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भारत का संवत् विक्रम संवत् हो ऐसी गूंज उठी आवाज अंतरराष्ट्रीय स्तर पर

उज्जैन विक्रमादित्य शोध पीठ द्वारा इतिहास संकलन योजना, विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन और मैपकास्ट, भोपाल के सहयोग से आयोजित तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय शोध संगोष्ठी में विक्रमादित्य की ऐतिहासिकता, पुरा सामग्री, लोक साक्ष्य और वैश्विक प्रभाव से जुड़े विविध पक्षों पर गहन मंथन हुआ। संगोष्ठी में द्वितीय दिवस पर हुए तीन सत्रों में सम्मिलित विद्वानों द्वारा अनेक शोध पत्रों का वाचन एवं व्याख्यान दिए गए।

विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कुलानुशासक डॉ. शैलेन्द्र कुमार शर्मा ने उल्लेखित किया कि विक्रमादित्य एक ऐतिहासिक चरित्र है, जो शास्त्रों से लेकर लोक तक प्रसिद्ध है। वे राम-कृष्ण के पश्चात सबसे ज्यादा लोक जीवन में प्रसिद्ध हैं। आपने बताया कि सोमदेव के ग्रंथों में दो भिन्न भिन्न विक्रमादित्य की जानकारी उल्लेखित है। विक्रमादित्य के संबंध में विभिन्न लोक अंचलों में महत्वपूर्ण लोक कथा, गाथा और किंवदंतियों प्रचलित हैं, जिनके माध्यम से अनेक ऐतिहासिक तथ्य उद्घाटित होते हैं। लोक अनुश्रुतियों के अनुसार विक्रमादित्य अद्वितीय हैं, जिनके सिंहासन पर कोई दूसरा नहीं बैठ पाया। उनके जाने के बाद वह सिंहासन कांतिहीन हो गया था। अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी के विशेष सत्र में नार्वे से जुड़े डॉ. सुरेशचंद्र शुक्ल शरद आलोक एवं नॉटिंघम, ब्रिटेन से जुड़ीं डॉ. जय वर्मा ने ऊँचे स्वरों में मांग की कि विक्रम संवत को राष्ट्रीय संवत् बनाना चाहिये। नेपाल का राष्ट्रीय संवत् विक्रम संवत् है। नॉर्वे जैसे राष्ट्र में भी अपने तीज त्यौहार विक्रम संवत् से मनाते हैं, जबकि भारत भूमि के चक्रवर्ती सम्राट संवत् प्रर्वतक विक्रमादित्य इसके जनक हैं। ठा. नरेंद्र सिंह पँवार ने अपने शोध पत्र में सम्राट विक्रमादित्य की वंश परम्परा पर चर्चा हो, ऐसी इच्छा जाहिर की। आपने पुराणों के माध्यम से विशेषकर भविष्यपुराण का उल्लेख करते हुए विक्रमादित्य की वंशावली की चर्चा की। साथ ही राजस्थान, हरियाणा तथा गुजरात से प्राप्त ग्रंथों के परिप्रेक्ष्य में विक्रमादित्य की वंशावली प्रस्तुत की। शोधपत्र का वाचन करते हुये कहा कि इनके वंश में कालान्तर में परमार वंश से जुड़ाव है। आपने राजस्थान के मंदसौर में भी विक्रमादित्य के अस्तित्व की चर्चा की और साथ ही अरब में भी विक्रमादित्य के विजय का उल्लेख किया। आपने ब्रिटेन से प्राप्त दुर्लभ साक्ष्यों में विक्रमादित्य के संवत् का भी उल्लेख किया।

डॉ. ज्योति दीपिका, नई दिल्ली ने मध्यकालीन साहित्य में विक्रमादित्य की प्रसिद्धि को भी उल्लेखित किया। साथ ही तमिल साहित्य, चोलपर्व पट्यम, नवखण्डम तथा इस्लामिक साहित्य में अलबरूनी, अबुल फजल के ग्रंथों में विक्रमादित्य उनके युग एवं तिथि उल्लेखित है। आपने जैन ग्रंथों और कालकाचार्य ग्रंथों में विक्रमादित्य की कृति का निष्पादन किया है। डॉ. पूरन सहगल, मनासा ने अपने शोध पत्र में जानकारी से अवगत कराया कि लोक की प्रामाणिकता तो सर्वमान्य है। वह सर्वत्र व्याप्त सर्वशक्तिमान निर्गुण- सगुण है। लोक साहित्य उसकी व्यापकता का गुणनायक है और भाषा उसकी प्रवक्ता है। घटना से कथा बनती है और कथा गेय होकर गाथा का रूप ग्रहण कर लेती है। कथा में महाकाव्य के बीज निहित रहते हैं। डॉ. नारायण व्यास पुराविद, भोपाल ने अपने शोधपत्र विक्रमादित्यकालीन शैलचित्रों को पावर पॉइंट प्रेजेंटेशन के माध्यम से विद्वानों एवं शोधार्थियों को पुरातात्त्विक जानकारी से परिचत करवाया। साथ ही प्राचीन काल में किस प्रकार के अस्त्र-शस्त्र तथा सैनिकों की वेश-भूषा होती थी, इस पर प्रकाश डाला। कार्यक्रम में देश दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों के विद्वान, इतिहासकार और संस्कृति कर्मी भाग ले रहे हैं।

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