उज्जैन। श्री खुशालदास विश्वविद्यालय, हनुमानगढ़, राजस्थान में आयोजित अखिल भारतीय अंतर विश्वविद्यालयीन मल्लखंभ चेम्पियनशिप के समापन अवसर पर वाणिज्य अध्ययनशाला, विक्रम विश्वविद्यालय के डॉ. आशीष मेहता को एम्पायर के रूप में उल्लेखनीय सेवाओं के लिए मल्लखंभ फेडरेशन ऑफ इंडिया के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ रमेश इंडोलिया ने खेल रत्न अवॉर्ड से सम्मानित किया। इस अवसर पर टेक्निकल कमेटी के चेयरमैन यतीन केलकर, वरिष्ठ निर्णायक राहुल चौकसी विशेष रूप से उपस्थित थे। 3 से 6 अप्रैल तक आयोजित चेम्पियनशिप के श्रेष्ठ संचालन हेतु डॉ. मेहता को चीफ एंपायर मनोनीत किया गया था। चेम्पियनशिप में देशभर से 55 विश्वविद्यालयों के 800 से अधिक महिला एवं पुरूष खिलाड़ियों ने हिस्सा लिया। यह जानकारी विभागाध्यक्ष डॉ एस. के. मिश्रा ने देते हुए बताया कि, 125 से अधिक राज्य, राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय चैम्पियनशिप में एंपायर की भूमिका निभा चुके डॉ. मेहता मध्यप्रदेश शासन द्वारा सर्वोच्च खेल अलंकरण विक्रम एवं विश्वामित्र अवार्ड से अलंकृत है तथा मध्यप्रदेश से एकमात्र अंतरराष्ट्रीय एम्पायर है। डॉ मेहता की गौरवमयी उपलब्धि पर को-ऑर्डिनेटर डॉ शैलेन्द्र कुमार भारल, डॉ नागेश पाराशर, डॉ रुचिका खंडेलवाल, डॉ अनुभा गुप्ता, डॉ परिमिता सिंह, प्रवीण शर्मा, मुकेश बठानिया एवं सुनील मालवीय ने हर्ष व्यक्त किया है।
आधे अधूरे - मोहन राकेश : पाठ और समीक्षाएँ | मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे : मध्यवर्गीय जीवन के बीच स्त्री पुरुष सम्बन्धों का रूपायन
आधे अधूरे - मोहन राकेश : पीडीएफ और समीक्षाएँ | Adhe Adhure - Mohan Rakesh : pdf & Reviews मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा हिन्दी के बहुमुखी प्रतिभा संपन्न नाट्य लेखक और कथाकार मोहन राकेश का जन्म 8 जनवरी 1925 को अमृतसर, पंजाब में हुआ। उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय से हिन्दी और अंग्रेज़ी में एम ए उपाधि अर्जित की थी। उनकी नाट्य त्रयी - आषाढ़ का एक दिन, लहरों के राजहंस और आधे-अधूरे भारतीय नाट्य साहित्य की उपलब्धि के रूप में मान्य हैं। उनके उपन्यास और कहानियों में एक निरंतर विकास मिलता है, जिससे वे आधुनिक मनुष्य की नियति के निकट से निकटतर आते गए हैं। उनकी खूबी यह थी कि वे कथा-शिल्प के महारथी थे और उनकी भाषा में गज़ब का सधाव ही नहीं, एक शास्त्रीय अनुशासन भी है। कहानी से लेकर उपन्यास तक उनकी कथा-भूमि शहरी मध्य वर्ग है। कुछ कहानियों में भारत-विभाजन की पीड़ा बहुत सशक्त रूप में अभिव्यक्त हुई है। मोहन राकेश की कहानियां नई कहानी को एक अपूर्व देन के रूप में स्वीकार की जाती हैं। उनकी कहानियों में आधुनिक जीवन का कोई-न-कोई विशिष्ट पहलू उजागर
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