Skip to main content

विश्व पर्यावरण दिवस पर प्राणवायु अभियान का शुभारंभ

विक्रम विश्वविद्यालय के एसओईटी परिसर में हुआ सघन वृक्षारोपण

उज्जैन । आज वृक्षमित्र सेवा समिति द्वारा विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के सहयोग से विश्व पर्यावरण दिवस के शुभ अवसर पर सतत प्राणवायु अभियान का शुभारंभ हुआ । आज स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग स्टडीज, विक्रम विश्वविद्यालय परिसर में श्री अनिल जी फिरोजिया माननीय सांसद महोदय के करकमलों से मंत्रोच्चार के साथ त्रिवेणी एवं फलदार पोधो रोपण कर यह अभियान का शुभारंभ हुआ । इसके पूर्व समिति अध्यक्ष श्री अजय भातखंडे ने संस्था परिचय देते हुए बताया कि अभी तक लगभग 10,000 पौधे वृक्षमित्रों ने लगाए है और हर संडे दो घंटे पर्यावरण के लिए इस स्लोगन के साथ सतत पौध रोपण और संवर्धन का कार्य समिति सदस्य कर रहे है । आज बड़ी संख्या में वृक्षमित्रों ने उपस्थित होकर बड़, पीपल, नीम, करंज, मौलश्री, बादाम, गुलमोहर, करंज इत्यादि के पौधे रोपे । यूथ होस्टल ऑफ इंडिया, लायंस क्लब उज्जैन विंग, स्वस्तिक हेंडीक्राफ्ट के साथी गण उपस्थित थे । इस अवसर पर विक्रम विश्वविद्यालय के कुलानुशासक प्रो शैलेन्द्र कुमार शर्मा, एसओईटी के डायरेक्टर डॉ. गणपत अहिरवार, डॉ कमलेश दशोरा, डॉ डीडी बेदिया एवं ने संबोधित करते हुए पर्यावरण संरक्षण क्यो आवश्यक इसे बताया ।


प्रो शर्मा ने माननीय कुलपति डॉ. अखिलेश कुमार पांडेय के संदेश द्वारा यह आश्वस्त किया कि वृक्षमित्र सेवा समिति द्वारा परिसर में प्रारंभ किये इस पौधरोपण अभियान में वह सदैव साथ हैं। सुश्री संजिवनी सप्रे , पूर्व प्राचार्य लोकमान्य तिलक हाइस्कूल द्वारा अपने भ्राता स्व. सुभाष सप्रे के स्मरणार्थ पौधरोपण के लिए ग्यारह हजार रुपए का चेक समिति को प्रदान किया। विशेष अतिथि श्री अनिल फिरोजिया जी ने संबोधित करते हुए कहा कि आज प्रत्येक व्यक्ति का दायित्व है कि वह पौधे लगाए और वृक्ष बनने तक उसकी देखभाल करें । आपने वृक्षमित्रों को बधाई दी और उनके कार्यो की प्रशंसा की । आपने आह्वान किया कि अधिक से अधिक पेड़ लगाए मैं आपके साथ तन-मन-धन से खड़ा हूँ। आभार प्रदर्शन संस्था सचिव श्री प्रवीण साठे ने किया । इस अवसर पर यूथ होस्टल के श्री दिलीप चौहान, श्री निर्दोष निर्भय, इंजी. राजेश चौहान, सुश्री अनिता गौड़, श्रीमती प्रीति साठे, श्री गोपाल महाकाल, खेमजी चंदन, मिलिंद लेले, आशुतोष पंडित, अमिताभ पंडित, श्रीकांत जोशी, डॉ मुकेश वाणी, इंजी सचिन सिरोलिया, श्री दीपक शाहपुरकर इत्यादि उपस्थित थे ।

Comments

मध्यप्रदेश समाचार

देश समाचार

Popular posts from this blog

खाटू नरेश श्री श्याम बाबा की पूरी कहानी | Khatu Shyam ji | Jai Shree Shyam | Veer Barbarik Katha |

संक्षेप में श्री मोरवीनंदन श्री श्याम देव कथा ( स्कंद्पुराणोक्त - श्री वेद व्यास जी द्वारा विरचित) !! !! जय जय मोरवीनंदन, जय श्री श्याम !! !! !! खाटू वाले बाबा, जय श्री श्याम !! 'श्री मोरवीनंदन खाटू श्याम चरित्र'' एवं हम सभी श्याम प्रेमियों ' का कर्तव्य है कि श्री श्याम प्रभु खाटूवाले की सुकीर्ति एवं यश का गायन भावों के माध्यम से सभी श्री श्याम प्रेमियों के लिए करते रहे, एवं श्री मोरवीनंदन बाबा श्याम की वह शास्त्र सम्मत दिव्यकथा एवं चरित्र सभी श्री श्याम प्रेमियों तक पहुंचे, जिसे स्वयं श्री वेद व्यास जी ने स्कन्द पुराण के "माहेश्वर खंड के अंतर्गत द्वितीय उपखंड 'कौमारिक खंड'" में सुविस्तार पूर्वक बहुत ही आलौकिक ढंग से वर्णन किया है... वैसे तो, आज के इस युग में श्री मोरवीनन्दन श्यामधणी श्री खाटूवाले श्याम बाबा का नाम कौन नहीं जानता होगा... आज केवल भारत में ही नहीं अपितु समूचे विश्व के भारतीय परिवार ने श्री श्याम जी के चमत्कारों को अपने जीवन में प्रत्यक्ष रूप से देख लिया हैं.... आज पुरे भारत के सभी शहरों एवं गावों में श्री श्याम जी से सम्बंधित संस्थाओं...

आधे अधूरे - मोहन राकेश : पाठ और समीक्षाएँ | मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे : मध्यवर्गीय जीवन के बीच स्त्री पुरुष सम्बन्धों का रूपायन

  आधे अधूरे - मोहन राकेश : पीडीएफ और समीक्षाएँ |  Adhe Adhure - Mohan Rakesh : pdf & Reviews मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा हिन्दी के बहुमुखी प्रतिभा संपन्न नाट्य लेखक और कथाकार मोहन राकेश का जन्म  8 जनवरी 1925 को अमृतसर, पंजाब में  हुआ। उन्होंने  पंजाब विश्वविद्यालय से हिन्दी और अंग्रेज़ी में एम ए उपाधि अर्जित की थी। उनकी नाट्य त्रयी -  आषाढ़ का एक दिन, लहरों के राजहंस और आधे-अधूरे भारतीय नाट्य साहित्य की उपलब्धि के रूप में मान्य हैं।   उनके उपन्यास और  कहानियों में एक निरंतर विकास मिलता है, जिससे वे आधुनिक मनुष्य की नियति के निकट से निकटतर आते गए हैं।  उनकी खूबी यह थी कि वे कथा-शिल्प के महारथी थे और उनकी भाषा में गज़ब का सधाव ही नहीं, एक शास्त्रीय अनुशासन भी है। कहानी से लेकर उपन्यास तक उनकी कथा-भूमि शहरी मध्य वर्ग है। कुछ कहानियों में भारत-विभाजन की पीड़ा बहुत सशक्त रूप में अभिव्यक्त हुई है।  मोहन राकेश की कहानियां नई कहानी को एक अपूर्व देन के रूप में स्वीकार की जाती ...

दुर्गादास राठौड़ : जिण पल दुर्गो जलमियो धन बा मांझल रात - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

अमरवीर दुर्गादास राठौड़ : जिण पल दुर्गो जलमियो धन बा मांझल रात। - प्रो शैलेन्द्रकुमार शर्मा माई ऐड़ा पूत जण, जेहड़ा दुरगादास। मार मंडासो थामियो, बिण थम्बा आकास।। आठ पहर चौसठ घड़ी घुड़ले ऊपर वास। सैल अणी हूँ सेंकतो बाटी दुर्गादास।। भारत भूमि के पुण्य प्रतापी वीरों में दुर्गादास राठौड़ (13 अगस्त 1638 – 22 नवम्बर 1718)  के नाम-रूप का स्मरण आते ही अपूर्व रोमांच भर आता है। भारतीय इतिहास का एक ऐसा अमर वीर, जो स्वदेशाभिमान और स्वाधीनता का पर्याय है, जो प्रलोभन और पलायन से परे प्रतिकार और उत्सर्ग को अपने जीवन की सार्थकता मानता है। दुर्गादास राठौड़ सही अर्थों में राष्ट्र परायणता के पूरे इतिहास में अनन्य, अनोखे हैं। इसीलिए लोक कण्ठ पर यह बार बार दोहराया जाता है कि हे माताओ! तुम्हारी कोख से दुर्गादास जैसा पुत्र जन्मे, जिसने अकेले बिना खम्भों के मात्र अपनी पगड़ी की गेंडुरी (बोझ उठाने के लिए सिर पर रखी जाने वाली गोल गद्देदार वस्तु) पर आकाश को अपने सिर पर थाम लिया था। या फिर लोक उस दुर्गादास को याद करता है, जो राजमहलों में नहीं,  वरन् आठों पहर और चौंसठ घड़ी घोड़े पर वास करता है और उस पर ही बैठकर बाट...