद व्यास जी द्वारा विरचित) !! !! जय जय मोरवीनंदन, जय श्री श्याम !! !! !! खाटू वाले बाबा, जय श्री श्याम !! 'श्री मोरवीनंदन खाटू श्याम चरित्र'' एवं हम सभी श्याम प्रेमियों ' का कर्तव्य है कि श्री श्याम प्रभु खाटूवाले की सुकीर्ति एवं यश का गायन भावों के माध्यम से सभी श्री श्याम प्रेमियों के लिए करते रहे, एवं श्री मोरवीनंदन बाबा श्याम की वह शास्त्र सम्मत दिव्यकथा एवं चरित्र सभी श्री श्याम प्रेमियों तक पहुंचे, जिसे स्वयं श्री वेद व्यास जी ने स्कन्द पुराण के "माहेश्वर खंड के अंतर्गत द्वितीय उपखंड 'कौमारिक खंड'" में सुविस्तार पूर्वक बहुत ही आलौकिक ढंग से वर्णन किया है... वैसे तो, आज के इस युग में श्री मोरवीनन्दन श्यामधणी श्री खाटूवाले श्याम बाबा का नाम कौन नहीं जानता होगा... आज केवल भारत में ही नहीं अपितु समूचे विश्व के भारतीय परिवार ने श्री श्याम जी के चमत्कारों को अपने जीवन में प्रत्यक्ष रूप से देख लिया हैं.... आज पुरे भारत के सभी शहरों एवं गावों में श्री श्याम जी से सम्बंधित संस्थाओं