Skip to main content

पर्यावरण संरक्षण के लिए लिए दृढ़ संकल्पित है विक्रम विश्वविद्यालय - कुलपति प्रो पांडेय

विक्रम विश्वविद्यालय में हो रहे हैं पर्यावरण संरक्षण के विशेष नवाचार

उज्जैन । विश्व में बढ़ते हुए भौतिक विकास तथा चकाचौंध एवं आधुनिकता की दौड़ में मनुष्य ने प्रकृति को एक सीमा से अधिक नुकसान पहुंचाया है। पेड़ काटकर जंगल में सड़क, मकान तथा अत्याधुनिक प्राकृतिक संसाधनों के दोहन के गंभीर परिणाम आज ग्लोबल वार्मिंग एवं अन्य प्राकृतिक असंतुलन के रूप में दिखाई दे रहे हैं। इन्हीं समस्याओं को दृष्टिगत रखते हुए विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन द्वारा पर्यावरण संरक्षण और संवर्धन के लिए अनेक उपाय किए जा रहे हैं।
पर्यावरण दिवस, 5 जून के परिप्रेक्ष्य में पर्यावरण संतुलन बनाए रखने में शैक्षिक परिसर की भूमिका पर चर्चा करते हुए विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कुलपति प्रो अखिलेश कुमार पाण्डेय ने बताया कि जीवन के लिए पर्यावरण संरक्षण आवश्यक है। वनों से ही हमारी सांस्कृतिक विरासत का संवर्धन हुआ है।

विक्रम विश्वविद्यालय पर्यावरण संरक्षण की दिशा में सदैव प्रयत्नशील है। पर्यावरण संरक्षण का सन्देश हमारी भारतीय परम्पराएँ सदैव देती रही हैं। हिन्दू धर्म में प्रकृति पूजन को प्रकृति संरक्षण के रूप पर मान्यता है। भारत में पेड़, पौधों, नदी, पर्वत, गृह, नक्षत्र, अग्नि, वायु सहित प्रकृति के अन्य विभिन्न रूपों के साथ मानवीय रिश्ते जोड़े गए हैं, पेड़ की तुलना संतान से की गयी है। नदी को माँ स्वरूप माना गया है। इन्हीं प्राचीन भारतीय परम्पराओं का पालन करते हुए विक्रम विश्वविद्यालय पर्यावरण संरक्षण के लिए दृढ संकल्पित है। विश्वविद्यालय में पर्यावरण संरक्षण और संवर्धन से जुड़े अनेक नवाचार किए जा रहे हैं। विश्वविद्यालय द्वारा एक ओर जहाँ पर्यावरण से सम्बंधित विभिन्न पाठ्यक्रमों का संचालन किया जा रहा है, वहीं दूसरी ओर प्रत्यक्ष रूप से ऊर्जा संरक्षण, जल संरक्षण, पौधारोपण, गाजर घास उन्मूलन एवं जैव-विविधता संरक्षण किये जा रहे हैं। विश्वविद्यालय द्वारा नव निर्मित भवनों पर वाटर हार्वेस्टिंग का कार्य किया गया है। साथ ही लगभग दो हेक्टेयर भू क्षेत्र पर विक्रम सरोवर का गहरीकरण करते हुए जल संरक्षण का कार्य किया जा रहा है एवं यहाँ पर जलीय जैव-विविधता का विकास एवं संरक्षण का कार्य किया जा रहा है।
विश्वविद्यालय के द्वारा वन विभाग तथा वृक्षमित्र संस्था के सहयोग से परिसर में लगभग 5000 से अधिक पौधों का रोपण एवं उनका संरक्षण किया गया है।

पौधों के संरक्षण हेतु बार कोड का उपयोग किया गया है, जिससे उन पौधों की सम्पूर्ण जानकारी विद्यार्थियों को मिल सके। छात्रों, शिक्षकों एवं कर्मचारियों के सहयोग से गाजर घास को परिसर से यांत्रिक एवं भौतिक विधियों द्वारा हटाया गया है। पर्यावरण संरक्षण से सम्बंधित विभिन्न वेबिनार एवं सेमिनार का आयोजन समय-समय पर करते हुए जन जागृति अभियान चलाया जा रहा है। विक्रम विश्वविद्यालय के कुलसचिव प्रशांत पुराणिक ने बताया कि पर्यावरण संरक्षण हेतु आम जन का सहयोग आवश्यक है। जन जागृति अभियान द्वारा लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है, यह कार्य विश्वविद्यालय की राष्ट्रीय सेवा योजना द्वारा किया जा रहा है।

विश्वविद्यालय के कुलानुशासक प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा ने बताया कि भारतीय व्रत, पर्व, उत्सव की परंपरा में पर्यावरण संरक्षण से जुड़े अनेक संदेश छुपे हुए हैं। इन महत्वपूर्ण तथ्यों को उजागर करने के लिए मालवा के लोक साहित्य और संस्कृति में पर्यावरणीय चेतना पर केंद्रित महत्वपूर्ण शोध कार्य उनके द्वारा करवाया गया है, जिसे मंदसौर की डॉ रेखा कुमावत ने हिंदी अध्ययनशाला शोध केंद्र से पूर्ण किया है। इसी प्रकार मध्यप्रदेश की प्रमुख जनजातियों जैसे भील, भिलाला बारेला, गोंड, सहरिया आदि की सांस्कृतिक गतिविधियों द्वारा पर्यावरण हित संवर्धन के लिए किए जा रहे महत्त्वपूर्ण प्रयासों को लेकर अनेक महत्वपूर्ण शोध कार्य विक्रम विश्वविद्यालय से हुए हैं।

प्राणिकी एवं जैव प्रौद्योगिकी अध्ययनशाला के अध्यक्ष डॉ सलिल सिंह, डॉ शिवी भसीन एवं डॉ अरविंद शुक्ला ने बताया कि विश्वविद्यालय द्वारा शिक्षक, छात्र, शोधकर्ताओं एवं कर्मचारियों के संयुक्त प्रयासों से साफ-सफाई अभियान चलते हुए हर परिसर को हरा भरा एवं साफ सुथरा रखने का संकल्प लिया गया है।

Comments

मध्यप्रदेश समाचार

देश समाचार

Popular posts from this blog

आधे अधूरे - मोहन राकेश : पाठ और समीक्षाएँ | मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे : मध्यवर्गीय जीवन के बीच स्त्री पुरुष सम्बन्धों का रूपायन

  आधे अधूरे - मोहन राकेश : पीडीएफ और समीक्षाएँ |  Adhe Adhure - Mohan Rakesh : pdf & Reviews मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा हिन्दी के बहुमुखी प्रतिभा संपन्न नाट्य लेखक और कथाकार मोहन राकेश का जन्म  8 जनवरी 1925 को अमृतसर, पंजाब में  हुआ। उन्होंने  पंजाब विश्वविद्यालय से हिन्दी और अंग्रेज़ी में एम ए उपाधि अर्जित की थी। उनकी नाट्य त्रयी -  आषाढ़ का एक दिन, लहरों के राजहंस और आधे-अधूरे भारतीय नाट्य साहित्य की उपलब्धि के रूप में मान्य हैं।   उनके उपन्यास और  कहानियों में एक निरंतर विकास मिलता है, जिससे वे आधुनिक मनुष्य की नियति के निकट से निकटतर आते गए हैं।  उनकी खूबी यह थी कि वे कथा-शिल्प के महारथी थे और उनकी भाषा में गज़ब का सधाव ही नहीं, एक शास्त्रीय अनुशासन भी है। कहानी से लेकर उपन्यास तक उनकी कथा-भूमि शहरी मध्य वर्ग है। कुछ कहानियों में भारत-विभाजन की पीड़ा बहुत सशक्त रूप में अभिव्यक्त हुई है।  मोहन राकेश की कहानियां नई कहानी को एक अपूर्व देन के रूप में स्वीकार की जाती हैं। उनकी कहानियों में आधुनिक जीवन का कोई-न-कोई विशिष्

तृतीय पुण्य स्मरण... सादर प्रणाम ।

https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=1003309866744766&id=395226780886414 Bekhabaron Ki Khabar - बेख़बरों की खबर Bekhabaron Ki Khabar - बेख़बरों की खबर Bkk News Bekhabaron Ki Khabar, magazine in Hindi by Radheshyam Chourasiya / Bekhabaron Ki Khabar: Read on mobile & tablets -  http://www.readwhere.com/publication/6480/Bekhabaron-ki-khabar

खाटू नरेश श्री श्याम बाबा की पूरी कहानी | Khatu Shyam ji | Jai Shree Shyam | Veer Barbarik Katha |

संक्षेप में श्री मोरवीनंदन श्री श्याम देव कथा ( स्कंद्पुराणोक्त - श्री वेद व्यास जी द्वारा विरचित) !! !! जय जय मोरवीनंदन, जय श्री श्याम !! !! !! खाटू वाले बाबा, जय श्री श्याम !! 'श्री मोरवीनंदन खाटू श्याम चरित्र'' एवं हम सभी श्याम प्रेमियों ' का कर्तव्य है कि श्री श्याम प्रभु खाटूवाले की सुकीर्ति एवं यश का गायन भावों के माध्यम से सभी श्री श्याम प्रेमियों के लिए करते रहे, एवं श्री मोरवीनंदन बाबा श्याम की वह शास्त्र सम्मत दिव्यकथा एवं चरित्र सभी श्री श्याम प्रेमियों तक पहुंचे, जिसे स्वयं श्री वेद व्यास जी ने स्कन्द पुराण के "माहेश्वर खंड के अंतर्गत द्वितीय उपखंड 'कौमारिक खंड'" में सुविस्तार पूर्वक बहुत ही आलौकिक ढंग से वर्णन किया है... वैसे तो, आज के इस युग में श्री मोरवीनन्दन श्यामधणी श्री खाटूवाले श्याम बाबा का नाम कौन नहीं जानता होगा... आज केवल भारत में ही नहीं अपितु समूचे विश्व के भारतीय परिवार ने श्री श्याम जी के चमत्कारों को अपने जीवन में प्रत्यक्ष रूप से देख लिया हैं.... आज पुरे भारत के सभी शहरों एवं गावों में श्री श्याम जी से सम्बंधित संस्थाओं