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प्राचीन ज्ञान परंपरा को वैज्ञानिक कसौटी के साथ जोड़ने की आवश्यकता

विक्रम विश्वविद्यालय में हुआ अनुसंधान की प्रणालियाँ और उनकी नई संभावनाओं पर केंद्रित राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन

उज्जैन । विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन की हिंदी अध्ययनशाला एवं गांधी अध्ययन केंद्र की ओर से अनुसंधान की प्रणालियाँ और उनकी नई संभावनाओं पर केंद्रित राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी के मुख्य अतिथि अटलबिहारी वाजपेयी हिंदी विश्वविद्यालय, भोपाल के कुलपति प्रो खेमसिंह डहेरिया थे। आयोजन की अध्यक्षता कुलपति प्रोफ़ेसर अखिलेश कुमार पांडेय ने की। विशिष्ट अतिथि कुलसचिव डॉ प्रशांत पुराणिक, कुलानुशासक प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा, डॉ जगदीश चंद्र शर्मा आदि ने विषय के विभिन्न पक्षों पर प्रकाश डाला।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो अखिलेश कुमार पांडेय ने कहा कि वर्तमान समाज और परिवेश की समस्याओं के अध्ययन के साथ उनका समाधान अनुसंधान का लक्ष्य होना चाहिए। अनुसंधान कार्य को महत्त्वपूर्ण बनाने के लिए शोधार्थियों को बंद कमरों से बाहर आना होगा। आज भी ग्रामीण क्षेत्र से जुड़ी अनेक समस्याएं हैं, जिनसे मुक्ति के लिए साहित्यकार और शोधकर्ता समाज का मार्गदर्शन कर सकते हैं। हमारी प्राचीन ज्ञान परंपरा में अनेक मूल्यवान तत्त्व हैं, जिन्हें वैज्ञानिक कसौटी के साथ जोड़ने की आवश्यकता है। प्रकृति और पर्यावरण के साथ गहरा रिश्ता बनाकर ही श्रेष्ठ साहित्य का सृजन संभव है। उन्होंने विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर विद्यार्थियों को अपने अध्ययन और अनुसंधान के साथ पेड़ - पौधे लगाने और उनका संरक्षण करते हुए पर्यावरण रक्षक बनने का संदेश दिया।

अटलबिहारी वाजपेयी हिंदी विश्वविद्यालय, भोपाल के कुलपति प्रो खेमसिंह डहेरिया ने अपने उद्बोधन में कहा कि एक शोधार्थी को शोध प्रविधि का सम्यक् ज्ञान होना चाहिए। अपने शोध कार्य के दौरान प्रत्येक व्यक्ति को शोध पत्र लिखना आना चाहिए। सभी शोधार्थी इस दिशा में सजग हों। राष्ट्रीय शिक्षा नीति के आगमन के साथ मातृभाषाओं में नए शोध की प्रस्तुति और अनुवाद की महिमा तेजी से बढ़ती जा रही है। कुलसचिव डॉ प्रशांत पुराणिक ने कहा कि राजा भोज द्वारा रचित ग्रंथ समरांगण सूत्रधार अनेक विषयों में शोध के द्वार खुलता है। इसमें विविध क्षेत्रों के स्थापत्य से जुड़े शिल्प और अनेक शैलियों का उल्लेख आया है। इसका प्रभाव साहित्य एवं अन्य कला रूपों पर पड़ा।

हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि शोध ज्ञान की अविराम यात्रा को आधार देता है। अनुसंधान भावी सभ्यता के निर्माण के लिए आवश्यक है। इसे एक गहरे दायित्व बोध के साथ लिया जाना चाहिए। साहित्य और भाषा के क्षेत्र में शोध की समाजशास्त्रीय और वैज्ञानिक प्रणालियों के प्रयोग से नवीन तथ्य उद्घाटित होते हैं। हमारे आसपास की दुनिया कैसे काम कर रही है, इसे गहराई से जानने के लिए वैज्ञानिक दृष्टि से शोध किए जाते हैं। अनुसंधान की सामाजिक प्रासंगिकता का मापन जरूरी है, तभी उसमें सुधार किया जा सकता है। डॉ जगदीश चंद्र शर्मा ने साहित्यिक कृतियों के संवेदना, भाषा और शिल्प पक्ष पर अनुसंधान की नवीन संभावनाओं पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि पिछले कुछ दशकों में साहित्य की विषय वस्तु और शैली में व्यापक परिवर्तन आया है, जिसे जानने के लिए शोधकर्ता सजग हों।

कार्यक्रम में डॉ भीमराव अंबेडकर केंद्रीय विश्वविद्यालय, लखनऊ के शिक्षा संकाय के अध्यक्ष डॉ हरिशंकर सिंह, सीएसपी डॉ ओम प्रकाश मिश्रा, डॉ प्रतिष्ठा शर्मा, डॉ सुशील शर्मा, डॉ अजय शर्मा आदि सहित विभिन्न राज्यों के शोधार्थी एवं विद्यार्थी उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन डॉ जगदीश चंद्र शर्मा ने किया। आभार प्रदर्शन डॉ प्रतिष्ठा शर्मा ने किया।

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