Skip to main content

विद्यार्थियों को अध्यापन के साथ-साथ व्यावहारिक ज्ञान को विशेष तवज्जो देनी चाहिए - प्रोफेसर पांडेय

रीवा के विद्यार्थी शैक्षणिक एवं रोजगार मूलक भ्रमण पर उज्जैन आए

चित्र में शैक्षणिक भ्रमण पर आए विद्यार्थियों के साथ कुलपति प्रोफेसर अखिलेश कुमार पांडेय, डॉ भारल, डॉ गुप्ता, डॉ शर्मा

उज्जैन। विद्यार्थियों को अध्यापन के साथ-साथ व्यावहारिक ज्ञान को विशेष तवज्जो देनी चाहिए। साथ ही नित नए परिवर्तनों का विश्व के आर्थिक, सामाजिक परिदृश्य पर क्या प्रभाव हो सकता है इस विषय पर भी गंभीरता से सोचना चाहिए।
उक्त उद्गार विक्रम विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ अखिलेश कुमार पांडेय ने विश्व बैंक गुणवत्ता उन्नयन परियोजना के अंतर्गत शैक्षणिक एवं रोजगार मूलक यात्रा पर अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय, रीवा से उज्जैन आये दल के समक्ष व्यक्त किए। आपने कहा कि वाणिज्य के विद्यार्थियों को स्टार्ट-अप तथा इस आशय से सरकार द्वारा उपलब्ध कराई जा रही सुविधाओं से भी जन-सामान्य को परिचित कराने के सामाजिक उत्तरदायित्व का निर्वहन करना चाहिए। कार्यक्रम की अध्यक्षता वाणिज्य अध्ययनशाला के विभागाध्यक्ष डॉ एस. के. मिश्रा ने की। इसके पूर्व दल के सदस्यों ने वाणिज्य अध्ययनशाला के विद्यार्थियों एवं स्टाफ सदस्यों के साथ अकादमिक विचार-विमर्श किया। इस अवसर पर दल का नेतृत्व कर रहे प्रोफेसर आर. सी. गुप्ता ने दल के भ्रमण के उद्देश्य एवं अध्यापन के तरीकों पर विशिष्ट व्याख्यान दिया। स्वागत भाषण समन्वयक डॉ शैलेंद्र कुमार भारल ने प्रस्तुत किया। अतिथियों का स्वागत डॉ. आशीष मेहता, डॉ. नेहा माथुर, डॉ अनुभा गुप्ता, डॉ परिमिता सिंह, डॉ कायनात तंवर ने किया।
कार्यक्रम का संचालन डॉ. नागेश पाराशर एवं आभार डॉ. रुचिका खंडेलवाल ने व्यक्त किया।

Comments

मध्यप्रदेश समाचार

देश समाचार

Popular posts from this blog

आधे अधूरे - मोहन राकेश : पाठ और समीक्षाएँ | मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे : मध्यवर्गीय जीवन के बीच स्त्री पुरुष सम्बन्धों का रूपायन

  आधे अधूरे - मोहन राकेश : पीडीएफ और समीक्षाएँ |  Adhe Adhure - Mohan Rakesh : pdf & Reviews मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा हिन्दी के बहुमुखी प्रतिभा संपन्न नाट्य लेखक और कथाकार मोहन राकेश का जन्म  8 जनवरी 1925 को अमृतसर, पंजाब में  हुआ। उन्होंने  पंजाब विश्वविद्यालय से हिन्दी और अंग्रेज़ी में एम ए उपाधि अर्जित की थी। उनकी नाट्य त्रयी -  आषाढ़ का एक दिन, लहरों के राजहंस और आधे-अधूरे भारतीय नाट्य साहित्य की उपलब्धि के रूप में मान्य हैं।   उनके उपन्यास और  कहानियों में एक निरंतर विकास मिलता है, जिससे वे आधुनिक मनुष्य की नियति के निकट से निकटतर आते गए हैं।  उनकी खूबी यह थी कि वे कथा-शिल्प के महारथी थे और उनकी भाषा में गज़ब का सधाव ही नहीं, एक शास्त्रीय अनुशासन भी है। कहानी से लेकर उपन्यास तक उनकी कथा-भूमि शहरी मध्य वर्ग है। कुछ कहानियों में भारत-विभाजन की पीड़ा बहुत सशक्त रूप में अभिव्यक्त हुई है।  मोहन राकेश की कहानियां नई कहानी को एक अपूर्व देन के रूप में स्वीकार की जाती ...

खाटू नरेश श्री श्याम बाबा की पूरी कहानी | Khatu Shyam ji | Jai Shree Shyam | Veer Barbarik Katha |

संक्षेप में श्री मोरवीनंदन श्री श्याम देव कथा ( स्कंद्पुराणोक्त - श्री वेद व्यास जी द्वारा विरचित) !! !! जय जय मोरवीनंदन, जय श्री श्याम !! !! !! खाटू वाले बाबा, जय श्री श्याम !! 'श्री मोरवीनंदन खाटू श्याम चरित्र'' एवं हम सभी श्याम प्रेमियों ' का कर्तव्य है कि श्री श्याम प्रभु खाटूवाले की सुकीर्ति एवं यश का गायन भावों के माध्यम से सभी श्री श्याम प्रेमियों के लिए करते रहे, एवं श्री मोरवीनंदन बाबा श्याम की वह शास्त्र सम्मत दिव्यकथा एवं चरित्र सभी श्री श्याम प्रेमियों तक पहुंचे, जिसे स्वयं श्री वेद व्यास जी ने स्कन्द पुराण के "माहेश्वर खंड के अंतर्गत द्वितीय उपखंड 'कौमारिक खंड'" में सुविस्तार पूर्वक बहुत ही आलौकिक ढंग से वर्णन किया है... वैसे तो, आज के इस युग में श्री मोरवीनन्दन श्यामधणी श्री खाटूवाले श्याम बाबा का नाम कौन नहीं जानता होगा... आज केवल भारत में ही नहीं अपितु समूचे विश्व के भारतीय परिवार ने श्री श्याम जी के चमत्कारों को अपने जीवन में प्रत्यक्ष रूप से देख लिया हैं.... आज पुरे भारत के सभी शहरों एवं गावों में श्री श्याम जी से सम्बंधित संस्थाओं...

दुर्गादास राठौड़ : जिण पल दुर्गो जलमियो धन बा मांझल रात - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

अमरवीर दुर्गादास राठौड़ : जिण पल दुर्गो जलमियो धन बा मांझल रात। - प्रो शैलेन्द्रकुमार शर्मा माई ऐड़ा पूत जण, जेहड़ा दुरगादास। मार मंडासो थामियो, बिण थम्बा आकास।। आठ पहर चौसठ घड़ी घुड़ले ऊपर वास। सैल अणी हूँ सेंकतो बाटी दुर्गादास।। भारत भूमि के पुण्य प्रतापी वीरों में दुर्गादास राठौड़ (13 अगस्त 1638 – 22 नवम्बर 1718)  के नाम-रूप का स्मरण आते ही अपूर्व रोमांच भर आता है। भारतीय इतिहास का एक ऐसा अमर वीर, जो स्वदेशाभिमान और स्वाधीनता का पर्याय है, जो प्रलोभन और पलायन से परे प्रतिकार और उत्सर्ग को अपने जीवन की सार्थकता मानता है। दुर्गादास राठौड़ सही अर्थों में राष्ट्र परायणता के पूरे इतिहास में अनन्य, अनोखे हैं। इसीलिए लोक कण्ठ पर यह बार बार दोहराया जाता है कि हे माताओ! तुम्हारी कोख से दुर्गादास जैसा पुत्र जन्मे, जिसने अकेले बिना खम्भों के मात्र अपनी पगड़ी की गेंडुरी (बोझ उठाने के लिए सिर पर रखी जाने वाली गोल गद्देदार वस्तु) पर आकाश को अपने सिर पर थाम लिया था। या फिर लोक उस दुर्गादास को याद करता है, जो राजमहलों में नहीं,  वरन् आठों पहर और चौंसठ घड़ी घोड़े पर वास करता है और उस पर ही बैठकर बाट...