Skip to main content

आजादी के अमृत महोत्सव में मातृशक्ति सम्मान समारोह में 75 महिलाओं का अभिनंदन होगा


राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना के 10वें वर्ष में मातृशक्ति सम्मान समारोह में आजादी के अमृत महोत्सव के अवसर पर मालवा प्रांत की शिक्षा, साहित्य, संस्कृति एवं समाजसेवा में सक्रिय महिलाओं का 75 महिलाओं को मातृशक्ति सम्मान में अभिनंदन पत्र भव्य समारोह में आगामी भारतीय नववर्ष पर शासकीय शिक्षा महाविद्यालय में 3 अप्रेल को अतिथि सम्मानित करेंगे। इस अवसर पर राष्ट्रीय संगोष्ठी एवं काव्य गोष्ठी भी होगी।
यह जानकारी देते हुए राष्ट्रीय महासचिव डॉ. प्रभु चौधरी ने बताया कि मातृशक्ति सम्मान समारोह में मुख्य अतिथि श्री हरेराम वाजपेयी(अध्यक्ष हिन्दी परिवार इन्दौर), विशिष्ट अतिथि डॉ. देवेन्द्र जोशी(पत्रकार, वरिष्ठ साहित्यकार) एवं डॉ. संतोष पंड्या(निदेशक संस्कृत कालिदास अकादमी उज्जैन), मुख्य वक्ता डॉ. शैलेन्द्रकुमार शर्मा(अध्यक्ष कला संकाय, कुलानुशासक विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन) एवं अध्यक्षता श्री ब्रजकिशोर शर्मा(अध्यक्ष राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना) तथा विशिष्ट अतिथि श्री जीवनप्रकाश आर्य (अध्यक्ष आर्य समाज उज्जैन) एवं डॉ. शीला कुशवाह(शीलेश्वरी देवी) होगी। संगोष्ठी का विषय - ‘‘मातृवंदना धर्म, अध्यात्म, विज्ञान के परिप्रेक्ष्य में‘‘ में आयोजित रहेगी। काव्य गोष्ठी-‘‘मातृवंदना एवं भारतीय संस्कृति‘‘ पर होगी।
समारोह की प्रस्तावना डॉ. प्रभु चौधरी(राष्ट्रीय महासचिव उज्जैन) आयोजक श्रीमती अर्पणा जोशी, सह आयोजक सुश्री प्रगति बैरागी, संयोजक डॉ. इन्दु सिन्हा, सह संयोजक सुश्री हेमलता शर्मा एवं स्वागताध्यक्ष श्रीमती हेमलता तोमर तथा संचालक डॉ. रेखा भालेराव होगी।
समारोह में मातृशक्ति सम्मान से डॉ. रश्मि श्रीवास्तव, डॉ. नीलम तेजवानी, श्रीमती प्रभा बैरागी, श्रीमती मणिमाला, श्रीमती शीतल राघव, श्रीमती मनोरमा जोशी, श्रीमती प्रभा तिवारी, श्रीमती ज्योति चौहान, डॉ. दविन्दर कौर होरा, डॉ. सीमा जोशी, श्रीमती निर्मला रावल, श्रीमती जया पाण्डे, श्रीमती हेमा अग्रवाल, श्रीमती पूजा यादव, सुश्री संगीता आशापुरे, श्रीमती सुषमा शुक्ला, श्रीमती संगीता श्रीवास्तव, श्रीमती निशा पंडित, डॉ. निशा जोशी, श्रीमती पूजा शर्मा, श्रीमती निशा पंडित, श्रीमती नेहा रामचंदानी, श्रीमती कल्पना शाह, श्रीमती ज्योति जलज, श्रीमती ज्ञानेश्वरी शिन्दे, श्रीमती संध्या शिवहरे, डॉ. मनीषा ठाकुर, डॉ. मंजूश्री जायसवाल, सुश्री हेमलता शर्मा, श्रीमती हेमलता तोमर, डॉ. इन्दु सिन्हा, डॉ. रेखा भालेराव आदि 75 महिलाओं को सम्मानित किया जावेगा।

Comments

Popular posts from this blog

आधे अधूरे - मोहन राकेश : पाठ और समीक्षाएँ | मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे : मध्यवर्गीय जीवन के बीच स्त्री पुरुष सम्बन्धों का रूपायन

  आधे अधूरे - मोहन राकेश : पीडीएफ और समीक्षाएँ |  Adhe Adhure - Mohan Rakesh : pdf & Reviews मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा हिन्दी के बहुमुखी प्रतिभा संपन्न नाट्य लेखक और कथाकार मोहन राकेश का जन्म  8 जनवरी 1925 को अमृतसर, पंजाब में  हुआ। उन्होंने  पंजाब विश्वविद्यालय से हिन्दी और अंग्रेज़ी में एम ए उपाधि अर्जित की थी। उनकी नाट्य त्रयी -  आषाढ़ का एक दिन, लहरों के राजहंस और आधे-अधूरे भारतीय नाट्य साहित्य की उपलब्धि के रूप में मान्य हैं।   उनके उपन्यास और  कहानियों में एक निरंतर विकास मिलता है, जिससे वे आधुनिक मनुष्य की नियति के निकट से निकटतर आते गए हैं।  उनकी खूबी यह थी कि वे कथा-शिल्प के महारथी थे और उनकी भाषा में गज़ब का सधाव ही नहीं, एक शास्त्रीय अनुशासन भी है। कहानी से लेकर उपन्यास तक उनकी कथा-भूमि शहरी मध्य वर्ग है। कुछ कहानियों में भारत-विभाजन की पीड़ा बहुत सशक्त रूप में अभिव्यक्त हुई है।  मोहन राकेश की कहानियां नई कहानी को एक अपूर्व देन के रूप में स्वीकार की जाती हैं। उनकी कहानियों में आधुनिक जीवन का कोई-न-कोई विशिष्ट पहलू उजागर

मालवी भाषा और साहित्य : प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

MALVI BHASHA AUR SAHITYA: PROF. SHAILENDRAKUMAR SHARMA पुस्तक समीक्षा: डॉ श्वेता पंड्या Book Review : Dr. Shweta Pandya  मालवी भाषा एवं साहित्य के इतिहास की नई दिशा  लोक भाषा, लोक साहित्य और संस्कृति का मानव सभ्यता के विकास में अप्रतिम योगदान रहा है। भाषा मानव समुदाय में परस्पर सम्पर्क और अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम है। इसी प्रकार क्षेत्र-विशेष की भाषा एवं बोलियों का अपना महत्त्व होता है। भारतीय सभ्यता और संस्कृति से जुड़े विशाल वाङ्मय में मालवा प्रदेश, अपनी मालवी भाषा, साहित्य और संस्कृति के कारण महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। यहाँ की भाषा एवं लोक-संस्कृति ने  अन्य क्षेत्रों पर प्रभाव डालते हुए अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है। मालवी भाषा और साहित्य के विशिष्ट विद्वानों में डॉ. शैलेन्द्रकुमार शर्मा का नाम बड़े आदर से लिया जाता है। प्रो. शर्मा हिन्दी आलोचना के आधुनिक परिदृश्य के विशिष्ट समीक्षकों में से एक हैं, जिन्होंने हिन्दी साहित्य की विविध विधाओं के साथ-साथ मालवी भाषा, लोक एवं शिष्ट साहित्य और संस्कृति की परम्परा को आलोचित - विवेचित करने का महत्त्वपूर्ण एवं सार्थक प्रयास किया है। उनकी साहित्य

हिंदी कथा साहित्य / संपादक प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा

हिंदी कथा साहित्य की भूमिका और संपादकीय के अंश : किस्से - कहानियों, कथा - गाथाओं के प्रति मनुष्य की रुचि सहस्राब्दियों पूर्व से रही है, लेकिन उपन्यास या नॉवेल और कहानी या शार्ट स्टोरी के रूप में इनका विकास पिछली दो सदियों की महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है। हिंदी में नए रूप में कहानी एवं उपन्यास  विधा का आविर्भाव बीसवीं शताब्दी में हुआ है। वैसे संस्कृत का कथा - साहित्य अखिल विश्व के कथा - साहित्य का जन्मदाता माना जाता है। लोक एवं जनजातीय साहित्य में कथा – वार्ता की सुदीर्घ परम्परा रही है। इधर आधुनिक हिन्दी कथा साहित्य का विकास संस्कृत - कथा - साहित्य अथवा लोक एवं जनजातीय कथाओं की समृद्ध परम्परा से न होकर, पाश्चात्य कथा साहित्य, विशेषतया अंग्रेजी साहित्य के प्रभाव रूप में हुआ है।  कहानी कथा - साहित्य का एक अन्यतम भेद और उपन्यास से अधिक लोकप्रिय साहित्य रूप है। मनुष्य के जन्म के साथ ही साथ कहानी का भी जन्म हुआ और कहानी कहना - सुनना मानव का स्वभाव बन गया। सभी प्रकार के समुदायों में कहानियाँ पाई जाती हैं। हमारे देश में तो कहानियों की सुदीर्घ और समृद्ध परंपरा रही है। वेद - उपनिषदों में वर्णित यम-यम