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याद करें स्वाधीनता संग्राम में योगदान देने वाले गुमनाम शहीदों को

आजादी के अमृत महोत्सव के अंतर्गत हुआ डॉ पूरन सहगल की 1857 की क्रांति पर केंद्रित महत्त्वपूर्ण पुस्तक का लोकार्पण एवं राष्ट्रीय संगोष्ठी

विक्रम विश्वविद्यालय में 1857 की क्रांति में मालवा की भूमिका पर केंद्रित राष्ट्रीय संगोष्ठी संपन्न


उज्‍जैन । विक्रम विश्वविद्यालय की हिंदी अध्ययनशाला, पत्रकारिता एवं जनसंचार अध्ययनशाला तथा गांधी अध्ययन केंद्र के संयुक्त तत्वावधान में आजादी के अमृत महोत्सव की शृंखला के अंतर्गत राष्ट्रीय परिसंवाद एवं पुस्तक लोकार्पण कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस अवसर पर प्रसिद्ध लोक संस्कृतिविद् डॉ पूरन सहगल, मनासा की पुस्तक अठारह सौ सत्तावन स्वतंत्रता संग्राम का जुझारू सेनानायक हीरासिंह जमादार का लोकार्पण अतिथियों द्वारा किया गया।


कार्यक्रम के मुख्य अतिथि विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कुलपति प्रो अखिलेश कुमार पांडेय, विशिष्ट अतिथि कुलसचिव डॉ प्रशांत पुराणिक, इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के आचार्य डॉ शिवप्रकाश शुक्ला एवं विक्रम विश्वविद्यालय के कला संकायाध्यक्ष प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। यह संगोष्ठी 1857 की क्रांति में मालवा की भूमिका पर केंद्रित थी।

राष्ट्रीय संगोष्ठी को संबोधित करते हुए कुलपति प्रो अखिलेश कुमार पांडेय ने कहा कि स्वाधीनता के अमृत महोत्सव के अंतर्गत देश को आजादी दिलाने वाले अनेक अज्ञात रणबांकुरों को याद किया जा रहा है। हम अपने अंचल में स्वाधीनता संग्राम में योगदान देने वाले गुमनाम शहीदों को याद करें। आज भी उनके परिवारजन गुमनामी की जिंदगी जी रहे हैं। डॉ पूरन सहगल की पुस्तक महान वीर हीरासिंह जमादार सहित महिदपुर, सोंधवाड़ एवं आसपास के क्षेत्र में कार्य करने वाले अनेक क्रांतिकारियों की याद दिलाती है। विश्वविद्यालय द्वारा स्वाधीनता संग्राम से जुड़े इस प्रकार के मौखिक और दस्तावेजी साहित्य को प्रकाशित करवाया जाएगा।


इतिहासकार एवं कुलसचिव डॉ प्रशांत पुराणिक ने कहा कि 1857 की क्रांति में महिदपुर के अमर सपूतों ने कड़ा संघर्ष किया। महिदपुर के हीरासिंह जमादार, अमीन सदाशिवराव निखुलकर जैसे अनेक लोगों का अविस्मरणीय योगदान रहा है। अंग्रेज लोग संख्या में कम थे। उन्होंने अपने साथ स्थानीय लोगों को जोड़कर इस क्रांति को कुचलने का प्रयास किया, किंतु यह मशाल जलती रही। किसानों, आम नागरिकों और विद्रोही सैनिकों ने इस क्रांति की आग को जगाए रखा।


कला संकायाध्यक्ष प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा ने डॉ सहगल की पुस्तक की समीक्षा करते हुए कहा कि इतिहास मृत देह के समान होता है, जिसे लोक साहित्य और संस्कृति प्राणवान बना देते हैं। डॉ सहगल द्वारा वाचिक परंपरा से प्राप्त की गई महिदपुर के अमर सेनानी हीरासिंह जमादार विषयक लोक गाथा इतिहास, जातीय स्मृतियों और समाज जीवन के अनेक अनछुए पहलुओं को उद्घाटित करती है। इस पुस्तक से हीरासिंह जमादार के महान साहस, शौर्य और सत्तावन की क्रांति में उनके अविस्मरणीय योगदान का परिचय मिलता है। अट्ठारह सौ सत्तावन की क्रांति का स्वरूप सर्वसमावेशी था। उसमें सभी वर्ग, क्षेत्र और समुदायों के लोगों ने अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया। सभी वर्गों के सामूहिक प्रयासों के बिना राष्ट्र की आजादी और नव निर्माण संभव नहीं था। इस पुस्तक से भारत की आजादी में मालवा, सोंधवाड़ और महिदपुर क्षेत्र की अविस्मरणीय भूमिका के अनछुए पहलू उद्घाटित हुए हैं।

इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्रो. शिवप्रकाश शुक्ला ने कहा कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में हाशिए के लोगों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। उनसे जुड़े महत्वपूर्ण पक्षों को उजागर करने के लिए व्यापक प्रयास की जरूरत है। महिदपुर क्षेत्र का हीरासिंह जमादार इसी प्रकार का क्रांतिवीर था, जिनके योगदान को लेकर डॉ पूरन सहगल ने महत्वपूर्ण खोज की है।


लोकार्पित पुस्तक के लेखक मालव लोक संस्कृति अनुष्ठान के निदेशक डॉ पूरन सहगल, मनासा ने कहा कि लोक समुदाय में कार्य करने के लिए दुनिया को भूलना होता है। लोक साहित्य की उपलब्धता के लिए परिश्रम जरूरी है। गहरी निष्ठा और समर्पण के बिना लोक इतिहास का संग्रह संभव नहीं है। जब लोक और इतिहास मिल जाते हैं, तब साहित्य का सृजन होता है। महिदपुर के हीरासिंह जमादार और अनेक क्रांतिकारियों ने छापामार युद्ध पद्धति का इस्तेमाल किया था। अंग्रेजों ने महिदपुर एवं निकट के क्षेत्रों पर 1857 के आसपास दमन चक्र चलाया था, जिसके चिन्ह आज भी महिदपुर - सोंधवाड़ क्षेत्र में मिलते हैं। इतिहास जब ठिठक जाता है, तब लोक साहित्य राह दिखाता है। लोक तमाम प्रकार की घटनाओं को सँवारता है। डॉ जगदीश चंद्र शर्मा ने कहा कि इतिहास और लोक संस्कृति के विभिन्न आयामों को जीवंत करने का महत्त्वपूर्ण कार्य डॉ पूरन सहगल की पुस्तक के माध्यम से संभव हुआ है। देश को आजाद कराने के लिए मालवा और महिदपुर क्षेत्र के सैकड़ों वीरों ने अपना बलिदान दिया। डॉ प्रतिष्ठा शर्मा ने कहा कि गुमनाम बलिदानियों को याद करना आज की आवश्यकता है। डॉ पूरन सहगल की पुस्तक नई पीढ़ी के लिए प्रेरणा स्रोत सिद्ध होगी।

कार्यक्रम में अतिथियों ने लोक संस्कृति के क्षेत्र में विशिष्ट योगदान के लिए डॉ पूरन सहगल को शॉल, श्रीफल एवं पुष्प माल अर्पित करते हुए उनका सम्मान किया। इस अवसर पर प्रो गीता नायक, डॉ सुशील शर्मा, डॉ अजय शर्मा, डॉ श्वेता पंड्या, कायथा, डॉ हेमन्त लोदवाल, श्रीमती हीना तिवारी, श्री गगरानी, मन्दसौर आदि सहित अनेक शिक्षक, शोधार्थी एवं विद्यार्थीगण उपस्थित थे।

संगोष्ठी का संचालन हिंदी अध्ययनशाला के डॉ जगदीश चंद्र शर्मा ने किया। आभार प्रदर्शन शासकीय कन्या महाविद्यालय, मंदसौर की हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ उमा गगरानी ने किया।

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